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क्या वास्तव में मंदी से कर संग्रहण प्रभावित हुआ है?

Last Updated- December 10, 2022 | 10:01 PM IST

हालांकि कर संग्रहण के आंकड़े राजकोषीय स्थिति पर वैश्विक संकट के नकारात्मक असर का संकेत देते हैं, लेकिन यहां विचार करने की बात यह है कि भारत के अलावा अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में इस मामले में भारत की स्थिति कैसी है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के शासनकाल के दौरान कर संग्रहण में तेज एवं शानदार विकास हुआ। लेकिन इस सरकार को अप्रत्याशित दबाव की वजह से बिगड़ती वित्त व्यवस्था का भी सामना करना पड़ रहा है।
उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और अग्रिम कर भुगतान में लगातार कमी आने की वजह से सरकार को कई वर्षों में पहली बार कुल कर संग्रहण में गिरावट का सामना करना पड़ा है। इसके विपरीत, आपको मालूम हो कि सेवा कर उगाही में इजाफा हुआ है।
हालांकि यह अनुमानित दर की तुलना में काफी कम है। यह वित्त वर्ष 2009 में 6,279 अरब रुपये के कुल कर राजस्व लक्ष्य को पूरा कर पाने के वास्ते सरकार की क्षमता के लिए निश्चित तौर पर एक चुनौती है। सभी की नजर अब साल के अंतिम 10 दिनों में प्रत्यक्ष कर उगाही पर है।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को उम्मीद है कि टीडीएस संग्रहण और एडवांस कर की समय-सीमा 15 मार्च किए जाने के कारण कर राजस्व में सुधार आएगा। इसके साथ ही प्रत्यक्ष कर उगाही पहले 11 महीनों के लिए कुल अनुमान का 76.37 फीसदी रही।
ऐसा देखा गया है कि कॉरपोरेट और गैर-कॉरपोरेट मार्च के अंतिम सप्ताह में अपनी कर देनदारियों का क्रमश: 25 और 40 फीसदी का भुगतान करते हैं। अग्रिम कर के आंकड़े स्पष्ट रूप से इस प्रवृत्ति का संकेत हैं कि ज्यादातर भारतीय कंपनियां मंदी के असर के कारण कम मुनाफे की उम्मीद कर रही हैं।
क्षेत्रवार अंतर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर छाए संकट की गंभीरता का संकेत है। बैंकिंग, बीमा और उपभोक्ता उत्पाद कंपनियां प्रमुखता के साथ उभर कर सामने आई हैं और कर राजस्व में इनका सर्वाधिक योगदान है। अप्रत्यक्ष कर संग्रहण के संबंध में लक्ष्य में कमी लाकर इसमें संशोधन किया गया।
उत्पाद शुल्क संग्रहण में 6 फीसदी की गिरावट, सीमा शुल्क में 1 फीसदी की बढ़ोतरी (3.7 फीसदी की तुलना में) और सेवा कर उगाही में 22 फीसदी (27 फीसदी की तुलना में) का इजाफा दर्ज किया गया। यह उम्मीद करना वास्तविक नहीं है कि यह अंतर इस वित्त वर्ष के अंत तक दूर हो जाएगा।
लोकप्रिय योजनाओं, किसान ऋण माफी और छठे वेतन आयोग को लेकर सरकार द्वारा कोष में किए गए इजाफे से राजकोषीय सुधार के लक्ष्य पर दबाव पड़ा है और राजस्व घाटा अनुमानित 1 फीसदी की तुलना में 4.4 फीसदी हो गया है। मंदी से दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं।
हालांकि भारत अन्य देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में दिख रहा है। अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाएं कर संग्रहण में तेज गिरावट और राजकोषीय घाटे से जूझ रही हैं। कर संग्रहण पर मंदी का असर जीडीपी विकास, राजकोषीय घाटे और कर संग्रहण प्रवृत्तियों के बीच सह-संबंध विश्लेषणों के जरिये मापा जा सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था 2008 की तीसरी तिमाही में 5.3 फीसदी की दर से बढ़ी जो पहली छमाही में 7.8 फीसदी थी। यह माना जा रहा है कि उच्च जीडीपी विकास दर राजकोषीय घाटे को नियंत्रित कर सकती है। अगले वित्त वर्ष में कम वित्तीय घाटे के साथ उदार विकास दर हासिल करना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगी। हालांकि कर राजस्व के आधार के लिए अच्छी गुंजाइश होगी।
इसके अलावा मांग बढ़ने के साथ या तो 2009-10 के अंत तक या 2010-11 में उत्पाद शुल्क और सेवा कर के लिए अप्रत्यक्ष कर दरों में इजाफा होगा। अर्थव्यवस्था की क्षेत्रीय संरचना पर प्रभाव के संदर्भ में चक्रीय उतार-चढ़ाव का मूल्यांकन किया जा सकता है। जब तक व्यापक सुधार नहीं किए जाएंगे, आगामी वर्षों में कृषि पर दबाव जारी रहेगा।
यह वह समय है जब सरकार फूड, एग्रो और संबद्ध क्षेत्र, जो कराधान के दायरे में आते हैं, की विकास संभावना को समझे। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि मौजूदा मंदी की स्थिति में भी कर सुधार की रफ्तार में तेजी लाने की जरूरत कभी भी महसूस नहीं की गई।
(लेखक बीएमआर एडवाइजर्स में पार्टनर हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

First Published - March 29, 2009 | 10:30 PM IST

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