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लेखा: मानक से चलें या सिद्धांत से?

Last Updated- December 07, 2022 | 4:06 PM IST

एक दिन मैं अपने कुछ अकाउंटेंट दोस्तों और उभरते प्रबंधकों के साथ बात कर रहा था तो मुझे बातों बातों में पता चला कि आईएफआरएस के कुछ मसले उन्हें परेशान कर रहे हैं।


एक सवाल जो समय समय पर उठता रहा है वह यह है कि क्या सिद्धांत आधारित अकाउंटिंग मानकों का पालन हो रहा है या नहीं इस पर नजर रख पाना नियामकों के लिए संभव है। कुछ का मानना था कि सिद्धांतों पर निगरानी रखने से कहीं आसान नियमों पर निगरानी रखना था। इस बारे में दो तरह के विचार हो भी नहीं सकते हैं।

पर सवाल यह है कि रेग्युलेटर्स की ओर से जो निगरानी रखी जा रही है अगर वह कारगर साबित होती है तो क्या वित्तीय रिपोर्टिंग स्टैंडड्र्स को बनाते वक्त क्या इन्हें गाइडिंग प्रिंसिपल्स के तौर पर देखा जाएगा। पर ऐसा होना नहीं चाहिए। प्रबंधकों को अकाउंटिंग पॉलिसी तैयार करते वक्त लचीला होने की जरूरत है क्योंकि ये विभिन्न कारोबारी इकाइयों के लिए बनाए जाते हैं।

भले ही एक ही उद्योग जगत की ही इकाइयां क्यों न हों पर फिर भी वे जिन माहौल में काम करती हैं उनमें अंतर हो जाता है। और जब नीतियां तैयार की जाएंगी तो सभी इकाइयों के नफे नुकसान को ध्यान में रखकर ही किया जाएगा। जहां अकाउंटिंग नियमों का पालन हो रहा है या नहीं इस पर बड़ी कुशलता के साथ निगरानी रखी जा सकती है, वहीं नियमों पर आधारित वित्तीय रिपोर्टिंग मानक अकाउंटिंग इंजीनियरिंग के लिए पर्याप्त संभावनाएं उपलब्ध कराती हैं। इससे मैनेजिंग फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स के लिए असीम अवसर प्राप्त होते हैं।

एनरॉन की घटना के बाद जो लोग वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों को लेकर चिंतित थे उन्होंने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिद्धांत आधारित अकाउंटिंग मानक नियम आधारित अकाउंटिंग मानकों से बेहतर होती है। एक और जरूरी मुद्दा जिसके बारे में हमें विचार करना चाहिए वह यह है कि मौजूदा समय में कारोबारी मॉडल बड़ी तेजी के साथ बदलते रहते हैं। इससे कॉन्ट्रैक्ट्स और ट्रांजेक्शन में जल्द बदलाव देखने को मिलता है।

इसलिए, एनरॉन प्रकरण के बाद, वित्तीय रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड से जुड़े तमाम मामले पर काफी बहस शुरु हो गई और इसके बाद यह निष्कर्ष निकला कि सिद्धांत आधारित अकाउंटिंग स्टैंडर्ड नियमाधारित अकाउंटिंग स्टैंडर्ड से बेहतर होता है। इस संबंध में एक दूसरी बात जो उभर कर आई वह यह है कि वर्तमान परिदृश्य में गतिशील पर्यावरणीय व्यापार मॉडल में तेजी से परिवर्तन आ रहा है और इस तरह से अनुबंध और हस्तांतरण या लेनेदेन के पहल में भी आमूल परिवर्तन देखने का मिल रहा है।

वित्तीय रिपोर्टिंग मानक निर्धारित करने वाले इन पहलों पर तब ही ध्यान देते हैं, जब कंपनियां अनुबंधों और लेनदेन की नई संरचना का खाका तैयार करते हैं। इसमें किसी भी तरह की देरी नियमों को लागू करने में बाधा पैदा करती है। नए कानून को प्रारूपित करने में रही महत्त्वपूर्ण देरी की दूसरी वजह मानक निर्धारण करने वालों की प्रक्रिया काफी लंबी होती है, हालांकि ये सारी प्रक्रियाएं जरूरी भी हैं। इसलिए मानक का निर्धारण करने वाले प्रबंधन पहल में कमी दिखती है।

सिद्धांतों पर आधारित अकाउंटिंग मानकों में अकाउंटिंग सिद्धांतों को निरूपित किया जाता है और इस प्रकार अनुबंध या लेनेदेन की संरचना में हर प्रकार के परिवर्तन करने से पहले काफी गौर करने की जरूरत होती है। मैं विश्वास करता हूं कि यद्यपि सिद्धांत आधारित अकाउंटिंग, नियम आधारित अकाउंटिंग से बेहतर है, तो क्या दूसरे को बंद कर दिया जाना चाहिए। दूसरी वजह जो इस संबंध में हमारे दोस्तों को परेशान करती है, वह है कि  अंतरराष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानक सिद्धांत आधारित है या नियम आधारित।

