वैश्विक अर्थव्यवस्था और बाजारों पर गंभीर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यह संकट 2007-08 के वित्तीय संकट और कोविड महामारी के बाद सबसे बड़ी उथल-पुथल साबित हो सकती है। आशंका जताई जा रही है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा संभावित यूनिवर्सल और रिसिप्रोकल टैरिफ (वैश्विक और पारस्परिक शुल्क) लागू करने से एक नए ग्लोबल ट्रेड वॉर की शुरुआत हो सकती है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लग सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अब तक की सबसे आक्रामक टैरिफ नीतियों को और कड़ा कर दिया है, जिससे वित्तीय बाजारों में चिंता बढ़ सकती है। वैश्विक कंसल्टिंग फर्म deVere Group के सीईओ Nigel Green के मुताबिक, ट्रंप ने अपने हालिया भाषण में आर्थिक मजबूती का दावा किया, लेकिन उनकी नीतियां 1940 के दशक के बाद की सबसे सख्त टैरिफ रणनीतियों में शामिल हो सकती हैं।
deVere Group करीब 12 अरब डॉलर की संपत्ति (AUM) का प्रबंधन करती है। ग्रीन का कहना है कि ट्रंप की नीतियां भले ही अमेरिका की आर्थिक मजबूती दिखाने का प्रयास कर रही हों, लेकिन इनसे वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बढ़ने की आशंका है।
ग्रीन का कहना है कि यह (टैरिफ का खतरा) अब केवल चेतावनी भर नहीं रह गया है, बल्कि यह एक व्यापक व्यापार युद्ध का रूप लेता दिख रहा है। हालांकि, इसके प्रभाव की पूरी तस्वीर अब भी स्पष्ट नहीं है, खासकर जब 2 अप्रैल से व्यापक जवाबी टैरिफ लागू होने वाले हैं। उभरते बाजार, जो पहले से ही सख्त वित्तीय हालात का सामना कर रहे हैं, इस स्थिति में और ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।
अमेरिका में ट्रंप टैरिफ की वजह से बाजार में अनिश्चितता बढ़ गई है, जिससे निवेशकों की चिंता बढ़ रही है। विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा हालात में किसी भी नई खबर या घटनाक्रम से बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।
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साल 2025 (CY25) में अब तक सेंसेक्स और निफ्टी करीब 5% तक गिर चुके हैं। अपने उच्चतम स्तर से सेंसेक्स लगभग 13% और निफ्टी 14% तक लुढ़क चुके हैं। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में गिरावट ज्यादा रही है। एनएसई पर मिडकैप इंडेक्स अपने रिकॉर्ड स्तर से करीब 20% और स्मॉलकैप इंडेक्स 23% तक गिर चुका है।
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के लिए चीन, कनाडा और मैक्सिको द्वारा लगाए गए जवाबी टैरिफ से बचना मुश्किल होगा। इसके परिणामस्वरूप, अमेरिका में महंगाई बढ़ेगी और फेडरल रिजर्व सख्त रुख अपना सकता है।
अमेरिकी शेयर बाजार में जल्द ही तेज गिरावट देखने को मिल सकती है, जिससे ट्रंप की लोकप्रियता प्रभावित हो सकती है। Geojit Financial Services के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वी. के. विजयकुमार का मानना है कि बाजार में अचानक आई गिरावट से अमेरिका में आर्थिक सुस्ती और गहरा सकती है।
उन्होंने कहा कि ट्रंप सरकार को जल्द ही इस स्थिति का एहसास होगा। ऐसे माहौल में निवेशकों के लिए बेहतर होगा कि वे फिलहाल इंतजार करें और हालात को समझने के बाद ही कोई फैसला लें।
बाजार के नजरिए से देखें तो टैरिफ को लेकर अनिश्चितता के कारण बाजार में घबराहट देखी गई। इसके साथ ही उभरते बाजारों की तुलना में विकसित बाजारों की आकर्षक स्थिति, चीन में नीतिगत बदलावों के चलते निवेशकों की रुचि और घरेलू स्तर पर दिसंबर 2024 तिमाही (Q4-FY25) के कमजोर कॉर्पोरेट नतीजों ने भी बाजार पर दबाव बनाया।
बीते कुछ महीनों में विदेशी निवेशकों (FII) ने भारतीय शेयर बाजार से 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की निकासी की है। ASK Hedge Solutions के सीईओ वैभव संघवी के अनुसार, ये निवेशक निवेश योग्य बाजारों की आकर्षक स्थिति को देखकर अपनी पूंजी एक बाजार से दूसरे बाजार में स्थानांतरित कर रहे हैं।
उनका कहना है कि विकसित और उभरते बाजारों की तुलना, चीन की नीतियों में बदलाव और घरेलू स्तर पर कमजोर तिमाही नतीजे जैसे कई कारकों के मेल ने विदेशी निवेशकों के प्रवाह पर और अधिक दबाव बना दिया है, जिससे भारतीय बाजार में बिकवाली का असर बढ़ा है।
भारतीय शेयर बाजार में गिरावट के बाद वैल्यूएशन अब आकर्षक हो गए हैं। विश्लेषकों का मानना है कि घरेलू खपत से जुड़े सेक्टर जैसे फाइनेंशियल, टेलीकॉम और नॉन-यूएस बाजारों को एक्सपोर्ट करने वाले ऑटोमोबाइल सेक्टर के कुछ स्टॉक्स अब लॉन्ग-टर्म के लिए धीरे-धीरे खरीदे जा सकते हैं।
मार्केट में करेक्शन को लेकर संघवी का कहना है कि यह गिरावट अगले 24 महीनों में अच्छे रिटर्न का आधार तैयार कर सकती है। उन्होंने कहा कि लार्ज-कैप स्टॉक्स की वैल्यूएशन अब संतुलित हो गई है, जिससे नए निवेश के लिए यह सही मौका हो सकता है।