भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की पांचवीं वर्षगांठ के अवसर पर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा कदम उठाया गया है। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC) ने यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया की चार प्रमुख विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस स्थापित करने की अनुमति दे दी है। ये विश्वविद्यालय 2026 से भारत में शैक्षणिक गतिविधियां शुरू करेंगे।
यूके की प्रतिष्ठित University of Bristol को मुंबई में एंटरप्राइज कैंपस खोलने की अनुमति मिली है। यह ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी का पहला अंतरराष्ट्रीय कैंपस होगा, जो डेटा साइंस, इकोनॉमिक्स, फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी, इमर्सिव आर्ट्स जैसे विषयों में शिक्षा प्रदान करेगा।
ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रो. एवलिन वेल्च ने कहा, “मुंबई कैंपस हमारे 150 वर्षों के इतिहास में एक बड़ा परिवर्तन है और वैश्विक समावेशी भविष्य की दिशा में एक गर्वपूर्ण कदम है।”
मुंबई में कैंपस का स्थान शहर के मध्य के समीप होगा, जिससे छात्रों को तकनीक, नवाचार और कला के माहौल में पढ़ाई करने का अवसर मिलेगा। विश्वविद्यालय Think Big स्कॉलरशिप योजना के तहत छात्रवृत्तियाँ भी प्रदान करेगा।
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भारत सरकार ने ऑस्ट्रेलिया के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों – Western Sydney University (WSU), Victoria University (VU) और La Trobe University को भारत में कैंपस खोलने के लिए Letter of Intent जारी किया है।
1989 में स्थापित WSU एक प्रमुख पब्लिक रिसर्च यूनिवर्सिटी है। इसका ग्रेटर नोएडा कैंपस BA in Business Analytics, BA in Business Marketing, MBA in Innovation & Entrepreneurship, और MBA in Logistics and Supply Chain Management जैसे कोर्स प्रदान करेगा।
1916 में स्थापित और TAFE (वोकेशनल) व उच्च शिक्षा दोनों प्रदान करने वाली VU, नोएडा में Business, Data Science, Cyber Security में स्नातक और MBA, Master’s in IT में परास्नातक कोर्स शुरू करेगी।
1964 में स्थापित La Trobe University बेंगलुरु में Business (Finance, Marketing, Management), Computer Science (AI, Software Engineering) और Public Health में अंडरग्रेजुएट कोर्स चलाएगी।
2023 में यूजीसी ने Foreign Higher Educational Institutions in India Regulations के तहत विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति देने की प्रक्रिया शुरू की थी। इन नीतियों के तहत अब छात्रों को विश्वस्तरीय शिक्षा भारत में ही उपलब्ध होगी, जिससे विदेश जाने की आवश्यकता कम होगी और देश में प्रतिभा को बनाए रखने में मदद मिलेगी। यह कदम न केवल भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को वैश्विक बनाएगा, बल्कि देश को एक अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक हब के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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