किसी ने सच ही कहा है कि बेहतर हमेशा अच्छे का दुश्मन होता है। इस बात का अहसास तब हुआ जब मुझे फरवरी में कस्टम द्वारा जारी सेकंड हैंड मशीनरी से जुड़े सर्क्युलर के आकलन का अवसर प्राप्त हुआ।
दो पेज के इस सर्क्युलर में मूल्यांकन के बहुत सारे नियमों का उल्लेख किया गया है। इन नियमों में उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के साथ ही तीन प्राधिकरण निर्णय भी शामिल थे। अचानक इस सर्क्युलर को लाने के पीछे कस्टम द्वारा की जा रही मनमानी मानी जा रही है। दरअसल कस्टम विभाग पुराने सर्क्युलर के मुताबिक समान कार्यप्रणाली से काम नहीं कर रहा था।
बेहतर हमेशा अच्छे का दुश्मन होता है। मैंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि जिस भी अधिकारी ने इस सर्क्युलर का मसौदा तैयार किया है, निश्चित ही उसने अच्छा काम किया है। उसने अपनी पूरी जानकारी और समझ का इस्तेमाल इस मसौदे को तैयार करने में किया है। इसके लिए उस अधिकारी को पूरे अंक भी दिए जा सकते हैं। लेकिन सेकंड हैंड मशीनों की खरीदारी के लिए ऐसा मसौदा तैयार करना किसी दुस्वप्न से कम नहीं है।
नियमों और कायदे कानूनों के अत्यधिक इस्तेमाल से यह मसौदा बहुत ही जटिल हो गया है। इस मसौदे के अंत तक आयात करने वाले को यह समझ नहीं आता है कि इस मसौदे का मकसद क्या है?
कस्टम विभाग का सोचना है कि पुराने सर्क्युलर को सही तरीके से लागू न किए जाने की गलती को नया सर्क्युलर लाने से सुधारा जा सकता है। तो यह विभाग की गलतफहमी है क्योंकि इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि नए सर्क्युलर का पालन सही तरीके से किया जाएगा। अगर पुराना सर्क्युलर खराब और व्यर्थ हो तो नया सर्क्युलर लाने का मतलब समझ में आता है। लेकिन इस मामले में ये दोनों ही बातें नहीं है।
पिछला मसौदा इस मसौदे से ज्यादा बेहतर था और दशकों से लागू भी था। एक व्यवस्थित कानून को नहीं बदला जाना चाहिए और उसी तरह व्यवस्थित चलन को भी ऐसे ही चलने देना चाहिए। पुराना सर्क्युलर समझना बहुत ही आसान था। उसके मुताबिक पुरानी मशीन आयात करते समय मशीन के निर्माण की तारीख और उसकी नई कीमत बतानी पड़ती थी।
अगर मशीन की नई कीमत का पता नहीं चल पाता था तो किसी भी अधिकृत चार्टर्ड इंजीनियर या चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा जारी प्रमाणपत्र भी मान्य होता था। इसके बाद मशीन का कितने साल इस्तेमाल किया गया है , इस पर भी छूट दी जाती थी। मुझे अभी तक याद है कि 80 के दशक के दौरान मुंबई में हर हफ्ते लगभग दर्जन केस हुआ करते थे। हमें उस सर्क्युलर को समझने में कोई भी मुश्किल नहीं आती थी।
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है कि पुराने और साधारण मसौदे को हटाकर नया और जटिल मसौदा लाया जाए। वह भी ऐसा मसौदा जिसे सिर्फ उसे बनाने वाला ही समझ सके। मुझे कभी भी कोई भी मशीन विशेषज्ञों के पैनल द्वारा निरीक्षण किए जाने के बाद नहीं मिली है। जबकि कस्टम विभाग में कितने सारे मशीन विशेषज्ञ कार्यरत हैं। हमें मशीनों के विशेषज्ञों की जरूरत भी नहीं है क्योंकि किसी भी इंसान के लिए उसकी सामान्य समझ ही उसकी सबसे बड़ी गाइड होती है।
सर्क्युलर के अंत में प्रावधानों के समर्थन में निर्णयों का उल्लेख करना सबसे ज्यादा बेवकूफी वाली बात है। ऐसा कहने के पीछे दो कारण है –
1. जैसे ही आप किसी निर्णय का उल्लेख करते हैं , वैसे ही वह निर्णय उस सर्क्युलर का हिस्सा बन जाता है। वहीं दूसरी तरफ उस निर्णय के विपरीत भी निर्णय दिए गए होते हैं। बात सिर्फ यही खत्म नहीं होती है। इनके उल्लेख के साथ ही उससे जुड़े कई अन्य निर्णयों का भी उल्लेख करना पड़ता है और सभी निर्णयों को साथ में ही पढ़ना पड़ता है।
2. इसका आलोचनात्मक पक्ष यह है कि अगर निर्णयों को दरकिनार करा जाए तो सर्क्युलर का भी कोई महत्त्व नहीं रह जाता है। लेकिन निर्णयों का उल्लेख नहीं किया जाए तो सर्क्युलर का महत्त्व तब तक कम नहीं होता जब तक बोर्ड ही उसे खारिज करने का फैसला नहीं करता है।
उच्चतम न्यायालय ने कई बार अपने इस सिद्धांत को दोहराया है कि बोर्ड के सर्क्युलर्स सभी के लिए मान्य होते हैं। लेकिन सर्क्युलर ही प्राधिकरण के निर्णयों का उल्लेख करे तो निर्णय को दरकिनार करने के साथ ही उसकेलागू किए जाने की संभावनाएं अपने आप ही समाप्त हो जाती हैं।