मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक एवं मुख्य निवेश अधिकारी सौरभ मुखर्जी ने पुनीत वाधवा के साथ ईमेल साक्षात्कार में कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की परवाह किए बगैर शेयर बाजारों में कोविड महामारी के बाद आई तेजी बनी रहेगी, बशर्ते कि बाजार को यह भरोसा हो कि कॉरपोरेट मुनाफा वृद्धि बरकरार रहेगी। बातचीत के मुख्य अंश:
भारत और पश्चिम, दोनों में शेयर बाजार और आर्थिक वृद्धि के बीच काफी कम सह-संबंध है। इसकी मुख्य वजह यह है कि जो बदलाव (मुख्य तौर पर आगामी मुनाफा वृद्धि) शेयर बाजारों को बढ़ावा देते हैं, वे अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने वाले कारकों से काफी अलग हैं। इसलिए, वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो भी है, महामारी के बाद शेयर बाजार में आई तेजी बरकरार रहेगी, जिससे बाजार को यह भरोसा हुआ है कि कॉरपोरेट मुनाफा वृद्धि बनी रहेगी।
मैं अपने 20 साल के करियर में ऐसे किसी व्यक्ति से नहीं मिला, जिसने बाजार का पूर्वानुमान लगाकर कमाई की हो। इसका सामान्य कारण यह है कि बाजार का पूरी तरह से सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है।
हां, यह सही है कि निवेशक अच्छी तरह से प्रबंधित कंपनियों की पहचान कर सकता है और यह पता लगा सकता है कि उनका व्यवसाय कितनी तेजी से बढ़ेगा। इसके आधार पर निवेश का अच्छा निर्णय लिया जा सकता है। पूर्वानुमान और ज्योतिष ज्यादा अटकलबाजी से जुड़ी गतिविधियां हैं और इसलिए ये खतरों से जुड़ी होती हैं।
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मार्सेलस ने जिन 35 कंपनियों में करीब 12,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है, उनमें अच्छी आय वृद्धि (सालाना करीब 20 प्रतिशत) देखी जा रही हैं और शानदार मुक्त नकदी प्रवाह से संपन्न हैं। इनमें से ज्यादातर कंपनियां अपनी बड़ी पूंजी नए संयंत्र लगाने और अपने व्यवसाय का विस्तार करने पर खर्च कर रही हैं।
हम भारत की आगामी आर्थिक वृद्धि पर अटकलें नहीं लगा रहे हैं। ये कंपनियां पिछले दो दशकों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुरूप कितनी तेजी से बढ़ी हैं, इसके आधार पर आने वाले वर्षों में इन कंपनियों के मुनाफे और नकदी प्रवाह का अंदाजा लगाया जा सकता है।
अच्छे प्रबंधन से जुड़ी ऐसी कंपनियों का पता लगाना हमेशा से कठिन कार्य रहा है जिनका फ्रैंचाइजी आधार दमदार हो। इसकी एक वजह यह है कि ऐसी कंपनियां लो-प्रोफाइल बनाए रखती हैं। ध्यान देने की बात यह है कि मार्सेलस के ग्राहकों (जिनमें स्वयं मैं और मेरे माता-पिता भी शामिल रहे) ने इन शेयरों में अच्छी दिलचस्पी दिखाई है।
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हमने पिछले दिवीज लैबोरेटरीज (यह शेयर गिरकर आधा रह जाने के बाद) में अपना निवेश तीन गुना किया। अब तक यही बड़ा उतार-चढ़ाव दर्ज किया है। दूसरी तरफ, हम भारत में शुरुआती पूंजी खर्च चक्र पर ज्यादा दांव की संभावना तलाशने में सक्षम नहीं रहे और पूंजीगत सुधार का लाभ उठाने से वंचित रहे। मार्सेलस के ग्राहकों (जिनमें स्वयं मैं और मेरे माता-पिता भी शामिल रहे) ने दिवीज लैबोरेटरीज में भी दिलचस्पी दिखाई है।
जब अमेरिकी बैंकों ने कुछ समय पहले संकट से जूझना शुरू किया था तो अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था में पूंजी डालने के लिए सरकारी बॉन्डों की खरीदारी शुरू की। जैसे ही विदेशी मुद्रा बाजारों ने अमेरिकी डॉलर की ताजा आपूर्ति दर्ज की, पिछले 12 महीनों में गिरावट दर्ज (72 रुपये से 82 रुपये) कर चुके भारतीय रुपये में मजबूती आई है और एफआईआई भारत लौटे हैं।
यदि आप ऐतिहासिक आंकड़े पर नजर डालें तो पता चलता है कि एफआईआई सामान्य तौर पर भारत में तेजी के साथ निवेश करने वाले निवेशक रहे हैं, भले ही रुपये में बड़ी गिरावट रही, जो हरेक पांच साल में सामान्य तौर पर एक बार दर्ज की जाती है।
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हमारे घरेलू पीएमएस की तरह, ग्लोबल कम्पाउंडर्स अच्छी तरह से प्रबंधित वैश्विक फ्रैंचाइजी से जुड़ा हुआ है। एकमात्र अंतर आकार का है। उदाहरण के लिए, माइक्रोसॉफ्ट (जो ग्लोबल कम्पाउंडर्स पोर्टफोलियो का हिस्सा है) सालाना 200 अरब डॉलर से अधिक का राजस्व हासिल करती है, क्योंकि पूरी दुनिया उसके ऑफिस पैकेज और उसके एजर क्लाउड प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रही है। इस व्यापक राजस्व आधार पर माइक्रोसॉफ्ट का परिचालन मार्जिन करीब 50 प्रतिशत है।