पर्यावरण के अनुकूल शॉपिंग बैग, डिगवॉशर, बैटरी, कटलरी और बोतलें। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई ऐसे ग्रीन उत्पादों की सूची बढ़ने लगी है।
कनाडा की मार्केटिंग कंपनी टेरा च्वाइस के एक शोध में पाया गया कि पिछले 5-7 वर्षों में भारत में पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के बाजार में 73 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। जागरूकता बढ़ने के साथ अब उपभोक्ता भी सक्रिय रूप से ऐसे उत्पादों का चयन कर रहे हैं। बेन ऐंड कंपनी की जून 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 20 फीसदी उपभोक्ता पर्यावरण और सामाजिक रूप से जागरूक हैं।
अब सवाल यह है: क्या साबित करना है कि पर्यावरण के अनुकूल ब्रांडेड उत्पाद वास्तव में ग्रीन है, न कि ग्रीनवॉश?
ग्रीनवॉशिंग किसी उत्पाद के बारे में भ्रामक या झूठे पर्यावरण-अनुकूल दावे करना है। कंपनियां आमतौर पर ग्रीनवॉशिंग के लिए विपणन और विज्ञापन पर भरोसा करती हैं, नवीनीकरण पैकेजिंग, बायोडिग्रेडेबल बैग और टिकाऊ कपड़ों जैसे दावा करती हैं।
समस्या का पैमाना यह है कि पिछले साल मिस्र में आयोजित कॉप 27 जलवायु शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, ‘हमें ग्रीनवॉशिंग खत्म करने के लिए शून्य सहिष्णुता होनी चाहिए।
फोक्सवैगन, तेल दिग्गज शेल ऐंड बीपी, नेस्ले, फैशन ब्रांड एच ऐंड एम और कोका कोला जैसी कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर ग्रीनवॉशिंग का आरोप लगाया गया है।
वैश्विक स्तर पर, ग्रीनवॉशिंग का पैमाना 22 लाख करोड़ डॉलर तक होने का अनुमान है। उपभोक्ता शिक्षा और वकालत में 35 साल से अधिक समय बिताने वाले नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा के विजिटिंग प्रोफेसर बिजौन कुमार मिश्र कहते हैं कि भारत में भी यह एक बड़ी समस्या है। मिश्र ने कहा, ‘कंपनियों द्वारा किए गए दावे संदिग्ध हैं क्योंकि ये किसी विश्वसनीय स्रोत द्वारा प्रमाणित नहीं हैं। मेरी राय में, यह निर्दोष और कमजोर उपभोक्ताओं को गुमराह करने के लिए नौटंकी है।’
ऐसे अधिकांश दावे स्व-घोषित या निजी एजेंसियों द्वारा प्रमाणित होते हैं, जो न तो पारदर्शी होते हैं और न ही किसी कानून द्वारा शासित होते हैं। दिल्ली स्थित थिंक टैंक और पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट सेंटर फॉर एनर्जी फाइनैंस (सीईईडब्ल्यू) के निदेशक गगन सिद्धू कहते हैं कि हितधारकों की उम्मीदें, नवीकरणीय ऊर्जा बाजार में वृद्धि, और वित्तीय रूप से मजबूत विकल्प ब्रांडों को ग्रीन का विकल्प चुनने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, कुशल लेबलिंग और मानक प्रणाली की कमी से ब्रांड भी यह मानने के लिए भ्रमित हो सकते हैं कि वे ग्रीन हैं।’
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) की मुख्य कार्याधिकारी और महासचिव मनीषा कपूर कहती हैं कि भारत में ग्रीनवॉशिंग की सूचना केवल छोटे पैमाने पर दी जाती है। कपूर ने कहा, ‘हमारे द्वारा की जाने वाली अधिकांश कार्रवाइयां स्वत: ही होती हैं। हमने कुछ ब्रांडों को पकड़ा है जिन्होंने दावा किया और वे परीक्षण में उचित नहीं पाए गए। उन्हें शुरुआती चरण में ही रोक दिया गया है।’उपभोक्ता को भ्रामक विपणन दावों से रोकने के लिए अमेरिका में संघीय व्यापार आयोग द्वारा परिभाषित एक ग्रीन कोड हैं।
जनवरी में ब्रिटेन के प्रतिस्पर्धा नियामक ने कहा था कि यह खाद्य, पेय और प्रसाधन बेचने वाली कंपनियों की जांच करेगा जिन्हें टिकाऊ या पर्यावरण के लिए बेहतर के रूप में विपणन किया जा रहा है। यूरोपीय संघ भी कंपनियों को उनके हरित दावों को साबित करने के लिए कानून लाने की योजना बना रहा है।
जर्मनी का उदाहरण देते हुए मिश्र कहते हैं, ‘उनके पास असली और नकली उत्पादों के बीच अंतर करने के लिए उत्पादों की पैकेजिंग पर लोगो होते हैं’।
उपभोक्ता मामलों के विभाग के सचिव रोहित कुमार सिंह कहते हैं, ‘भारत में, भले ही भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) हरित मानकों के साथ नहीं आया है, लेकिन एक उपभोक्ता केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के पास ग्रीनवॉशिंग संबंधी शिकायतें दर्ज कर सकता है।’ वह कहते हैं, ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम कहता है कि कोई भी अनुचित व्यापार प्रथाओं में शामिल नहीं हो सकता है। पिछले साल जून-जुलाई में अधिनियम के तहत भ्रामक विज्ञापनों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। हम इन दिशानिर्देशों के तहत कार्रवाई करते हैं।’
इसके विपरीत डीडीबी मुद्रा समूह जैसे विज्ञापन पेशेवरों के मुख्य रचनात्मक अधिकारी राहुल मैथ्यू का कहना है कि विज्ञापन एजेंसियां ज्यादातर अपने ग्राहकों द्वारा किए गए दावों पर चलती हैं।
दूसरी चुनौती यह है कि ग्रीन के दावे पर न तो पूरी तरह से विश्वास किया जा सकता है और न ही उचित शोध के बिना इसे खारिज किया जा सकता है। सिंह ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, कई ई-कॉमर्स कंपनियों का दावा है कि उनकी पैकेजिंग को 13 बार रिसाइकल किया जाता है, लेकिन अब इसे जांचने का कोई तरीका नहीं है।’ एएससीआई की कपूर कहती हैं कि दावों की सत्यता का पता लगाने के लिए सूक्ष्म जीव विज्ञान, पर्यावरण और कपड़ा इंजीनियरिंग जैसे विशेषज्ञता के विशिष्ट क्षेत्रों के लिए समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों के पैनल शामिल किए जाते हैं।
मिशन उत्सर्जन
2015 में फोक्सवैगन का मामला सामने आने के बाद से ऑटो उद्योग विशेष रूप से रडार पर है। जर्मन ऑटो दिग्गज ने तब उत्सर्जन परीक्षण पास करने के लिए धोखा देने की बात स्वीकार की थी। कपूर कहती हैं, ‘कम उत्सर्जन और बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग का वादा करने वाले कार विज्ञापनों के दावों में अस्पष्टता होती है। वे इन दावों के लिए महत्त्वपूर्ण सबूत नहीं देते हैं।’ उपभोक्ता मामलों के सचिव सिंह कहते हैं कि हालांकि यह निराधार है, ऑटो ग्रीनवॉशिंग में शामिल बड़े उद्योगों में से एक हो सकता है।