उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि अगर उत्पादक विज्ञापन में दिए गए आश्वासन के हिसाब से माल की डिलिवरी नहीं करता है
तो डीलर की ऐसे में ग्राहक के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होगी। इस मामले में एक उपभोक्ता ने अग्रिम भुगतान कर एजेंट प्रेम नाथ मोटर्स के पास प्यूगट कार की बुकिंग की।
पर कार की डिलिवरी नहीं दी गई। उपभोक्ता ने प्रेम नाथ मोटर्स के जरिए प्यूगट के उत्पादकों से अपनी रकम की वापसी के लिए मोनोपोलीज ऐंड रिस्ट्रीक्टिव ट्रेड प्रैक्टिसेज कमीशन के पास अपील की।
कमीशन ने प्रेम नाथ को मोटर्स को रकम वापसी के आदेश दिए। डीलर ने इस फैसले के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दी। अदालत ने कमीशन के आदेश को रद्द कर दिया।
उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि जब तक किसी करार में साफ साफ इस बात का उल्लेख नहीं किया गया हो तब तक उत्पादक की किसी गलती के लिए डीलर को दोषी नहीं ठकराया जा सकता है।
जांच जरूरी नहीं
उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि अगर कोई चेक नहीं भुन पाता है और इसे लेकर कोई सरकारी कंपनी शिकायत दर्ज करती है, तो शिकायत दर्ज करने वाले अधिकारी से पूछताछ करने की जरूरत नहीं है।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता के 200ए के प्रावधानों के तहत इसमें छूट दी गई है। नेशनल स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम राज्य (दिल्ली) के एक मामले में कॉरपोरेशन के एक विकास अधिकारी ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के पास शिकायत दर्ज की कि कंपनी ने जो चेक दिया था, वह बैंक में नहीं भुनाया जा सका।
मजिस्ट्रेट ने उस कंपनी को समन जारी किया जिस पर आरोप लगाए गए थे पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए इस समन पर रोक लगा दी कि मजिस्ट्रेट के समझ विकास अधिकारी से पूछताछ नहीं की गई थी।
कॉरपोरेशन ने उच्चतम न्यायालय में अपील की और कहा कि नागरिक सेवा अधिकारी की जांच नहीं की जानी चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने इस अपील को मानते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया।
फौजदारी मामला
अगर दो कंपनियों के बीच किसी विवाद को समझौते के आधार पर सुलझाया जा रहा हो और मामला न भुन पाने वाले चेक का हो तो इसे आपराधिक मामला मानते हुए इस पर सुनवाई करने से रोक नहीं लगाई जा सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने श्री कृष्णा एजेंसी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में यह फैसला सुनाया। इस मामले में तीन चेक जारी किए गए थे पर उनका भुगतान रोक दिया गया। इसे देखते नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट ऐक्ट की धारा 138 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया।
एक पक्ष ने दलील रखी कि जब मध्यस्थता की जा रही है तो ऐसे में आपराधिक शिकायत को खारिज कर दिया जाना चाहिए। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया।
पर उच्चतम न्यायालय में जब इस मामले की अपील की गई तो अदालत ने फैसला सुनाया कि आपराधिक मामले के तहत सुनवाई जारी रखी जा सकती है।
आगजनी बीमा
आगजनी को लेकर बीमा की मांग से जुड़े एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। देवकर एक्सपोट्र्स लिमिटेड ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी पर बीमा का दावा किया था।
कंपनी ने एक डिहाइड्रेशन मशीन को आग से खतरा देखते हुए उसका बीमा करवाया था। बीमा महाराष्ट्र राज्य वित्त निगम ने करवाया था। बीमा की अवधि में एक अंतराल था।
कंपनी निगम के जरिए प्रीमियम का भुगतान करती थी पर बीमा किस अवधि के लिए था, इसमें कोई गड़बड़ी देखने को मिली थी।
कंपनी के साथ साथ कॉरपोरेशन भी इसकी अनदेखी करता रहा। आग की वजह से इस मशीन को नुकसान पहुंचा। बीमा कंपनी ने यह कहते हुए दावे को खारिज कर दिया कि आग कवरेज की अवधि के बाहर लगी।
वहीं बीमा करवाने वाली कंपनी का यह कहना था कि चूंकि वह लगातार प्रीमियम चुकाती आई है इस वजह से पॉलिसी को लैप्स नहीं समझा जाना चाहिए।
हालांकि जब पॉलिसी के समझौते को अच्छी तरह से पढ़ा गया तो यह पाया गया कि इस बात का साफ साफ जिक्र किया गया था कि कवरेज अवधि में ही कोई दुर्घटना घटने पर बीमा कंपनी की जिम्मेदारी बनती है अन्यथा नहीं।
मध्यस्थ नियुक्त
चीन की कंपनी एवरेस्ट होल्डिंग और उसकी भारतीय कारोबारी साझेदार श्रीवास्तव समूह के बीच उठे विवाद को सुलझाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश वी एन खरे को मध्यस्थ नियुक्त किया।
भारतीय कंपनी खनन, प्रसंस्करण और खदानों से लौह अयस्क के निर्यात में मदद करती थी। चीनी कंपनी की शिकायत थी कि उसकी एक भारतीय साझेदार ने कीमतें घटाने को लेकर संयुक्त उपक्रम समझौते को रद्द कर दिया था।
इससे चीनी कंपनी और उसकी साझेदार के बीच विवाद शुरू हो गया और चीनी कंपनी ने इसके निपटारे के लिए आर्बिट्रेशन ऐंड कंसीलिएशन ऐक्ट का हवाला दिया।
सीमन्स की याचिका
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में सीमन्स पब्लिक कम्युनिकेशंस नेटवर्क लिमिटेड ने उच्चतम न्यायालय में अपील की थी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया।
तकनीकी संचार प्रणाली के आधुनिकीकरण के लिए कंपनी चाहती थी कि रक्षा मंत्रालय की देख रेख में भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड टेंडर जारी करे।
उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और कहा कि कॉन्ट्रैक्ट कंपनी को नहीं दिया जा सकता।