इक्विटी फंडों में हालांकि अब भी पैसा आ रहा है लेकिन पहले की तुलना में यह कम जरूर है क्योंकि निवेशक अब सतर्कता बरत रहे हैं।
बाजार में उतार चढाव अच्छा खासा रहा है लेकिन इसके बावजूद छोटे निवेशक इसमें उतरने का लालच रोक नहीं पा रहे हैं। ब्रोकरेज फर्म मॉर्गन स्टेनली के आंकड़ों के मुताबिक इक्विटी फंडों में लगातार सातवें महीने फंड का इनफ्लो बना रहा है।
अप्रैल के महीने में इक्विटी फंडों में 600 करोड़ रुपए के करीब निवेश हुआ है। इस साल के पहले चार महीनों की बात करें तो पिछले साल की तुलना में यह इनफ्लो यानी निवेश अब तक 250 फीसदी तक बढ़ चुका है। बारह महीनों के ट्रेलिंग आधार पर भी यह निवेश करीब 49,800 करोड़ का रहेगा जो पिछले 12 महीनों के निवेश से 81 फीसदी ऊपर है।
हालांकि अप्रैल 2008 की बात की जाए तो इस महीने इक्विटी फंड में निवेश करीब 91 फीसदी घट गया है और यह पिछले छह महीनों में सबसे कम है। इसकी सबसे खास वजह रही है कि न्यू फंड ऑफर्स में इस दौरान कम पैसा आया है, इन नए ऑफर्स में इस दौरान करीब 80 फीसदी कम निवेश हुआ है।
जनवरी में जब बाजार अपने सबसे ऊंचे स्तर पर थे तब न्यू फंड के ऑफरों में करीब 12,079 करोड़ रुपए का निवेश हुआ था। लेकिन अप्रैल में फंडों में कुल निवेश 5010 करोड़ रुपए का ही रहा। इसके अलावा म्युचुअल फंडों की जो स्कीमें चल रही थीं उनमें भी लोगों ने कोई रुचि नहीं दिखाई और उनमें भी इस दौरान कम पैसा आया है।
पिछले कुछ महीनों के आंकडे देखें तो साफ पता चलता है कि माह दर माह इनमें होने वाले निवेश की रकम गिरती रही है और यह ट्रेंड से यह भी साफ होने लगा कि छोटे निवेशक शायद बाजार के इस माहौल से घबराए हैं और इस समय पैसा नहीं लगा रहे हैं। इक्विटी फंडों के असेट इन फंडों के कुल असेट अंडर मैनेजमेंट का केवल 33 फीसदी हैं, और यह अनुपात पिछले नौ महीनों में सबसे कम है।
अब अप्रैल में शेयर बाजार में सुधार देखे जाने के बाद म्युचुअल फंड उद्योग का औसत असेट अंडर मैनेजमेंट बढ़कर 5,67,601 करोड़ रुपए हो गया है। जानकारों का मानना है कि इन फंडों में हो रहा इनफ्लो यानी निवेश इसलिए है कि ज्यादातर निवेशकों ने सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी ले रखी है।
एसआईपी में निवेशकों को पोस्ट डेटेड चैक फंड को देने पड़ते हैं यानी यह पैसा आना पहले से ही आना तय हो चुका होता है। एसआईपी में निवेश का एक बड़ा फायदा यह है कि एक तय अवधि में निवेशक को औसत कीमत का फायदा मिल जाता है। पिछले कुछ महीनों में म्युचुअल फंडों में पैसा आने से यह फंड अब अच्छे खासे कैश पर बैठे हैं, और यही वजह है कि ये बाजार में विदेशी निवेशकों से ज्यादा खरीदारी कर रहे हैं।
घरेलू म्युचुअल फंडों ने इस दौरान करीब 3000 करोड़ रुपए की खरीदारी की है जबकि पिछले साल इस दौरान इन फंडों ने 1000 करोड़ रुपए की बिकवाली की थी। दूसरी ओर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई)ने जनवरी 2008 से अब तक करीब 11,000 करोड़ की बिकवाली की है जबकि पिछले साल इस दौरान उन्होने करीब 13,000 करोड़ की खरीदारी की थी।
इस समय इन फंडों के पास मार्च की तुलना में करीब 25 फीसदी कैश ज्यादा है। और अपने कुल कॉर्पस यानी असेट के फीसदी के अनुपात में भी देखा जाए तो इसमें 1 से 12 फीसदी का इजाफा आ गया है। इस दौरान गोल्ड ईटीएफ ने सबसे ज्यादा (35 फीसदी)रिटर्न दिया है और सोने की कीमतों में तेजी इसकी वजह रही है।
सेक्टरों की बात करें तो बैंकिंग सेक्टर के फंड ने सबसे ज्यादा 29.55 फीसदी का रिटर्न दिया है जबकि ऑटो और टेक्नोलॉजी फंडों ने गिरावट देखी है। इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंडों ने भी अच्छे रिटर्न दिए हैं और बाजार के सेंटिमेंट में सुधार के साथ ही फंड हाउस अब न्यू फंड ऑफर बाजार में उतार सकते हैं।