पिछले पांच साल के दौरान निवेश में करीब आधा लाख करोड़ रुपये का इजाफा होने के बावजूद भारतीय म्युचुअल फंडों में प्रवासी भारतीयों (NRI) और वैश्विक निवेशकों का योगदान घटा है।
बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा भारत में म्युचुअल फंडों के संगठन (Amfi) के आंकड़े के विश्लेषण से पता चलता है कि इस सेगमेंट के लिए म्युचुअल फंड निवेश दिसंबर 2018 तक जहां 0.95 लाख करोड़ रुपये था, वहीं दिसंबर 2022 तक यह बढ़कर 1.54 लाख करोड रुपये हो गया। हालांकि समान अवधि के दौरान संपूर्ण म्युचुअल फंड परिसंपत्तियों में उनकी भागीदारी 4.2 प्रतिशत से घटकर 3.9 प्रतिशत रह गई।
पीपीएफएएस म्युचुअल फंड में चेयरमैन एवं मुख्य कार्याधिकारी नील पराग पारेख का मानना है कि वित्तीय तकनीक (फिनटेक) उद्यमों की वजह से घरेलू निवेशकों के लिए निवेश तक आसान पहुंच से प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियों (AUM) की घरेलू भागीदारी बढ़ी है, और इसका वैश्विक निवेशकों के योगदान पर प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 वर्षों के दौरान, हमने देखा कि बड़ी तादाद में नए निवेशक शामिल हुए। बाजार आकर्षक था और फिनटेक ने निवेश की राह आसान बना दी थी।’
परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी के बिक्री प्रमुख के अनुसार, महामारी के दौरान अमेरिका जैसे विकसित बाजारों में ऊंचे प्रतिफल ने भी भारत में विदेशी पूंजी प्रवाह की रफ्तार कुछ हद तक सुस्त बनाए रखी।
उन्होंने कहा, ‘यही एक वजह हो सकती है कि पूंजी प्रवाह भारत के बजाय अमेरिकी बाजार तक क्यों सीमित बना रहा। इसके अलावा, रुपया भी 2022 में तेजी से गिरा है। इन कारकों से एनआरआई निवेशकों से प्रवाह प्रभावित हुआ है।’
नैस्डैक कम्पोजिट सूचकांक दिसंबर 2019 से दिसंबर 2022 के बीच 17 प्रतिशत मजबूत हुआ था। कई टेक्नोलॉजी कंपनियों के शेयरों में अच्छी तेजी दर्ज की गई। एमएससीआई यूएसए इंडेक्स समान अवधि के दौरान 18 प्रतिशत तक चढ़ा।
भारतीय रुपया दिसंबर 2019 में डॉलर के मुकाबले 71.4 पर था, वहीं दिसंबर 2022 तक यह गिरकर 82.7 पर आ गया। रुपये में कमजोरी आने से विदेशी निवेशकों के लिए प्रतिफल घटता है।
म्युचुअल फंडों में निवेशक खातों की संख्या जहां महामारी से पहले 2018 और 2019 में करीब 8-9 लाख थी, वहीं दिसंबर 2022 में यह बढ़कर 14 लाख पर पहुंच गई। कुल प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियां समान अवधि के दौरान 23 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 40 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गईं।
इस अवधि के दौरान कुछ समस्याओं की वजह से भी वैश्विक निवेशकों की निवेश क्षमता प्रभावित हुई थी। एनआरआई निवेश फॉरेन अकाउंट टैक्स कम्पलायंस ऐक्ट (फाटका) की वजह से भी प्रभावित हुआ।
इससे अमेरिकी नागरिक या निवासी से पूंजी स्वीकार करने वाले किसी संस्थान पर अनुपालन की जिम्मेदारी बढ़ गई। उसे किसी संभावित समस्याओं की जानकारी अमेरिकी कर विभाग को देना अनिवार्य कर दिया गया है। ये नियम इंडिविजुअल और नॉन-इंडिविजुअल, दोनों के मामले में लागू हैं।