‘रघुवीर सिंह बनाम हरि सिंह मालवीय’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वाहन दुर्घटना में व्यक्ति की मौत के लिए मुआवजे की गणना करते वक्त महंगाई भत्ते और मकान किराया भत्ते को भी शामिल किया जाना चाहिए।
वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने मोटर व्हीकल्स ऐक्ट की धारा 166 के तहत मुआवजे की गणना के लिए सिर्फ मूल वेतन को भी शामिल किया था। इसे मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की भी मंजूरी हासिल हो गई।
लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इन फैसलों को पलट दिया और कहा, ‘हमारी राय में, महंगाई भत्ता आय का हिस्सा होना चाहिए। मकान किराया भत्ते का परिवार के सदस्यों के लाभ के लिए भुगतान किया जाता है और न कि सिर्फ कर्मचारी के लिए।’
उच्च न्यायालय ने मामला सीएलबी के पास भेजा
सर्वोच्च न्यायालय ने इस सवाल को उसके समाधान के लिए कंपनी लॉ बोर्ड के सुपुर्द कर दिया कि क्या किसी कंपनी के निदेशक को इस्तीफा दिए जाने से पहले सिक्युरिटी जमा करने को कहा जा सकता है।
‘प्रणव कुमार पाल बनाम एलटीजेड इन्वेस्टमेंट (पी) लिमिटेड’ मामले में निदेशक और कंपनी दोनों से संयुक्त रूप से सीएलबी में सिक्युरिटी के तौर पर 2.85 करोड़ रुपये जमा कराए जाने को कहा गया था। निदेशक पर ‘कॉरपोरेट अवसर’ के लालच का आरोप लगाया गया। कंपनी लॉ बोर्ड ने निर्देश दिया कि निदेशक को कंपनी से इस्तीफा दिए जाने से रोका जाना चाहिए।
लेकिन निदेशक ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील दायर कर दी। इसमें उसे इस्तीफा दिए जाने की अनुमति तो मिल गई, लेकिन उस पर सिक्युरिटी जमा करने की शर्त थोप दी गई। उसने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और यह तर्क पेश किया कि ऐसी शर्त कॉन्ट्रेक्ट ऐक्ट की धारा 27 में वर्णित रोजगार की स्वतंत्रता के खिलाफ है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को निर्णय के लिए कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष भेज दिया।
अस्वीकृत चेक का मामला
सर्वोच्च न्यायालय ने जेके सिंथेटिक्स लिमिटेड की इकाई जेके यूटीलिटी के महा प्रबंधक को अपराधी ठहराए जाने के फैसले को पलट दिया है। यह मामला जारी किए गए चेक को बैंक ऑफ राजस्थान द्वारा अस्वीकृत किए जाने से जुड़ा हुआ है। निचली अदालतों जिनमें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय भी शामिल है, ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स ऐक्ट की धारा 138 के तहत उसके अपराध की पुष्टि कर दी थी।
‘रामराजसिंह बनाम स्टेट ऑफ एमपी’ मामले में एक अपील में महा प्रबंधक ने यह तर्क पेश किया था कि वह कंपनी के कारोबार संचालन के लिए जिम्मेदार नहीं था और इसलिए इसी ऐक्ट की धारा 141 के तहत उसे इस अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इन चेक को सौंपने वाला वित्त प्रबंधक फरार है। सर्वोच्च न्यायालय ने महा प्रबंधक के तर्क को स्वीकार करते हुए उसे अपराधमुक्त कर दिया।
ठेकेदार द्वारा रखे गए श्रमिकों का मामला
सर्वोच्च न्यायालय ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और मुंबई, सर्व श्रमिक संघ की कैंटीन श्रमिकों की यूनियन के बीच विवाद में बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया और केंद्र सरकार से इस मुद्दे को औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष उठाए जाने को कहा।
श्रमिकों ने मांग की थी कि उन्हें कंपनी में स्थायी रूप से खपाया जाए, हालांकि उन्हें एक ठेकेदार के जरिये इस कंपनी में रखा गया था। इन श्रमिकों का कहना था कि ठेकेदार को बीच में रखा गया था, ताकि उन्हें रोजगार लाभ से वंचित किया जा सके।
जब बंबई उच्च न्यायालय ने सरकार से इस विवाद को न्यायाधिकरण ले जाए जाने को कहा तो सरकार ने तर्क दिया कि ये श्रमिक सार्वजनिक इकाई के कर्मचारी नहीं हैं और इसलिए इस मुद्दे को न्यायाधिकरण में नहीं ले जाया जा सकेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रमुख सवाल यह है कि क्या वे कर्मचारी हैं और यह न्यायाधिकरण द्वारा तय किया जाना चाहिए सरकार द्वारा नहीं।
