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एनाम ब्रोकिंग के प्रमुख धर्मेश मेहता की बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत

Last Updated- December 07, 2022 | 12:43 AM IST

एनाम के प्रमुख धर्मेश मेहता अनुभवी ब्रोकर हैं और उनके पास दो दशकों का निवेश अनुभव है। मेहता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से ब्रोकिं ग उद्योग के बदलते परिदृश्य और भविष्य की चुनौतियों पर बात की।


उन्होंने इस पर भी विस्तार से चर्चा की कि बिना किसी विदेशी गठजोड़ के आखिर एनाम क्यों सफल है।  उन्होंने ब्रोकिंग उद्योग पर पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा भी की। भारतीय ब्रोकिंग उद्योग का चेहरा बहुत तेजी से बदल रहा है और यह एक दशक पहले के ब्रोकिंग उद्योग से पूरी तरह अलग है।

भारतीय ब्रोकरों के लिए भविष्य किस प्रकार बदल रहा है?

भारतीय ब्रोकरों में आज नए तरह का आत्मविश्वास है क्योंकि इससमय ब्रोकिंग उद्योग बहुत महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है । जिन निवेशकों ने पहले आई मंदी के दौर में खुद को बचा लिया,उनका भाग्य बन गया। इसकी वजह है कि तब से ब्रोकिंग उद्योग केराजस्व में कई गुना का इजाफा हो चुका है।

अब बड़े घरेलू ब्रोकिंग फर्म भी प्रतिभाओं को अपनी ओर खींच रहे यहां तक कि विदेशी ब्रोकिंग फर्म की प्रतिभाओं को भी। इसके अलावा वे कर्मचारियों को ब्रोकिंग कंपनी में हिस्सेदारी भी उपलब्ध करा रही हैं। इसके अलावा छोटी ब्रोकिंग कंपनियों ने भी अपनी मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग का तरीका बदल दिया है। सभी ब्रोकिंग कंपनियां वैल्यू एडेड सेवाओं पर फोकस कर रही है।

एनाम हमेशा से ब्रोकिंग बाजार का एक प्रमुख खिलाड़ी रहा है लेकिन अभी तक आपने किसी भी प्रकार का विदेशी गठजोड़ नहीं किया है?

हां,लंबे समय से बाजार में हमारी अच्छी खासी हिस्सेदारी रही है और हम अपनी हिस्सेदारी को बरकरार रखेंगे। हम संस्थागत और वैयक्तिक दोनों सेगमेंट में 25 फीसदी हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़े वितरक हैं।

भारत में निवेश में शोध को शुरु करने का श्रेय एनाम को ही जाता है और हमारी ब्रोकिंग कंपनी अपने शोधों की क्वालिटी और विचारों के लिए जानी जाती है। हमने ही सबसे पहले टेक्नोलॉजी, मीडिया,रिटेल,रियल एस्टेट सीमेंट और पॉवर जैसे क्षेत्रों में निवेश करना शुरु किया।

ब्रोकिंग उद्योग के सामने कौन सी चुनौतियां है?

आने वाले दिनों की सबसे बड़ी चुनौती योग्य प्रतिभाओं की कमी और उपयुक्त अधिसंरचना का अभाव है। आगे चलकर टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी और घरेलू ब्रोकिंग कंपनियों को खुद को नई तकनीकों से लैस करना पड़ेगा। घरेलू ब्रोकिंग कंपनियों के उत्पादों गहराई भी एक बड़ा मामला है। 

हालांकि एफआईआई पर ऐसी कोई पाबंदी नही है जिससे राजस्व में बाधाएं उत्पन्न हो। जैसे जैसे भारत में म्युचुअल फंड उद्योग बदल रहा है,वर्तमान रोक पर विचार करने की जरुरत है।

डायरेक्ट मार्केट एक्सेस (डीएमए) का छोटे निवेशकों पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है?

डीएमए मूलरुप से उन निवेशकों केलिए है जिनके पास निवेश की लंबी योजनाएं है। इस कदम से प्रापियेटरी कारोबार या आर्बिटेज कारोबार कम आकर्षक और ज्यादा प्रतियोगी हो जाएगा।

विनियामक आईपीओ के प्रावधानों में कुछ फेरबदल करने जा रहा है जैसे आईपीओ लाने के पहले 100 फीसदी पेमेंट के बारे में प्रावधान, क्या इससे आईपीओ बाजार प्रभावित होगा?

ये प्रावधान सिस्टम के लिए अच्छे हैं। इससे यह परिवर्तन होगा कि योग्य निवेशक ही आईपीओ खरीद पाऐंगे और आईपीओ की ओवरसब्सक्रिप्शन का अनुपात भी घटेगा। यह आईपीओ बाजार की स्थायित्व के लिए ठीक है। 

सेकंडरी बाजार पर आपकी क्या राय है?

यद्यपि वैश्विक दृष्टि से तरलता बनी हुई है लेकिन मानसून तक बाजार में एक दायरे में ही कारोबार होगा। बाजार केसही दिशा में संचालन के लिए महंगाई,तेल की कीमतें और चुनाव प्रमुख बाधाएं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उतार-चढ़ाव के हालात बने रहेंगे।  तेल एवं गैस,खनन,विनिर्माण और इंजीनियरिंग जैसे कुछ क्षेत्र हैं जिनके आउटपरफार्म करने के आसार हैं।

First Published - May 20, 2008 | 10:05 PM IST

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