बडे ब्रोकिंग फर्में अपनी एनबीएफसी को मार्जिन फंडिंग की वजह से हुए नुकसान का अब भी खुलासा नहीं कर रही हैं।
इन एनबीएफसी को इस साल के शुरुआती महीनों में बाजार की गिरावट से मार्जिन फंडिंग पर काफी नुकसान झेलना पड़ा था। अब ये ब्रोकिंग फर्में इसका खुलासा करने के बजाए इस नुकसान के बहुत बड़े हिस्से को लोन्स अंडर रिकवरी यानी वसूला जाने वाले कर्ज के मद में डाल कर इसे कैरी फार्वर्ड कर रही हैं और इस नुकसान के एक छोटे से हिस्से को ही बैड डेट यानी डूबे हुए कर्ज के मद में डाल रही हैं।
जानकारों का कहना है कि इस तरह से ये फर्में इस नुकसान के लिए भारी प्रोवीजन करने से बच सकती हैं और इससे इनके शेयर भावों पर भी ज्यादा असर नहीं होगा, क्योंकि अगर ये फर्में भारी नुकसान दिखाती हैं तो इनके शेयर भाव टूट सकते हैं।
इन्वेस्टमेंट एजवाइजर एस पी तुल्स्यान के मुताबिक इन ब्रोकिंग फर्मों ने प्रोवीजनिंग और नुकसान के आंकड़े जारी किये हैं वो मार्जिन फंडिंग कारोबार का एक फीसदी भी नहीं है। और ये ऐसे समय पर हुआ है जब बाजार इस कदर गिरा है और लिक्विडी की समस्या अभी बरकरार है।
चार्टर्ड एकाउंटेंटों का कहना है कि ब्रोकिंग फर्में अपना नुकसान अगले 6-8 तिमाहियों तक कैरी फार्वर्ड कर सकते हैं लेकिन इसके बाद उन्हे यह आंकड़े अपने खातों में दिखाने ही होंगे। हालांकि अगर मामला अदालत में जा चुका हो तो अपने ऐसे कर्ज को वो दो साल बाद भी नुकसान के रूप में दिखाने से बच सकते हैं।
लिहाजा ये फर्में हर तिमाही थोड़ी थोड़ी रकम का प्रोवीजन एनपीए के लिए करते रहेंगे ताकि कोई बड़ा नुकसान न लगे। इसके अलावा अपने इस नुकसान को वो आने वाली तिमाहियों के मुनाफे से भी भरने की कोशिश करेंगे।
पिछले तीन साल में जब शेयर भाव तेजी से बढ़ रहे थे तब बड़े ब्रोकिंग फर्मों की एनबीएफसी ने निवेशकों को 18-24 फीसदी तक के ब्याज पर पैसा देकर खूब मुनाफा कमाया है। इन एनबीएफसी ने जहां ब्याज का फायदा उठाया वही इन ब्रोकिंग फर्मों ने शेयर सौदों के कमीशन का खूब फायदा उठाया। एक अनुमान के मुताबिक जब सेंसेक्स 20 हजार से ऊपर था तब मार्जिन फंडिंग का कारोबार करीब 10 हजार करोड़ का था।
तब चूंकि ब्रोकर अपने क्लायंट्स को जमकर कर्ज दे रहे थे तो यह कारोबार जबरदस्त तरीके से फूला फला। इसमें निवेशक को थोड़ा सा ही पैसा लगाना होता है और बाकी की फंडिंग इन ब्रोकिंग फर्मों की एनबीएफसी कर देती हैं और शेयर एनबीएफसी के नाम ही होते हैं। और बाजार में तेजी आने पर होने वाले मुनाफे का एक हिस्सा निवेशक का हो जाता है और फर्म को अपने फंड के साथ साथ उस पर ब्याज भी मिल जाता है ।
लेकिन जब बाजार टूटा तो ये सारा सिस्टम ही बैठ गया और इन ब्रोकिंग फर्मों को भारी नुकसान झेलना पड़ा, आज हालत ये हैं कि इन फर्मों के पास एनपीए का अंबार लगा है और वो अपना पैसा निवेशकों से वापस लेने के लिए कोर्ट का सहारा ले रहे हैं, लेकिन ऐसे केस लंबे चलते हैं।