कुछ लोग तर्क देते हैं कि आईएफआरएस नियम आधारित अकाउंटिंग मानक है, क्योंकि हर स्टैंडर्ड में विस्तृत आवेदन निर्देश और व्याख्यात्मक उदाहरण दिए जाते हैं। जबकि आवेदन निर्देश वित्तीय रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड का एक हिस्सा है और व्याख्यात्मक उदाहरण आईएफआरएस का हिस्सा नहीं है। बहुत सारे लोग इस आवेदन निर्देशों और व्याख्याओं को बतौर नियम अपनाते हैं, क्योंकि मानक का निर्धारण करने वाले निर्देशों के नियमन और उदाहरण को कई अवसरों पर कवर करने की पूरी कोशिश करते हैं।

इन सारी चीजों का ब्योरा इसलिए दिया जाता है ताकि रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड के सिद्धांतों को समझने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई न हो। यह भी सत्य है कि जहां तक लेनदेन की बात है, वह एक विचाराधीन मामला होता है और इसे रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड के आधार पर क्रियान्वित करना आसान होता है। हालांकि अगर कोई भी व्याख्या अगर विचाराधीन लेनदेन से तालमेल नहीं रखता है, तो हम उन मामलों में किसी भी तरीकों को थोपना मुश्किल होता है।

यह खासकर उन मामलों में ज्यादा होता है, जो व्यापार स्थितियों और लेनदेन से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हो। ऐसा प्रतीत होता है कि यह तरीका वित्तीय स्थिति और संचालन परिणाम के लिए बिल्कुल सत्य और सही है। हमें रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड को परिकलित करते समय अकाउंटिंग सिद्धांतों को लागू करते समय तरीकों का पूरा ध्यान रखना चाहिए। वैसे नियम आधारित अकाउंटिंग स्टैंडर्ड इतने लचीलेपन की अनुमति कभी-कभी देता है।

आईएफआरएस-3, जो व्यापार संबंधी अकाउंटिंग के संबंध में प्रयुक्त होता है, भी इस संबंध में एक मामला बनकर उभर सकता है। अगर किसी व्यापार का अधिग्रहण हो रहा हो, तो आईएफआरएस-3 प्रयुक्त होता है। परिसंपत्ति और देनदारी के समूहों के अधिग्रहण के मामले में, जो कि एक व्यापार नहीं है, विचाराधीन खरीदारी (अधिग्रहण लागत) को खरीदारी की तारीख में उसके उचित मूल्य के आधार पर व्यक्तिगत परिसंपत्ति और देनदारी में समानुपातिक तौर पर बांट दिया जाता है।

इस तरह के मामले में गुडविल की पहचान आदि का कोई सवाल नहीं उठता है। इसलिए, परिसंपत्ति और देनदारी के समूह के अधिग्रहण में जब लेनदेन शामिल हो तो अकाउंटिंग करते वक्त यह ध्यान देना चाहिए कि यह एक व्यापार की श्रेणी में आता है या नहीं। आईएफआरएस-3 आवेदन निर्देश भी उपलब्ध कराती है। निर्देशों के अनुसार, व्यापार वह होता है, जिनमें इनपुट लगाने के बाद उसे प्रसंस्करित कर आउटपुट उत्पन्न करने की प्रक्रिया उपलब्ध हो।

यह विस्तृत निर्देश उपलब्ध कराता है और फिर उसके बाद यह निर्धारित करने में मदद करता है कि कोई खास परिसंपत्ति और गतिविधियां व्यापार की श्रेणी में आता है या नही। इस प्रकार किसी खास सेट को व्यापार निर्धारित करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि विक्रेता व्यापार का कोई समूह चला रहा है या अधिग्रहणकर्ता व्यापार का कोई समूह संचालित करता हो।

वैसे इस बात का निर्धारण करने के लिए कि परिसंपत्तियों और गतिविधियों को कोई एकीकृत समूह एक व्यापार है या नहीं इसके लिए निर्देशों में कई कारकों का उल्लेख किया गया है। इस निर्देश के आवेदन के लिए निर्णय की जरूरत होती है। निर्देशों के इस समूह को नियम की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। किसी प्रकार के लेनदेन में इसे प्रत्यक्ष तौर पर लागू नहीं किया जा सकता है।

जैसा कि इस कॉलम में हमलोगों ने पहले ही इस बात की चर्चा की है कि निदेशक मंडल को समय पर वित्तीय स्टेटमेंट जारी करना चाहिए और वित्तीय स्थिति, संचालन परिणाम और कंपनी के धन प्रवाह की पूरी जानकारी को सत्य और सही तरीके से पेश करना चाहिए।

इसलिए बोर्ड को सामूहिक रूप से अपने दिमाग का इस्तेमाल कर इसे इस प्रकार प्रारूपित करना चाहिए ताकि इन नीतियों को आईएफआरएस के साथ तारतम्य स्थापित करने में कोई कठिनाई न हो। इस बात को भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वित्तीय स्टेटमेंट तैयार करते समय किसी प्रकार की गलती न हो और यह पूरी तरह से स्पष्ट और शुद्ध हो। इस बाबत सीईओ और सीएफओ को निदेशकों को प्रशिक्षित करने की दिशा में पहल करनी चाहिए।

First Published - August 11, 2008 | 1:41 AM IST

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