म्युचुअल फंडों के फिक्स्ड मेच्योरिटी प्लान (एफएमपी) के वास्तविक पोर्टफोलियो सांकेतिक पोर्टफोलियो से 80-90 फीसदी अलग निकले हैं।
पिछले कुछ महीनों में म्युचुअल फंडों के फिक्स्ड मेच्योरिटी प्लान (एफएमपी) निवेशकों की गंभीर पड़ताल का विषय बन गए हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योकि इनमें से कई फंडों ने एसी स्कीमों के काफी पैसे का निवेश रियल एस्टेट कंपनियों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफसी)के कॉमर्शियल पेपर और बांड में कर रखा है।
ऐसी अफवाह थी कि इनमें से कई कंपनियां पैसा म्युचअल फंडों को समय से नहीं लौटा पाई हैं जिससे स्कीमों को रोलओवर करना पड़ रहा है। इससे यह आशंका भी बढ़ती जा रही है कि कई स्कीमें समय से पैसा अदा करने में नाकाम रहेंगीं।
हालांकि एफएमपी की कहानी इससे आगे भी है। फंड हाउसों ने इस तरह की स्कीमों के लिए कुल 1.5 लाख करोड़ रुपए निवेशकों से जुटाए हैं लेकिन कुछ महीने पहले तक केवल 8-10 फंडों ने ही अपने एफएमपी पोर्टफोलियों का सार्वजनिक किया था।
बल्कि ये फंड केवल सांकेतिक (इंडिकेटिव) पोर्टफोलियो और सांकेतिक रिटर्न ही निवेशकों को बता रहे थे। लेकिन इस महीने इन फंडों को छमाही नतीजों की वजह से अपने पोर्टफोलियो का ऐलान करना पड़ा और निवेशकों को तब हैरत हुई जब उन्होंने पाया कि वास्तविक पोर्टफोलियो सांकेतिक पोर्टफोलियो से 80-90 फीसदी अलग है।
एक व्यक्तिगत हाई नेटवर्थ निवेशक, जिसने हाल में दो फीसदी का एक्जिट लोड अदा कर अपनी काफी बड़ी रकम निकाल ली है, ने बताया कि जब हमने पोर्टफोलियो देखा तो हमारे होश उड़ गए। पहले उन्होंने बताया था कि वे 10-15 बैंकों के सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (सीडी) में निवेश करेंगे लेकिन वास्तविक पोर्टफोलियो के मुताबिक उन्होंने कंपनियों के सीपी और पास थ्रू सर्टिफिकेट में निवेश किया है और बहुत थोड़ा पैसा ही बैंकों में है।
दरअसल सेबी ने इस तरह के इंडिकेटिव और रियल पोर्टफोलियो पर फंडों के लिए कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं जारी किए हैं। लिहाजा इस पर निवेशक कुछ कर भी नहीं पाते। उनका मानना है कि अगर इंडिकेटिव पोर्टफोलियो रियल पोर्टफोलियो से इतना अलग है तो इंडिकेटिव रिर्टन भी वास्तविक रिटर्न से काफी अलग होगा। पिछले हफ्ते ही सेबी ने इस फंडों से ऐसी स्कीमों के पोर्टफोलियो के आंकड़े मांगे हैं।
एक और वजह है जिसको लेकर निवेशक परेशान है और वो है इन स्कीमों का सारा पैसा केवल कुछ कंपनियों में ही लगा दिया गया है, कई मामलों में तो यह पैसा केवल एक या दो ही कंपनियों में लगा है। हालांकि फंड मैनजरों का तर्क है कि अगर कोष 3 से 5 करोड़ ही हो (काफी कम)तो और इंडिकेटिव पोर्टफोलियो में सब नहीं दिया जा सकता।
मिसाल के लिए कई एफएमपी ने 20 करोड़ से ज्यादा रकम इकट्ठा की लेकिन सारा पैसा दो या तीन कंपनियों में ही लगा दिया, कई मामलों में तो निवेश एक ही कंपनी में कर दिया गया है। एक निवेश सलाहकार के मुताबिक पोर्टफोलियो में विविधता का नहीं होना काफी चौंका देने वाला है।
यह समझ में आता है कि उन्होंने रियल एस्टेट और एनबीएफसी के पेपरों में निवेश किया क्योकि इसमें उन्हें ज्यादा रिटर्न मिलने की उम्मीद थी। लेकिन यह बात कतई समझ में नहीं आती कि उन्होंने सारा पैसा केवल एक एनबीएफसी में या फिर केवल दो बैंकों में ही क्यों लगा दिया।
ऐसा केवल छोटे फंड ही नहीं कर रहे हैं। कई बडे फ़ंड हाउस भी ऐसा कर रहे हैं, ऐसे ही कई एफएमपी वाले एक बड़े फंड ने एक ही जगह सारा निवेश किया है। जाहिर है ऐसे में निवेशक फंडों के इस रवैए से खासे नाराज हैं और अपना पैसा एफएमपी में नहीं लगाना चाहते।
एक निवेश सलाहकार ने कहा कि वह अपने क्लायंटों को एफएमपी से निकलने को कहता रहा है। उसके मुताबिक ऐसे माहौल में वह नहीं चाहता कि उसके क्लायंट का जोखिम भरे उत्पादों में निवेश हो।