कोरोना को लेकर दुनियाभर में फिर से खतरे की घंटी बजती दिख रही है। विश्व में हर दिन करीब 6 लाख नए मामले सामने आने पर भी भारतीयों में टीके की बूस्टर या प्रिकॉशन डोज लेने में कोई दिलचस्पी नहीं दिख रही है। लोगों की रुचि अभी इस कारण भी नहीं है क्योंकि अभी देश में रोजाना औसतन 135 नए मरीज ही मिल रहे हैं। सरकारी तंत्र फिर से हरकत में आ गया है। केंद्र और राज्य सरकारों ने उच्चस्तरीय बैठकें शुरू कर दी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को बताया कि भारत की 90 फीसदी पात्र आबादी को टीके की दोनों खुराकें दी जा चुकी हैं। इसमें 22 करोड़ लोगों को लगी प्रिकॉशन डोज भी शामिल है। जनवरी 2021 से शुरू हुई टीकाकरण अभियान से लेकर अब तक देश में कुल मिलाकर 2.2 अरब कोरोनारोधी टीके की खुराक दी जा चुकी है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत ने दिसंबर में हर दिन 30,000 से भी कम बूस्टर डोज लगाई है। साथ ही पिछले दो महीनों से भारत का कवरेज भी सपाट ही रहा है। 20 दिसंबर को बूस्टर डोज लेने वाले प्रति 100 भारतीयों की संख्या 19 सितंबर के 13.7 से बढ़कर 15.7 हो गई है। इसकी तुलना में, बांग्लादेश ने इसी अवधि के दौरान प्रति 100 लोगों पर 26.4 डोज से प्रति 100 लोगों पर 35.4 डोज की वृद्धि देखी। जर्मनी में 71.7 डोज प्रति 100 लोगों से बढ़कर 77 डोज प्रति 100 लोग हो गई।
देश भर के निजी अस्पतालों का कहना है कि अभी बूस्टर डोज की कोई मांग नहीं है। पिछले दो महीनों में चीन में कोविड-19 की स्थिति सामने आने के बाद से भी कोई मांग नहीं बढ़ी है। बेंगलूरु के मणिपाल हॉस्पिटल्स के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी दिलीप जोस ने कहा, ‘हालांकि हमने पिछले महीने बूस्टर डोज में कोई बढ़ोतरी नहीं देखी है, लेकिन मुझे लगता है कि यह अब अन्य देशों में प्रकोप की खबरों और भारत में सतर्कता के कारण बढ़ेगा।’
चिकित्सक सलाह दे रहे हैं कि घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन सावधानी बरतना जरूरी है। चिकित्सा पेशेवर भी कह रहे हैं कि विश्व कप के बाद कतर से लौटने वालों का परीक्षण किया जाना चाहिए। फोर्टिस हेल्थकेयर के चिकित्सा रणनीति और संचालन के समूह प्रमुख डॉ. विष्णु पाणिग्रही कहते हैं, ‘यहां हाईब्रिड इम्यूनिटी की अच्छी जनसंख्या हो गई है। हमने बूस्टर ले लिए हैं। जिन्होंने अब तक नहीं लिया है वे भी जरूर जा कर तीसरी खुराक ले लें। साथ ही हमें भीड़भाड़ इलाकों में मास्क पहनना चाहिए।’
जहां तक बूस्टर शॉट्स की बात है, पाणिग्रही ने कहा, इस समय हम कोई भीड़ नहीं देख रहे हैं। फोर्टिस अपने पूरे कर्मचारियों को अस्पताल में कोविड-19 के उचित व्यवहार का पालन करने के लिए एक एडवाइजरी भेजने की भी योजना बना रहा है। उन्होंने कहा, ‘अगर हमें मरीजों में फ्लू जैसे लक्षण नजर आते हैं तो हम कोविड की जांच करेंगे।’
1 अक्टूबर से 20 दिसंबर के बीच देश भर में 19000 से अधिक लोगों को कवर करने वाले लोकल सर्किल्स के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 28 फीसदी भारतीयों ने पहले ही कोविड-19 वैक्सीन की प्रिकॉशन या बूस्टर डोज ले ली है। लगभग 53 फीसदी ने इसे नहीं लिया है और खुराक लेने के लिए उनकी कोई योजना भी नहीं है। लोकल सर्किल्स के संस्थापक सचिन तापरिया कहते हैं, ‘पिछले तीन महीनों में देश भर में युवा और मध्यम आयु वर्ग के कई लोगों की अचानक मौत हुई मौतों को लेकर कुछ ने इसके लिए टीके को जिम्मेदार ठहराया और कोविड मामलों में गिरावट के कारण अधिक से अधिक लोग बूस्टर डोज लेने के लिए अनिच्छुक हो गए हैं।’
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लोग कोरोना वायरस (कोविड-19) को एक मामूली बीमारी मानने लगे हैं और बूस्टर डोज लेने में हिचक रहे हैं। पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के पल्मोनोलॉजी और श्वसन चिकित्सा विभाग के प्रमुक डॉ. अरुणेश कुमार कहते हैं, ‘वर्तमान में कोविड को एक मामूली बीमारी के रूप में माना जा रहा है। कई लोग इस बात पर बहस कर रहे हैं कि क्या प्रिकॉशन डोज लेना वास्तव में आवश्यक है। प्रिकॉशन डोज शब्द लोगों को भ्रमित करता है क्योंकि पहले उन्हें बताया गया था कि एक पूर्ण टीकाकरण के लिए दो खुराक की आवश्यकता होती है।’
उन्होंने कहा कि वे लोगों को हर छह महीने में बूस्टर लेने की सलाह देंगे। कुमार कहते हैं, ‘बूस्टर डोज के फायदे जानने के बाद लोग इसको लेने के लिए इच्छुक हो सकते हैं। हम हर छह महीने पर मरीजों को बूस्टर डोज लेने की सलाह देंगे। हर छह महीने में, मैं व्यक्तिगत रूप से बूस्टर डोज लेता हूं क्योंकि नए रूपों के साथ नए संक्रमण उत्पन्न हो सकते हैं। हालांकि बूस्टर डोज की मांग में अभी तक कोई वृद्धि नहीं हुई है, सामान्य तौर पर बूस्टर डोज की हमेशा जरूरत होती है।’