facebookmetapixel
Bihar Election 2025: दूसरे चरण में 3.7 करोड़ मतदाता 122 सीटों पर करेंगे 1,302 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसलाBandhan MF ने उतारा नया हेल्थकेयर फंड, ₹100 की SIP से निवेश शुरू; किसे लगाना चाहिए पैसा?Explained: AQI 50 पर सांस लेने से आपके फेफड़ों और शरीर को कैसा महसूस होता है?अगर इंश्योरेंस क्लेम हो गया रिजेक्ट तो घबराएं नहीं! अब IRDAI का ‘बीमा भरोसा पोर्टल’ दिलाएगा समाधानइन 11 IPOs में Mutual Funds ने झोंके ₹8,752 करोड़; स्मॉल-कैप की ग्रोथ पोटेंशियल पर भरोसा बरकरारPM Kisan Yojana: e-KYC अपडेट न कराने पर रुक सकती है 21वीं किस्त, जानें कैसे करें चेक और सुधारDelhi Pollution: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण ने पकड़ा जोर, अस्पतालों में सांस की बीमारियों के मरीजों की बाढ़CBDT ने ITR रिफंड में सुधार के लिए नए नियम जारी किए हैं, टैक्सपेयर्स के लिए इसका क्या मतलब है?जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा बड़ा जाल फरीदाबाद में धराशायी, 360 किलो RDX के साथ 5 लोग गिरफ्तारHaldiram’s की नजर इस अमेरिकी सैंडविच ब्रांड पर, Subway और Tim Hortons को टक्कर देने की तैयारी

जीएसटी में उत्पाद शुल्क को लेकर छिड़ी बहस

Last Updated- December 07, 2022 | 8:05 PM IST

अब सामान एवं सेवा कर यानी जीएसटी चर्चा में है और वित्त मंत्रालय की अधिकार प्राप्त समिति के अलावा कुछ शोध संस्थान भी इसका ब्योरा तैयार करने में लगे हुए हैं।


मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने भी अपनी राय जाहिर की है कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। 

इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क राजस्व का एक हथियार है, जो आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने या हतोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा इस्तेमाल में लाया जाता है और यदि इसे जीएसटी के तहत समाहित किया जाता है, तो यह राजस्व हथियार प्रभावकारी साबित नहीं होगा।

वैसे इस संबंध में सीबीईसी ने किसी प्रकार की बात मीडिया से नहीं कही है, लेकिन मीडिया की रिपोर्ट को सही मानकर इस संबंध में गहन विचार विमर्श करने की जरुरत है। वैयक्तिक करों को शामिल करने या  हटाने के बारे में राजकोषीय विशेषज्ञों की कुछ टिप्पणियां भी आई हैं।  इसलिए इस बात का विश्लेषण करना ठीक रहेगा कि किस को शामिल किया जाना चाहिए और किसे हटाया जाना चाहिए।

मेरा तो निर्विवाद रुप से यह मानना है कि  केंद्रीय उत्पाद शुल्क जीएसटी का अहम हिस्सा है। और अगर जीएसटी को केंद्रीय उत्पाद शुल्क के बगैर तय किया जाता है, तो वह ठीक उसी प्रकार होगा जैसे  डेनमार्क के राजकुमार के बगैर हैमलेट। वैसे एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि जीएसटी में कौन-कौन से कारक आते हैं?

