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बुरे बाजार में अच्छे वैल्युएशंस

Last Updated- December 05, 2022 | 4:36 PM IST


हाल में जर्मनी का एक मेडिकल केस सुर्खियों में रहा था। एक पूरा परिवार एक के बाद एक किसी संक्रामक रोग का शिकार हो रहा था। पता चला घर में पली बिल्ली से उनमें ये रोग फैल रहा है। जब उस बिल्ली का इलाज कर दिया गया तो परिवार की सेहत भी बेहतर होने लगी।

मौजूदा अंतरराष्ट्रीय आर्थिक हालत भी कुल उस जर्मन परिवार जैसी ही है। जब जब लगता है कि अंतरराष्ट्रीय मंदी का हाल कुछ सुधर रहा है, तभी अमेरिकी मंदी और वहा फैला सबप्राइम का रोग फिर से सभी को बीमार करने लगता है और आर्थिक संक्रामकता रोग को समझना और उसका उपचार करना और ज्यादा मुश्किल होता है।


 


एक बुरी खबर और है। मंदी के इस अमेरिकी रोग का भारतीय अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर पड़ना है। इस मार का सबसे ताजा उदाहरण रहा है एल ऐंड टी, अमेरिकी मंदी के खामियाजे के तौर पर उसे अपने पांच करोड़ डॉलर बट्टे खाते में डालने पड़े।


 


 एक अनुमान के मुताबिक अमेरिकी मंदी के असर के तौर पर मार्क टु मार्केट आधार पर भारतीय कंपनियों को करीब तीन अरब डॉलर से ज्यादा के नुकसान के लिए खुद को तैयार करना पड़ सकता है।


 


इसके अलावा हाल में आए औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों से भी साफ हुआ है कि विकास की रफ्तार धीमी पड़ी है। उधर रिजर्व बैंक ज्यादा से ज्यादा समय तक ब्याज दरों में तेजी बनाए रखना चाहता है। राजनीतिक अनिश्चितता अलग रफ्तार को रोकने की कोशिश कर रही है। अगली सरकार किसकी होगी, कौन होगा प्रधानमंत्री, ये सारे सरोकार है विकास की रफ्तार को रोकने के लिए काफी हैं।


 


इन सारी चिंताओं ने शेयर बाजार को भी खासा परेशानी मेंडाल रखा है। निफ्टी वापस 4600 के स्तर पर आ चुका है और 19.7 के पीई पर कारोबार कर रहा है। इसका असर आईपीओ बाजार पर भी दिखा है। हालांकि 2008-09 में 20 फीसदी की अर्निंग्स ग्रोथ रेट के आकलन के हिसाब से निफ्टी के मौजूदा वैल्युएशंस काफी आकर्षक लग रहे हैं।

लेकिन निफ्टी, जो अपने उच्चतम स्तर से करीब 27 फीसदी नीचे है, अभी और नीचे जा सकता है, खासकर यह देखते हुए कि बाजार की मौजूदा आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता अभी कम से कम 12-15 महीने और बनी रहनी है। लेकिन ये बुरी खबर लंबी अवधि के निवेशकों के लिए अच्छा मौका भी है। हर गिरावट को खरीद का मौका मानें।

First Published - March 17, 2008 | 3:56 PM IST

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