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आईपीओ के बाद लॉक-इन की अवधि आधी

Last Updated- December 12, 2022 | 2:03 AM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने आज आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) से पहले लॉक-इन की अवधि में ढील दी और ‘नियंत्रक शेयरधारकों’ की अवधारणा मंजूर कर ली। नियामक ने स्टॉक ऑप्शन जारी करने के ढांचे में भी ढील दी है और गैर-सूचीबद्ध कंपनियों में वैकल्पिक निवेश फंडों (एआईएफ) के लिए निवेश की गुंजाइश बढ़ा दी है।
नियामक ने किसी आईपीओ के बाद प्रवर्तकों के लिए अपनी 20 फीसदी शेयरधारिता बनाए रखने की अवधि भी घटाकर आधी यानी 18 महीने कर दी है। इस बीच गैर-प्रवर्तकों की आईपीओ से पहले शेयरधारिता की लॉक इन अवधि भी घटाकर आधी यानी छह महीने कर दी गई है। वेंचर कैपिटल फंडों के लिए न्यूनतम लॉक इन अवधि अधिग्रहण की तारीख से छह महीने होगी, जो इस समय एक साल है।
बाजार विशेषज्ञों ने कहा कि सेबी का कदम ज्यादा कंपनियों को शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने के लिए प्रोत्साहित करेगा। यह रियायत ऐसे समय दी गई है, जब आईपीओ बाजार में रिकॉर्ड धन जुटाया जा रहा है। इस समय न्यूनतम योगदान कही जाने वाली प्रवर्तकों की 20 फीसदी हिस्सेदारी के लिए तीन साल की लॉक-इन अवधि होती है, जबकि शेष शेयरधारिता को एक साल लॉक-इन रखना होता है। अगर आईपीओ पूरी तरह ऑफर फॉर सेल है या निर्गम से जुटाई जाने वाली 50 फीसदी राशि पूंजीगत व्यय के लिए नहीं है तो न्यूनतम योगदान की लॉक इन अवधि घटकर महज 18 महीने रह जाएगी।  इस अनिवार्यता का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि उद्यम में प्रवर्तकों का पैसा लगा रहे। विशेष रूप से उन कंपनियों के मामलों में, जो किसी परियोजना में धन लगाने या कोई नई परियोजना शुरू करने के लिए धन जुटा रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गैर-प्रवर्तक हिस्सेदारी के लिए लॉक-इन अवधि में कमी से निजी इक्विटी निवेेशकों (पीई) का रुझान मजबूत होगा। डीएसके लीगल में एसोसिएट पार्टनर गौरव मिस्त्री ने कहा, ‘इस उदारीकरण से उन प्रवर्तकों को प्रोत्साहन मिलेगा, जो सूचीबद्धता को लेकर चिंतित थे। लॉक-इन की अवधि में कमी से तरलता की वे चिंताएं दूर होंगी, जिनसे प्रवर्तकों को सूचीबद्धता के बाद दो-चार होना पड़ता है।’
सेबी ने आईपीओ के समय खुलासों का बोझ कम करने के लिए प्र्रवर्तक समूह की परिभाषा से उन कंपनियों को बाहर कर दिया है, जिनके साझा वित्तीय निवेशक हैं। इसके अलावा समूह की कंपनियों के लिए खुलासे की जरूरतें भी कम की गई हैं।
नियंत्रक शेयरधारक : सेबी ने प्रवर्तक की अवधारणा की जगह ‘नियंत्रक शेयरधारक’ की अवधारणा लागू करने पर सैद्धांतिक सहमति जताई है। इससे घरेलू पूंजी बाजारों में एक नया युग शुरू होगा। हालांकि इसके लिए बहुत से मौजूदा नियमनों को दोबारा लिखना होगा, इसलिए यह काम ‘सुचारु, प्रगतिशील और समग्र तरीके’ से किया जाएगा।
ईसॉप्स के ढांचे में ढील: सेबी के बोर्ड ने ‘स्वेट इक्विटी’ और शेयर आधारित कर्मचारी लाभ’ नियमनों को मिलाकर एक नियम बना दिया है, जिसका नाम सेबी (शेयर आधारित कर्मचारी लाभ एवं स्वेट इक्विटी) नियमन, 2021 होगा।

First Published - August 6, 2021 | 11:18 PM IST

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