भारत द्वारा अन्य देशों के साथ की गई कर संधियों में वर्णित ‘कर’ शब्द की परिभाषा सामान्य तौर पर आय कर या इसी तरह के समान करों के तौर पर दी जाती रही है। कुछ खास संधियों को भी कर या एक जैसे करों की परिभाषा के दायरे में लाया गया है।
कर की परिभाषा का महत्त्व उस वक्त अनिवार्य हो जाता है जब कर संधि के भागीदार देश इस बात पर सहमत होते हैं कि करदाता को कर संधि पर हस्ताक्षर करने वाले दोनों देशों में एक ही आय पर कर चुकाए जाने की जरूरत नहीं है।
अगर किसी आय पर कर एक देश में वसूला गया है तो यह आय दूसरे देश में कर के दायरे में नहीं आएगी। लेकिन अगर दूसरे देश में भी कर वसूला गया है तो वह देश पहले देश में चुकाए गए कर को क्रेडिट देगा।
भारत के संदर्भ में कर की परिभाषा ने भ्रम पैदा कर दिया है। ऐसी भ्रामक स्थिति के दो स्पष्ट उदाहरण नीचे पेश किए जा रहे हैं:
अतिरिक्त कर
अतिरिक्त कर भारत में किसी कंपनी द्वारा उस वक्त चुकाया जाता है जब वह लाभांश घोषित करती है। लाभांश का भुगतान अक्सर कंपनियों द्वारा कर काटे जाने के बाद किया जाता है। इसलिए लाभांश का भुगतान करने वाली कंपनी पहले अपने लाभ पर आय कर चुकाती है और इसके बाद लाभांश का भुगतान करती है।
इस प्रकार से किसी शेयरधारक से प्राप्त लाभांश मुनाफे से बाहर है, क्योंकि यह पहले ही कर से गुजर चुका होता है। अगर लाभांश हासिल करने वाला व्यक्ति पुन: आय कर चुकाने के लिए जिम्मेदार है तो यह वास्तव में इसी आय पर दोहरे कराधान की मात्रा है।
हालांकि कॉरपोरेट क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के नजरिये के साथ भारत में किसी घरेलू कंपनी द्वारा दिए गए लाभांश पर कर को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। लेकिन लाभांश आय पर कर को समाप्त किए जाने के दौरान सरकार ने वितरित मुनाफे पर ‘अतिरिक्त कर’ का नया प्रावधान जोड़ दिया।
मौजूदा समय में यह अतिरिक्त कर 15 फीसदी है। अतिरिक्त आय कर से जुड़े प्रावधानों ने विदेशी निवेशकों के लिए अनापेक्षित कठिनाई पैदा कर दी है। अतिरिक्त आय कर लगाए जाने से पहले लाभांश पर आय कर कटौती की अनुमति क्रेडिट के तौर पर थी। ऐसी कर कटौती की अनुमति विदेशी निवेशक द्वारा अपने मूल देश में प्राप्त की गई आय पर दी गई थी।
लेकिन संशोधन के बाद किसी भारतीय कंपनी द्वारा चुकाए गए अतिरिक्त आय कर को विदेशी निवेशक के मूल देश में क्रेडिट के तौर पर अनुमति मिलने की संभावना नहीं होगी। इससे विषम स्थिति पैदा हो जाती है, क्योंकि अतिरिक्त आय कर भारतीय कंपनी द्वारा चुकाया जाता है, लाभांश प्राप्तकर्ता द्वारा या उसकी ओर से नहीं चुकाया जाता है।
इसके अलावा ‘अतिरिक्त आय कर’ टर्म भारत द्वारा की गई सभी कर संधियों के लिए विदेशी है। इस प्रकार भारतीय कानून में लाभांश को करमुक्त किए जाने के प्रोत्साहन वास्तव में विदेशी निवेशक के लिए फायदेमंद नहीं हैं। कर संधियों की समीक्षा किए जाने की जरूरत है ताकि भारत में लाभांश आय को करमुक्त बनाए जाने के प्रोत्साहन का लाभ विदेशी निवेशकों को भी मिल सके।
फ्रिंज बेनीफिट टैक्स (एफबीटी)
फ्रिंज बेनीफिट टैक्स किसी नियोक्ता कंपनी द्वारा अपने कर्मचारियों को दिए जाने वाले अनुषंगी लाभ के दौरान वसूला जाने वाला अतिरिक्त आय कर है। अनुषंगी लाभ की राशि पर यह कर 30 फीसदी वसूला जाता है। भारत में किसी भी तरह के कर्मचारियों वाली कंपनी एफबीटी चुकाए जाने के लिए जिम्मेदार है।
हालांकि एफबीटी शब्द को किसी भी कर संधि में शामिल नहीं किया गया है। इसी वजह से भारत में एफबीटी के दायरे में आने वाले विदेशी उद्यम अपने मूल देश में इसके लिए क्रेडिट हासिल करने के हकदार नहीं होंगे। अंत में इस बात को स्पष्ट किया जाना बेहद जरूरी है कि ‘कर’ की परिभाषा में ‘अतिरिक्त आय कर’ के साथ-साथ ‘फ्रिंज बेनीफिट टैक्स’ भी शामिल हैं।
इस बात पर जोर दिया जा सकता है कि अगर कर संधियों में बदलाव किया जाता है तो भारतीय खजाने पर कोई बुरा वित्तीय प्रभाव डाले बगैर विदेशी उद्यम इससे लाभान्वित होंगे। असल में विदेशी निवेशकों के लिए कर लाभ मौजूद है, लेकिन ‘कर’ शब्द की अनुपयुक्त परिभाषा के कारण वे इससे वंचित हैं। संशोधन से यह लाभ उन्हें स्पष्ट तौर पर उपलब्ध होगा। इससे भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने में निश्चित रूप से मदद मिलेगी।
(लेखक एसएस कोठारी मेहता ऐंड कंपनीज में पार्टनर हैं। )
