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आशा पारेख के “ग्लैमर गर्ल” से ‘गंभीर अभिनेत्री’ के सफर का सूत्रधार कौन था?  

फिल्म की कहानी इतनी सुंदर और काव्यात्मक थी कि मैंने उनसे वादा करने को कहा कि फिल्म इसी रूप में बनाएंगे। महिलाएं इस फिल्म को देखकर रोती थीं,”।

Last Updated- June 01, 2025 | 7:45 PM IST
Bollywood Asha Pareikh Raj Khosla
बिजनेस स्टैंडर्ड हिन्दी

दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख ने मशहूर लेखक-निर्देशक राज खोसला को अपने करियर की दिशा बदलने का श्रेय दिया है। उन्होंने कहा कि फिल्म ‘दो बदन’ (1966) ने उन्हें केवल “ग्लैमर गर्ल” या “डांसिंग गर्ल” की छवि से बाहर निकालकर एक संजीदा कलाकार के रूप में स्थापित किया।

यह बात पारेख ने शनिवार को राज खोसला के 100वें जन्म शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित एक विशेष रेट्रोस्पेक्टिव कार्यक्रम के दौरान कही। इस आयोजन का आयोजन फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन (FHF) द्वारा दक्षिण मुंबई स्थित रीगल सिनेमा में किया गया था।

 

‘दो बदन’ ने दिलाई आलोचकों से सराहना

आशा पारेख ने कहा, “उद्योग में सभी को लगता था कि मैं सिर्फ एक ग्लैमर और डांसिंग गर्ल हूं, एक अच्छी अभिनेत्री नहीं। मुझे नहीं पता राज जी ने क्या सोचा था जब उन्होंने मुझे ‘दो बदन’ ऑफर की। लेकिन फिल्म के बाद आलोचकों ने मेरे अभिनय की तारीफ की, जिससे मुझे आत्मविश्वास मिला कि मैं ऐसे और भी रोल कर सकती हूं।”

दो बदन‘ एक दुखद प्रेम कहानी थी जिसमें आशा पारेख और मनोज कुमार मुख्य भूमिकाओं में थे। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही और आज भी यादगार मानी जाती है। इसमें सिमी गरेवाल और प्राण ने भी अहम भूमिकाएं निभाईं।

 

पहले रेखा थीं पहली पसंद

पारेख ने यह भी खुलासा किया कि फिल्म में उनकी भूमिका पहले उनकी समकालीन अभिनेत्री राखी को दी जानी थी।

“राज जी मेरे घर आए और पूरी कहानी सुनाई। वह इतनी सुंदर और काव्यात्मक थी कि मैंने उनसे वादा करने को कहा कि फिल्म इसी रूप में बनाएंगे। महिलाएं इस फिल्म को देखकर रोती थीं,”।

 

 कैसे तय हुआ था फिल्म ‘दो बदन’ का क्लासिक क्लाइमैक्स  

फिल्म के क्लाइमैक्स को लेकर आशा पारेख ने सुझाव दिया था कि केवल उनकी भूमिका की मृत्यु हो, लेकिन बाद में मनोज कुमार और निर्देशक के साथ बातचीत के बाद एक अधिक त्रासद अंत चुना गया जिसमें दोनों प्रेमियों की मृत्यु हो जाती है।

“राज जी अपनी बात तो रखते थे, लेकिन कलाकारों को अपनी भावनाएं व्यक्त करने की पूरी आज़ादी देते थे,” पारेख ने कहा।

 

निर्देशक राज खोसला के साथ और भी यादगार फिल्में

‘दो बदन’ के बाद आशा पारेख और राज खोसला ने मिलकर ‘चिराग’ (1969), ‘मेरा गांव मेरा देश’ (1971), और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ (1978) जैसी कई चर्चित फिल्में कीं। उन्होंने कहा,

“जब आप चार फिल्मों में काम करते हैं, तो पूरी यूनिट एक परिवार बन जाती है। राज जी का स्टाइल गुरु दत्त स्कूल से प्रभावित था, खासकर गानों की शूटिंग में।”

 

भव्य रेट्रोस्पेक्टिव, प्रतिष्ठित मेहमान

इस आयोजन में महेश भट्ट, लेखक अंबोरीश रॉयचौधुरी (जिन्होंने ‘Raj Khosla: The Authorised Biography’ लिखी है), और खोसला की बेटी अनिता भी शामिल हुईं। चर्चा का संचालन शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने किया।

कार्यक्रम में राज खोसला की तीन क्लासिक फिल्मों — ‘CID’ (1956), ‘बंबई का बाबू’ (1960) और ‘मेरा गांव मेरा देश’ — की स्क्रीनिंग की गई। पहले दो फिल्मों को NFDC और NFAI ने 4K रिजोल्यूशन में पुनर्स्थापित किया है।

 

‘मेरा गांव मेरा देश’ की यादें ताज़ा

पारेख ने कहा, “इस फिल्म को फिर से देखकर पुरानी यादें ताजा हो गईं। मुझे राज जी के साथ काम करके बहुत मज़ा आया। पूरी फिल्म नहीं देख पाई, लेकिन जो समय बिताया, वो खास था। फिल्म में लक्ष्मी छाया की भूमिका मुझसे बेहतर थी, लेकिन फिर भी मैं अपनी जगह बनाए रखी।”

 

रायमा सेन की भावनात्मक प्रस्तुति

इस दिन की शुरुआत अभिनेत्री रायमा सेन ने फिल्म ‘बंबई का बाबू’ की प्रस्तुति से की, जिसमें उनके दादी सুচित्रा सेन ने देव आनंद के साथ अभिनय किया था।

“यह फिल्म मेरी सबसे पसंदीदा फिल्मों में से एक है। इसमें एक भाई-बहन की कहानी थी जो अंत तक नहीं जानते कि वे भाई-बहन हैं। इस तरह का विषय उस समय के लिए बहुत बोल्ड था,” रायमा ने कहा।

उन्होंने FHF को धन्यवाद दिया कि इन क्लासिक फिल्मों को नए सिरे से प्रस्तुत किया जा रहा है।

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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First Published - June 1, 2025 | 7:39 PM IST

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