वित्त वर्ष 2025 में मुनाफा दर्ज करने वाली फिनटेक फर्म भारतपे अपने संभावित आईपीओ से पहले पूंजी जुटाने की योजना बना रही है। कंपनी का आईपीओ वित्त वर्ष 2026 के बाद बाजार में लाने का इरादा है। भारतपे के मुख्य कार्यकारी अधिकारी नलिन नेगी ने यह जानकारी दी।
नेगी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘आईपीओ इस वित्तीय वर्ष में नहीं आने वाला है। लेकिन उसके बाद संभावना है। इससे पहले एक प्री-आईपीओ (फंडिंग) राउंड होगा। यह कब होगा, हम इस पर विचार करेंगे।’ उन्होंने आईपीओ के बारे में कोई समय-सीमा या राशि जुटाने की योजना का जिक्र नहीं किया। उन्होंने कहा कि वे इस क्षेत्र में बाजार की धारणा समझने के लिए आने वाले सभी फिनटेक आईपीओ पर नजर रखेंगे।
अपनी व्यापक रणनीति के तहत भारतपे ने अपनी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) इकाई ट्रिलियनलोन्स में हिस्सेदारी बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर ली है और अगले दो से तीन वर्षों में इस इकाई का पूर्ण स्वामित्व हासिल करने की योजना बना रही है। शेष हिस्सेदारी एनडीएक्स फाइनैंशियल सर्विसेज के पास है। ट्रिलियनलोन्स को भारतपे ने प्रमोट किया है, जो रेजिलिएंट इनोवेशन्स का ब्रांड नाम है।
नेगी ने कहा कि संभावित आईपीओ से पहले उनका लक्ष्य पूरी तरह से शुद्ध लाभ का कारोबार बनाना है, जिसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन भुगतान के साथ-साथ उपभोक्ता खंड सहित अन्य क्षेत्रों का भी महत्त्वपूर्ण राजस्व योगदान हो। इस साल जनवरी में नेगी ने कहा था कि कंपनी की 18 से 24 महीनों में सूचीबद्ध होने की योजना है।
यह योजना ऐसे समय बनाई जा रही है जब कंपनी ने वित्त वर्ष 2025 में 6 करोड़ रुपये का समायोजित कर-पूर्व लाभ दर्ज किया है, जबकि वित्त वर्ष 2024 में उसे 342 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।
दिल्ली की इस कंपनी ने कहा कि उसका एबिटा (ईसॉप खर्च को छोड़कर) वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 141 करोड़ रुपये बढ़ा जबकि वित्त वर्ष 2024 में उसे 209 करोड़ रुपये का एबिटा घाटा हुआ था। कंपनी ने वित्त वर्ष 2025 में 1,667 करोड़ रुपये का परिचालन राजस्व दर्ज किया, जो वित्त वर्ष 2024 में अर्जित 1,426 करोड़ रुपये से 16.9 प्रतिशत अधिक है।
रेजिलिएंट इनोवेशन्स की यूनिटी स्मॉल फाइनेंस बैंक में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है। नियामकीय शर्तों के अनुसार कंपनी को बैंक की लिस्टिंग हो न हो, 2029 तक बैंक में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 10 प्रतिशत करनी होगी। लाइसेंसिंग आवश्यकताओं के अनुसार, भारतपे को बैंक संचालन के आठ वर्षों के भीतर अपनी हिस्सेदारी कम करनी होगी।