सीमेंट कंपनियों के लिए यह मुश्किल समय चल रहा है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के नई ऊंचाइयों के छूने की वजह से उन्हें ज्यादा ढुलाई देनी पड़ेगी।
हालांकि साल 2008 के अंत तक ताजा उत्पादन आने पर सीमेंट की कीमतों में सुधार होने के आसार हैं। सीमेंट कंपनियों को अपनी उत्पादन लागत में 25 फीसदी ढुलाई भाड़े के रुप में देना पड़ता है। विश्लेषकों का अनुमान है कि वित्त्तीय वर्ष 2009 तक 150 लाख टन ज्यादा सीमेंट उपलब्ध होगी।
ग्रैसिम और अल्ट्राटेक भी अगले साल से सीमेंट के कारोबार में प्रवेश करने जा रहे हैं। जबकि इस साल अप्रैल-मई में खपत में सालाना 7.5 फीसदी का सुधार देखा गया लेकिन आगे हाउसिंग सेक्टर में मंदी की आशंका के चलते मांग के कम रहने के आसार हैं। हालांकि औद्योगिक ईकाइयों द्वारा निर्माण की मांग के मजबूत रहने की संभावना है लेकिन अतिरिक्त आपूर्ति की खपत हो पाना मुश्किल है। इस प्रकार एक सीमेंट की बोरी पर पांच से सात फीसदी कम वापसी होने की संभावना है।
इसके अलावा लागत जैसे कोयले के दामों में पिछले साल की तुलना में 15 फीसदी से भी ज्यादा वृध्दि का भी सीमेंट कंपनियों की सेहत पर प्रभाव पड़ा है और इससे उनके लाभ पर प्रभाव पड़ा है। 3,044 करोड़ की इंडिया सीमेंट के सालाना ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन में 1.9 फीसदी की गिरावट देखी गई और यह घटकर 31 फीसदी के स्तर पर आ गया। हालांकि 2,011 करोड़ की मद्रास सीमेंट ने बेहतर प्रदर्शन किया और उसके लाभ 31 फीसदी से भी ज्यादा का सुधार देखा गया।
7,067 करोड़ की एसीसी सीमेंट के कारोबारी आंकड़ें बाजार की आशाओं के अनुरुप नहीं रहे। कंपनी की कुल बिक्री सिर्फ सात फीसदी बढ़कर 1,796 करोड़ रही। कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 4.1 फीसदी गिरकर 26.2 फीसदी पर आ गया। सीमेंट कंपनियों का मूल्यांकन डिमांडिंग नही है इसलिए उनके शेयर की कीमतों में तेज गिरावट देखी गई।
उदाहरण के लिए अंबुजा सीमेंट का 75 रुपए पर कारोबार उसकी वित्त्तीय वर्ष 2008 में अनुमानित आय से महज नौ गुना के स्तर पर हो रहा है। जबकि मद्रास सीमेंट का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से नौ गुना पर हो रहा है। जबकि 131 रु पर इंडिया सीमेंट का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 5.5 गुना के स्तर पर हो रहा है।