देश की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी ने अपने गगल(हिमांचल प्रदेश) स्थित प्लांट में उत्पादन को 15 दिन के लिए रोक दिया तो इसमें शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ हो।
सीमेंट की मांग कम होती जा रही है। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि कंपनी क्लिंकर का ढेर नहीं लगाना चाहता। क्लिंकर सीमेन्ट बनाने में इस्तेमाल होता है।
इस साल अप्रैल से लेकर नवंबर के बीच देश के सीमेंट प्लांट में उत्पादन कुल क्षमता का 86 फीसदी (स्रोत: सीएमए)रहा जो 2007 की तुलना में कम रहा जब यह उत्पादन क्षमता का 95 फीसदी था।
एसीसी का डिस्पैच साल दर साल के आधार पर सिर्फ तीन फीसदी ही बढ़ा। सीमेंट के उपभोग में कुल 50 का योगदान देने वाला रियल एस्टेट क्षेत्र मंदी से जूझ रहा है।
इसके चलते सीमेंट क्षेत्र के लिए 6-7 फीसदी से अधिक की वृध्दि दर अर्जित करने की संभावना कम ही है जो पिछले साल की 10 फीसदी वृध्दि दर की तुलना में बेहद कम है।
इसके साथ ही अगले 8-12 माह में 2-2.5 करोड़ टन सीमेंट बाजार में आने वाली है। इससे यह तो तय ही है की सप्लाई की तुलना में मांग कमजोर बनी रहेगी। पिछले दिनों में एसीसी समेत सभी प्रमुख सीमेंट कंपनियों ने सीमेंट की कीमतों में 2-5 रुपये प्रति बोरी दाम कम किए थे।
यह कटौती मांग को बढाने में सफल नहीं रहेगी। नतीजतन कुछ और समय तक कीमतों में दबाव बना रहेगा। लागत की बात करें तो रेलवे ढुलाई आठ फीसदी बढ़ने से कंपनियों की ट्रांसपोर्टेशन लागत बढ़ गई है। 7,067 करोड़ रुपये की एसीसी ने सितंबर 2008 तक जारी वर्ष के नौं महीनों में 9 फीसदी विकास दर अर्जित की।
इससे यह साफ है कि कंपनी की टॉपलाइन ग्रोथ 2007 में अर्जित 20 फीसदी दर की तुलना में बेहद कम रहने वाली है। आयातीत कोयले की कीमतों में हुई भारी गिरावट से सीमेंट निर्माताओं को बेहद राहत मिलने की उम्मीद है।
हालांकि पिछली तिमाही में एसीसी को इसका आधिक लाभ नहीं हुआ था क्योंकि उसने ऊंची कीमत पर इसका स्टॉक किया था।
सितंबर तक तक केनौं महीनों में कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन (ओपीएम) जो 6.3 फीसदी गिरकर 22.3 फीसदी हो गया था और मुनाफा 14 फीसदी गिरकर 839 करोड़ रुपये हो गया था वह दिसंबर की तिमाही में इसी लेवल पर बना रह सकता है।
याने इस कंपनी के लिए पिछले साल अर्जित 1,427 करोड़ रुपये के शुध्द मुनाफे के स्तर को बरकरार रखना मुश्किल होगा।
इन्फो एज: राह नहीं आसां
अब 218 करोड़ रुपये की कंपनी इन्फो एज की टीम को पहले से ज्यादा मेहनत करनी होगी। अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है और उसी के साथ नौकरियां कम हो रही हैं। उसके पोर्टल नौकरी डॉट कॉम पर इसका बुरा असर पड़ा है जो कंपनी की टॉपलाइन में 90 फीसदी का योगदान देता है।
कंपनी का राजस्व भी धीमी गति से बढ़ रहा है। जारी वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में सितंबर तक राजस्व में सिर्फ 30 फीसदी का इजाफा ही हुआ है।
जो वर्ष 2007-08 में 57 फीसदी रहा था। नौकरियों का बाजार कमजोर चल रहा है इसलिए मॉर्गन स्टैन्ले का कहना है कि कंपनी का राजस्व 2009-10 में और कम हो सकता है।
यही कारण थे जिसके चलते कंपनी का शेयर जनवरी से अब तक 71 फीसदी गिरा जबकि इस साल सेंसेक्स 50 फीसदी ही नीचे आया। इंफो एज की समस्या आईटी क्षेत्र से प्रारंभ हुई जहां एमफेसिस ने अपने हायरिंग के लक्ष्य को 50 फीसदी घटा दिया। अन्य कंपनियां भी नई भर्तियां कम कर रहीं हैं।
इसके बजाय वे अपने मौजूदा स्टॉफ को ही अधिक दक्ष बनाने का प्रयास कर रहीं हैं। इसके साथ कर्मचारियों के नौकरियां बदलने की दर भी बहुत कम हो गई है क्योंकि अधिकांश कर्मी अपने मौजूदा नियोक्ता के साथ ही बने रहना चाहते हैं।
नौकरी डॉट काम को मिलने वाले राजस्व में एक चौंथाई हिस्सा आईटी क्षेत्र से आता है। इसलिए उसके राजस्व में होने वाली वृध्दि इस पर निर्भर करेगी कि ये टेक फर्म अधिक लोगों को हायर करना शुरु कर दें। दुर्भाग्य से मौजूदा हालात में दूसरे क्षेत्रों में भी नए लोगों को कम ही हायर किया जा रहा है।
इसलिए नौकरी की तलाश में नौकरी डॉट कॉम आने वालों को मिलने वाली नौकरियां इसी बात पर निर्भर है कि कंपनियां अपने रोजगार देने की दर में इजाफा करे। वर्ष 2007-08 में नौकरी डॉट कॉम के क्लाइंटों की संख्या 23 फीसदी बढ़कर 18,500 हो गई थी।
मॉर्गन स्टैन्ले के अनुसार यह वृध्दि इस साल महज तीन फीसदी ही रहने वाली है। इन्फो एज के दो अन्य पोर्टल भी हैं।?ये दोनों पोर्टल जीवनसाथी डॉट कॉम और 99 एकड़ डॉट कॉम फिलहाल निवेश के चरण से ही गुजर रहे हैं और दोनों से ही उसे घाटा हो रहा है।