हिंडाल्को, जो 18,313 करोड़ रुपये का कारोबार करने वाली कंपनी है, के परिणाम शेयर बाजार को परेशान करने वाले रहे।
अलौह धातु एल्यूमिनियम की सपाट कीमतों का मतलब है आशा से कम उगाही। मार्च 2008 की तिमाही में एलएमई पर एल्यूमिनियम का औसत मूल्य करीब 2779 डॉलर रहा।
इसके अतिरिक्त कस्टम डयूटी में दी गई छूट और पिछले एक साल के दौरान रुपये के मूल्य में 10 फीसदी तक की मजबूती से भी कंपनी की टॉपलाइन ग्रोथ पर असर पड़ा। परिचालन लागत और कच्चे माल की कीमतों में कोई गिरावट नहीं आई है और इसके अतिरिक्त एल्यूमिना के उत्पादन में इस्तेमाल में आने वाले कोयला और कोक की कीमतें भी ऊंची बनी हुई है।
इस प्रकार कंपनी की प्रोफिटेबेलिटी दबाव में है और कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन मार्च 2008 की तिमाही में 6.2 फीसदी गिरकर 15.9 फीसदी पर आ गया। कंपनी की राजस्व वृद्धि भी फीकी रही और यह मात्र 5.5 फीसदी बढ़कर 5,010 करोड़ रुपये रही।
वित्तीय वर्ष 2008 में कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 4.2 फीसदी गिरकर 17.7 फीसदी पर आ गया। एल्यूमिनियम सेक्टर की अन्य कंपनी नालको के ऑपरेटिंग मार्जिन में 15.5 फीसदी की गिरावट आई और यह मात्र 44 फीसदी रहा।
हिंडाल्को को प्राप्त कुल राजस्व में एल्यूमिनियम की हिस्सेदारी 37 फीसदी है जबकि कॉपर से शेष 67 फीसदी राजस्व आता है। कॉपर कैथोड और कैथोड रॉड दोनों के ज्यादा उत्पादन के कारण कॉपर डिविजन से प्राप्त राजस्व में 16 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई। इसका परिणाम यह रहा कि इस डिविजन से प्राप्त मार्जिन में भी 0.5 फीसदी का सुधार हुआ और यह 5.4 फीसदी के स्तर पर रहा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कॉपर की सप्लाई कम आपूर्ति केकारण दबाव में रही। हिंडाल्को अपनी क्षमता में तीन गुने का इजाफा कर रही है और अगले दो तीन साल में उसका इरादा 15 लाख टन के स्तर को प्राप्त करना है। कंपनी का अपनी रिफाइनरी की क्षमता को 110,000 टन से बढ़ाकर 450,000 टन करने का भी इरादा है।
हिंडाल्को का एल्यूमिनियम उत्पादन वित्तीय वर्ष 2008 की मार्च तिमाही में आठ फीसदी ज्यादा रहा था। मौजूदा बाजार मूल्य 186 रुपये पर हिंडाल्को के स्टॉक का कारोबार वित्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 16.3 गुना के स्तर पर हो रहा है। इसे भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए। नालको के स्टॉक का कारोबार वित्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 12.55 गुना के स्तर पर हो रहा है।
पूर्वंकरा: मार्जिन का मामला
रियल एस्टेट सेक्टर की कंपनी पूर्वंकरा प्रोजेक्ट का राजस्व 2.2 फीसदी के मामूली इजाफे के साथ 154 करोड़ रुपये हो गया। कंपनी के वॉल्यूम और उगाही में मंदी केकारण कंपनी का मार्जिन धीमा रहा।
कंपनी मुख्यत: आवासीय क्षेत्र को देखती है और दिसंबर 2007 की तिमाही में कंपनी ने 6.7 फीसदी की वास्तविक ग्रोथ जबकि सितंबर 2007 तिमाही में 17 फीसदी की ग्रोथ हासिल की थी। इस बाबत प्रबंधन का कहना है कि ज्यादातर प्रोजेक्ट प्रारंभिक अवस्था में है लिहाजा, अभी और उगाही होनी बाकी है।
पैसे की उगाही खासतौर से इस बात पर निर्भर करती है कि प्रोजेक्ट का कितना फीसदी हिस्सा पूरा किया जा चुका है। लेकिन इस संबंध में विशेषज्ञों का मानना है कि दिसंबर में जहां 58.5 फीसदी की बिक्री हुई थी, वहीं मार्च खत्म होने के बाद भी इस वक्त मौजूदा प्रोजेक्टों में से कुल 62 फीसदी की बिक्री हो पाई है,जो इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि बिक्री में थोड़ी गिरावट आई है।
विशेषकर, कंपनी यह समझने में नाकाम साबित हो रही है कि ऑपरेटिंग कैश क्यों नेगेटिव हैं जबकि फर्म एक्सपोजर का 90 फीसदी हिस्सा आवासीय क्षेत्र में लगा हुआ है। गौरतलब है कि पूर्वंकरा अपने हिस्सेदारों के साथ मिलकर दक्षिण भारत के चार क्षेत्रों में तकरीबन 1 लाख 90 हजार वर्ग किलोमीटर प्रोजेक्ट पर काम कर रही है।
इसके अंतर्गत कंपनी कुल 10,000 अपार्टमेंटों के निर्माण कार्य में लगी हुई है और जिससे कंपनी को वित्त वर्ष 2008-10 तक इकट्ठे ही कमाई होने की उम्मीद है। दूसरी ओर कंपनी के ग्रौस मॉर्जिन में मार्च तिमाही में 250 बेसिस प्वांइट की गिरावट दर्ज की गई।
इस प्रकार, कंपनी के ग्रौस मार्जिन में लगातार दूसरी बार गिरावट दर्ज की गई जिसके बारे में कं पनी का कहना है कि लागत मूल्यों पर पार न पाने के कारण ही ऐसा हो रहा है। आलम यह है कि कंपनी के ऑपरेटिंग प्रॉफिट में 350 बेसिस प्वांइट की कमी दर्ज की गई है जबकि दिसंबर की तिमाही में यह कमी 320 बेसिस प्वांइट की थी।
कंपनी को यह चिंता भी सता रही है कि इसके प्रोजेक्ट का 50 फीसदी हिस्सा चूंकि बेंगलूरु में चल रहा हैं,जबकि वहां आईटी सेक्टर में अभी मंदी का दौर है, जो कंपनी की कमाई को प्रभावित कर सकता है। लिहाजा, जब तक हाउसिंग डिमांड में इजाफे का दौर फि र से तेज नही होता है कंपनी के ग्रोथ की रफ्तार प्रभावित रहेगी।