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NDA के वादे और वित्तीय सीमाएं: ‘विकसित बिहार’ का सपना कितना संभव?

राजग के घोषणापत्र में विभिन्न वादों के जरिये बेहतर बुनियादी ढांचे की कनेक्टिविटी और शहरी विकास की बात की गई थी

Last Updated- November 14, 2025 | 11:00 PM IST
Nitish Narendra
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

बिहार बड़े राजकोषीय घाटे और कम पूंजीगत व्यय से जूझ रहा है। ऐसे में भले ही इन विधान सभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को भारी जीत मिली हो, उसके लिए अपने ‘संकल्प पत्र’ (घोषणापत्र) के वादे पूरे करना आसान नहीं होगा। राज्य की वित्तीय स्थिति उसके लिए रोड़े का काम कर रही है।

राजग के सामूहिक घोषणापत्र में ‘विकसित बिहार’ के लिए 25 प्रमुख वादे दिए गए थे, जिनमें समाज के कमजोर वर्गों को प्रत्यक्ष अंतरण भुगतान देने की कई पहलें और बुनियादी ढांचे की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने, विनिर्माण आधार बनाने और राज्य में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए पूंजीगत व्यय बढ़ाने से जुड़ी कई योजनाएं शामिल हैं।

राजग के घोषणापत्र में विभिन्न वादों के जरिये बेहतर बुनियादी ढांचे की कनेक्टिविटी और शहरी विकास की बात की गई थी जिनमें एक्सप्रेसवे का निर्माण, रेलवे सेवाओं का आधुनिकीकरण, मेट्रो और नमो रैपिड रेल सेवाओं की शुरुआत, नए अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों का विकास, न्यू पटना में सैटेलाइट टाउनशिप और ग्रीनफील्ड सिटी का निर्माण, राज्य में ‘शिक्षा नगरी’ और ‘स्पोर्ट्स सिटी’ का विकास और हर जिले में मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ एक विश्व स्तरीय मेडि-सिटी की स्थापना करने की बात शामिल है।

मगर बिहार में धन की कमी राजग की इन योजनाओं में मददगार साबित नहीं हो सकती है। वर्ष 2024-25 (संशोधित अनुमानों) में बिहार का लगभग 86 प्रतिशत कुल व्यय राजस्व प्रकृति का था, जिसमें पूंजीगत परिव्यय राज्य के कुल व्यय का सिर्फ 13.34 प्रतिशत था। वर्ष 2025-26 में पूंजीगत परिव्यय के लिए बजट का हिस्सा महज 13.78 प्रतिशत था। इसमें 85.69 प्रतिशत हिस्सा राजस्व व्यय के मद में जा रहा था। इस बीच वर्ष 2024-25 (संशोधित अनुमानों) में बिहार की राजस्व प्राप्तियों के हिस्से के रूप में कर राजस्व महज 22.2 प्रतिशत था। ऐसे में बिहार सरकार के पास विकास व्यय पर खर्च करने के लिए अधिक क्षमता नहीं है।

इसके अलावा राजग ने बिहार में महिलाओं, गरीबों और पिछड़े वर्गों से मुफ्त योजनाओं का वादा किया था। इनमें गरीबों के लिए ‘पंचामृत’ गारंटी, महिलाओं को 2 लाख रुपये की वित्तीय सहायता देने के लिए मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना, किसानों को प्रति वर्ष 3000 रुपये देने के लिए कर्पूरी ठाकुर किसान सम्मान निधि और अत्यंत पिछड़े वर्गों के स्वामित्व वाले विभिन्न कारोबारी समूहों को दी जाने वाली 10 लाख रुपये की सहायता शामिल थी।

इससे राज्य की नाजुक राजकोषीय स्थिति पर और भी अधिक दबाव पड़ेगा जो पहले से ही वर्ष 2024-25 में 4.15 प्रतिशत घाटे में था। वर्ष 2024-25 में बिहार में राजस्व घाटा भी था। इसलिए ऐसी मुफ्त योजनाओं को यदि लागू किया जाता है तब राज्य के राजस्व संतुलन पर आगे और दबाव पड़ेगा।

राजग ने रोजगार के 1 करोड़ से अधिक अवसर देने का भी वादा किया, जिसमें सरकारी नौकरियां शामिल थीं। साथ ही नई तकनीक विनिर्माण इकाइयों और औद्योगिक पार्कों की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया गया। बिहार में बेरोजगारी दर वर्ष 2023-24 में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले घटकर 3 प्रतिशत तक आ गई थी। मगर नीति आयोग के 2019-21 के आंकड़ों के अनुसार बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है, जिसकी एक-तिहाई आबादी बहुआयामी गरीबी का सामना कर रही है। यह राष्ट्रीय औसत के दोगुने से भी अधिक है। इस तरह के चुनावी वादे बिहार को बीमारू राज्य के दर्जे से बाहर निकालने की आकांक्षाओं को तो दर्शाते हैं मगर दिक्कत यह है कि राज्य में फिलहाल ‘विकसित बिहार’ के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी है और ऐसा करने के लिए नए विचारों की आवश्यकता हो सकती है।

First Published - November 14, 2025 | 10:52 PM IST

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