Drop in Block deal: बाजार में अनिश्चितता बढ़ने से देसी शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों के थोक सौदे भी कम हो रहे हैं। नवंबर में थोक सौदे यानी ब्लॉक डील घटकर 25,669 करोड़ रुपये रह गए जो 6 महीने में सबसे कम है। उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि बड़े संस्थागत खरीदारों की सौदे में कम दिलचस्पी को देखते हुए कई निजी इक्विटी फर्में, प्रवर्तक इकाइयां और अन्य निवेशक अपनी शेयर बिक्री योजना फिलहाल टाल दी हैं।
फरवरी 2023 के बाद बेंचमार्क निफ्टी पहली बार इस साल नवंबर में लगातार दूसरे महीने नुकसान में रहा। वर्ष 2024 के पहले 10 महीनों में शेयर बाजार के जरिये हर महीने औसतन 57,000 करोड़ रुपये की शेयर बिक्री हुई थी मगर उसके बाद से थोक सौदों में कमी देखी जा रही है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा लगातार बिकवाली, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कंपनियों की आय वृद्धि निराशाजनक रहने और डॉलर में मजबूती आने से बाजार में गिरावट के साथ ही शेयर बिक्री पर असर पड़ा है।
अक्टूबर में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने करीब 92,000 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी और पिछले महीने भी उन्होंने 10,000 करोड़ रुपये की निकासी की। अगर एफपीआई ने प्राथमिक बाजार यानी आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों में निवेश नहीं किया होता तो उनकी बिकवाली का आंकड़ा और बढ़ सकता था।
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के बाद से अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ रही है और डॉलर भी मजबूत हो रहा है, जिसके कारण एफपीआई भारत जैसे उभरते बाजारों से अपना निवेश घटा रहे हैं।
एसबीआई कैपिटल मार्केट्स में ईवीपी और ग्रुप हेड (ईसीएम) दीपक कौशिक के अनुसार बाजार में चौतरफा बिकवाली और गिरावट से शेयरों के थोक सौदों में कमी आ रही है। उन्होंने कहा, ‘जब आपको कम मूल्य मिलता है तो योजना पर असर पड़ता है। यही वजह है कि कुछ ने शेयर बिक्री की योजना फिलहाल रोक दी है और कुछ ने इसे अनिश्चित समय के लिए टाल दिया है।’
सूचीबद्ध कंपनियों के मौजूदा शेयरधारकों को ब्लॉक डील या थोक सौदों के लिए स्टॉक एक्सचेंजों पर अलग से सुविधा प्रदान की जाती है। इस तरह के सौदों में म्युचुअल फंड और अन्य संस्थागत निवेशक बड़ी संख्या में शेयर खरीद सकते हैं और इससे बाजार में शेयर भाव पर भी ज्यादा असर नहीं पड़ता है।
बाजार के भागीदारों के अनुसार बाजार में जब तेजी का दौर रहता है और पर्याप्त नकदी उपलब्ध होती है तो ब्लॉक डील की भी भरमार रहती है। एफपीआई की बिकवाली के दबाव से बेंचमार्क निफ्टी 27 सितंबर को रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद से करीब 10 फीसदी टूट चुका है। इस दौरान एफपीआई ने भी 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बिकवाली की है।
हालांकि कुछ बैंकर थोक सौदों में कमी के लिए तकनीकी कारण जैसे नतीजों के सीजन को जिम्मेदार बता रहे हैं। नियम के अनुसार कंपनियों से जुड़े लोग नतीजों की घोषणा होने से पहले शेयर नहीं बेच सकते।
इक्विरस में प्रबंध निदेशक अजय गर्ग ने कहा, ‘नतीजे घोषित होने से पहले कंपनी के अंदर के लोग शेयरों की बिक्री नहीं कर सकते। दिसंबर के अंत तक थोक सौदों में तेजी आ सकती है। शेयरों के भाव में भी गिरावट आई है। ऐसे में बेहतर कीतम चाह रहे बिकवाल बिक्री टाल रहे हैं।’
थोक सौदों में भले ही कमी आई है मगर आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) का बाजार गुलजार है। अक्टूबर में 6 आईपीओ के जरिये कंपनियों ने 38,686 करोड़ रुपये जुटाए और नवंबर में 7 आईपीओ से 30,927 करोड़ रुपये जुटाए। बैंकरों ने कहा कि जो कंपनियां सूचीबद्ध होना चाहती हैं वे मूल्यांकन को थोड़ी कमी करने को तैयार हैं क्योंकि उन्हें विस्तार के लिए पूंजी की जरूरत है।
कौशिक ने कहा, ‘जहां तक आईपीओ की बात है तो किसी भी कंपनी ने अपनी योजना नहीं टाली है।’ नवंबर में बड़े थोक सौदों में सनोफी कंज्यूमर हेल्थकेयर और विप्रो प्रमुख रहे। दोनों ही सौदों में प्रवर्तक इकाइयों ने अपने शेयर बेचे हैं। निजी इक्विटी फर्म पीएनबी हाउसिंग फाइनैंस में थोक सौदों में बड़ी हिस्सेदारी बेची गई है।