बुनियादी तौर पर जीएसटी में तीन कारक शामिल होते हैं- केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर और वैट (राज्य) और कुछ दूसरे प्रकार के छोटे-छोटे कारक जैसे सड़क कर, मोटर वाहन कर आदि। अगर राष्ट्रीय जीएसटी की बात की जाए, तो इन सारे तत्वों को शामिल करना अनिवार्य है। यह भी सर्वविदित निर्णय है कि संवैधानिक कठिनाइयों की वजह से जीएसटी को प्रायोगिक तौर पर लागू नहीं किया जा सका है।

अगर इस स्थिति में जीएसटी को लाया भी जाता है, तो उसकी प्रकृति दोहरी नजर आएगी और काफी चीजें अस्पष्ट नजर आएगी। केंद्रीय जीएसटी केवल उत्पाद शुल्क और सेवा कर के समन्वय के साथ ही बन सकता है। राज्यों के लिए अगर जीएसटी की बात की जाए, तो उसमें राज्याधारित वैट, सेवा कर और अन्य राज्य आरोपित करों को शामिल किया जाएगा।

वैसे यह एक अलग प्रश्न है कि कुछ राज्यों को सेवा कर लगाने का भी अधिकार दिया गया है। इसमें भी कुछ संवैधानिक परिवर्तनों की जरूरत है, अगर इन करों को राज्यों के द्वारा आरोपित किया जाता है। लेकिन अगर यह कर कभी कभार राज्यों द्वारा वसूले जाते हैं और समुचित मात्रा में राज्यों द्वारा संग्रहित किए जाते हैं, तो इसके लिए संवैधानिक परिवर्तनों की जरूरत नहीं है।

इसके लिए एक संसदीय कानून को लाना होगा और यह केंद्रीय बिक्री कर के मामले में काफी औचित्यपूर्ण भी होगा। केंद्रीय बिक्री कर एक ऐसा कर है, जो लगाया तो केंद्र के द्वारा जाता है, लेकिन इसका संग्रहण राज्यों द्वारा किया जाता है। अब केंद्रीय जीएसटी की बात करते हैं। स्थिति यह है कि कुल केंद्रीय उत्पाद शुल्क का 10 प्रतिशत राजस्व सेवा कर के जरिये आता है।

हो सकता है कि भविष्य के कुछ परिवर्तनों के कारण इसमें कुछ बदलाव आ जाए, लेकिन अगले कुछ लंबे समय तक इसका प्रतिशत 15 से कम रहेगा। इसलिए जीएसटी से बड़े भाई केंद्रीय उत्पाद शुल्क को अलग करने का मतलब है कि जीएसटी एक गरीब जान पहचान वाला भाई (सेवा कर) बनकर रह जाएगा।

कभी कभी इसी वजह से यह भी तर्क दिया जाता है कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर को जीएसटी के साथ शामिल नहीं किया जाना चाहिए। केंद्रीय उत्पाद शुल्क एक प्रकार का राजस्व हथियार है, यही तर्क सेवा कर के मामले में भी लागू होता है। वैसे यह हर प्रकार के करों के मामले में सही है चाहे वह प्रत्यक्ष कर हो या अप्रत्यक्ष कर।

अगर केंद्रीय उत्पाद शुल्क को राजस्व हथियार के तौर पर माना जाता है, तो इसलिए केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर को भी एक साथ करके राजस्व टूल के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अगर किसी प्रोत्साहन मामलों में केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कमी की जाती है, तो यही कमी जीएसटी के साथ भी की जानी चाहिए।

दुनिया के बहुत सारे देशों में जीएसटी की समीक्षा  लगातार की जाती है, ताकि राजस्व संतुलन कायम रखा जा सके। मिसाल के तौर पर , जापान (3 से 5 प्रतिशत), जर्मनी, ब्रिटेन आदि देशों में इसकी समीक्षा होती रहती है। केंद्रीय और राज्य स्तर पर जीएसटी की संरचना और इसके घटकों को लेकर किसी प्रकार के भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए।

हालांकि अभी भी जीएसटी केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर को शामिल कर बनाया जाता है, इसके लिए यह भी जरूरी है कि जीएसटी से जुड़ा सारा नियंत्रण भी केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क विभाग के हाथों होना चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो जीएसटी की वर्तमान स्थिति में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं होगा।

First Published - September 7, 2008 | 11:19 PM IST

संबंधित पोस्ट