बढ़ती आपूर्ति और सीमेंट की मांग में आई कमी की वजह से संस्थागत निवेशकों ने विशेषकर विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बड़ी सीमेंट कंपनियों से अपनी हिस्सेदारी खत्म कर दी है।
इनमें बड़ी सीमेंट कंपनियों में एसीसी और अल्ट्राटेक जैसी सीमेंट कंपनियां शामिल हैं। सीमेंट उद्योग पर सरकार द्वारा पिछले डेढ़ सालों में उठाए गए कदमों का असर पड़ता भी दिखाई देने लगा है। सरकार ने सीमेंट की कीमतों को नियंत्रित करने और महंगाई रोकने के लिए कुछ कड़े कदम उठाए थे।
नई क्षमता के जुड़ने और रियल एस्टेट सेक्टर में आई मंदी की वजह से सीमेंट कंपनियों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। एंजेल ब्रोकिंग के एक सीमेंट विश्लेषक पवन बर्डे का कहना है कि जहां विदेशी संस्थागत निवेशक हर सेक्टर में बिकवाली कर रहे हैं लेकिन सीमेंट सेक्टर में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने जमकर बिकवाली की है। इन विदेशी संस्थागत निवेशकों ने सीमेंट में अतिरिक्त आपूर्ति की वजह से बिकवाली करना बेहतर समझा है।
इसके लिए लगातार जारी सरकारी हस्तक्षेप और लागत बढ़ने की वजह से भी सीमेंट कंपनियों की मुश्किलें बढ़ी हैं।
जनवरी से अब तक सीमेंट की कीमतों में बढ़ोतरी को रोकने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। सबसे बड़ा कदम सरकार ने सीमेंट केनिर्यात में पाबंदी रही है और इसके अलावा सरकार ने सीमेंट में 12 फीसदी का अधिभार भी लगा दिया। हालांकि पिछले साल सीमेंट पर से आयात शुल्क हटा लिया गया था। बर्डे ने कहा कि जनवरी से मार्च की तिमाही में सीमेंट कंपनियों को लागत में 16 फीसदी से भी अधिक वृध्दि का सामना करना पड़ा। सीमेंट की अतिरिक्त आपूर्ति से सीमेंट की कीमतों में गिरावट आ सकती है। इसके साथ ही सीमेंट स्टॉक के भी मार्केट में अंडरपफार्म करने की संभावना है।