कॉरपोरेट प्रशासन की हमारी समझ बदल गई है। पूर्व में हम कॉरपोरेट प्रशासन को एक ऐसी व्यवस्था के रूप में देखते थे जो सुनिश्चित करती थी कि मैनेजर (सीईओ और उसकी टीम) निजी लाभ के लिए निर्णय नहीं लेते और शेयरधारकों की संपत्ति पर कब्जा नहीं जमाते।
लेकिन अब हम कॉरपोरेट प्रशासन को बड़े पैमाने पर देखते हैं। अब इसे शेयरधारकों के लाभ के लिए संसाधनों के उचित इस्तेमाल सुनिश्चित करने वाली एक व्यवस्था के रूप में समझा जाता है।
उदाहरण के लिए उद्यम जोखिम प्रबंधन, जिसमें पहचान, मूल्यांकन और उद्यम जोखिम का प्रबंधन शामिल है, कॉरपोरेट प्रशासन व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण तत्व है। इसी तरह रणनीतिक लेखा और कॉरपोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (सीएसआर) कॉरपोरेट प्रशासन प्रणाली के तत्व हैं। कॉरपोरेट प्रशासन की इस नई अवधारणा का हवाला देने के लिए कुछ विशेषज्ञ इसे उद्यम प्रशासन की संज्ञा देते हैं।
जैसा कि पहले समझा जाता था, कॉरपोरेट वित्तीय रिपोर्ट और वित्तीय लेखा परीक्षण कॉरपोरेट प्रणाली की समर्थक हैं। वे विश्लेषकों और निवेशकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसलिए कॉरपोरेट वित्तीय रिपोर्टिंग और वित्तीय लेखा परीक्षण को और मजबूत किए जाने की जरूरत है।
मार्च, 2008 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ अकाउंटेंट्स (आईफैक) ने ‘वैल्यू चैन की वित्तीय रिपोर्ट-मौजूदा परिदृश्य और दिशा’ नामक अपनी रिपोर्ट जारी की। वित्तीय रिपोर्टिंग सप्लाई चेन लोगों के विचारार्थ भेजी गई है और इस प्रक्रिया में प्रस्तुति, मंजूरी, लेखा परीक्षण, विश्लेषण और वित्तीय रिपोर्टों के इस्तेमाल आदि को शामिल किया गया है। यह रिपोर्ट आईफैक द्वारा किए गए एक वैश्विक सर्वेक्षण पर आधारित है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सर्वेक्षण के परिणाम स्पष्ट हैं। प्रतिभागियों ने महसूस किया है कि वित्तीय रिपोर्टिंग सप्लाई चेन के तीन प्रमुख क्षेत्रों – कॉरपोरेट प्रशासन, वित्तीय रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया और वित्तीय रिपोर्ट का लेखा परीक्षण – में पिछले पांच वर्षों में काफी सुधार हुआ है। वैसे, वे यह नहीं मानते कि इस सप्लाई चेन के उत्पाद, वित्तीय रिपोर्ट उनके लिए ज्यादा फायदेमंद होंगे।
वास्तव में इसमें खुलासा किया गया है कि इन वर्षों के दौरान वित्तीय रिपोर्ट की उपयोगिता में सुधार नहीं आया है। कुछ वर्षों से वैल्यू चैन के प्रतिभागी लेखा मानकों और कॉरपोरेट वित्तीय रिपोर्ट को सरल बनाए जाने के पक्ष में तर्क पेश कर रहे हैं। लेकिन यह सरलीकरण आसान नहीं है। हालांकि विवादास्पद सवाल यह है कि क्या वे प्रासंगिकता खो चुके हैं। इसका जवाब है नहीं।
वैसे, अब अधिकांश विश्लेषक किसी कंपनी के मूल्यांकन में सूचना के प्रमुख स्रोत के रूप में कॉरपोरेट वित्तीय रिपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि अकाउंटिंग नियमों और कॉरपोरेट वित्तीय रिपोर्ट को सरल बनाने का प्रयास ही नहीं किया जाए। भविष्य में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों (आईएफआरएस) का सरलीकरण इंटरनेशनल अकाउंटिंग स्टैंडर्ड बोर्ड (आईएएसबी) के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी।
आईफैक की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कुल मिला कर सर्वेक्षण के प्रतिभागियों ने यह महसूस किया है कि वित्तीय रिपोर्ट का ऑडिट पिछले पांच वर्षों में बेहतर रहा है।’ सर्वेक्षण में दिखाया गया है कि लेखा परीक्षकों ने लेन-देन की सूक्ष्म समीक्षा के बजाय अब लेखा परीक्षित यानी ऑडिटेड कंपनी के रिस्क प्रोफाइल पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है और वे पहले की तुलना में ज्यादा स्वतंत्रता महसूस कर रहे हैं।
हालांकि कई प्रतिभागी निवेशकों के साथ लेखा परीक्षक के व्यवहार से खुश नहीं हैं। वे महसूस करते हैं कि अत्यधिक निरीक्षण और मुकदमेबाजी ने ‘कॉम्पलिएंस ऑडिट’ की निकटता और ‘बोयलर प्लेट’ ऑडिट रिपोर्ट को बढ़ावा दिया है। प्रतिभागियों को उम्मीद है कि वित्तीय लेखा परीक्षक प्रगतिशील होंगे और उन्हें अपने पेशेवर निर्णय को लागू करना चाहिए। वे लेखा परीक्षकों से और विवरण वाली रिपोर्ट की संभावना तलाशते हैं।
इस सवाल पर भी विचार किए जाने की जरूरत है कि क्या शेयरधारक वित्तीय लेखा परीक्षक द्वारा प्रबंधनलेखा समिति को भेजी जाने वाली विस्तृत रिपोर्ट मांग सकते हैं। और यदि वे रिपोर्ट के लिए कहते हैं तो क्या निदेशक मंडल इससे इनकार कर सकता है। शायद यह उचित समय है जब सरकार इस मुद्दे की जांच कर रही है, खासकर उस तथ्य को ध्यान में रखकर जिसमें शेयरधारकों द्वारा वित्तीय लेखा परीक्षक नियुक्त किया गया है और यह उनके लिए जवाबदेह है।
निवेशकों को लागत लेखा परीक्षण पर जोर देना चाहिए। भारत में लागत लेखा परीक्षण यानी कोस्ट ऑडिट चार दशकों से अस्तित्व में है। लेकिन इसका पूरी क्षमता के साथ इस्तेमाल नहीं किया गया है। अब तक केवल 44 उद्योगोंउत्पादों को कॉस्ट अकाउंटिंग रिकॉर्ड रूल्स के दायरे में लाया गया है और लगभग 2000 कंपनियों से संबद्ध तकरीबन 2500 मामलों में कोस्ट ऑडिट के ऑर्डर जारी किए गए हैं।
कीमतों पर लगाम लगाने की चर्चा करें तो संलग्न कॉस्ट स्ट्रक्चर की भूमिका महत्वपूर्ण है और यही वजह है कि कॉस्ट ऑडिट के दौरान इस पहलू पर खास तौर पर ध्यान दिया जाता है। सरकार को जमा करने के पहले कुछ औद्योगिक इकाइयों में कॉस्ट ऑडिट के दौरान कॉस्ट फिगर्स की जांच की जाती है और यह भी देखा जाता है कि उनकी वैद्यता क्या है। पर आज के बदलते आर्थिक समीकरणों के मद्देनजर अब यह ध्यान देना भी जरूरी है कि कार्यक्षमता कैसी है इस पर नजर रखी जाए।
कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया है जो मौजूदा कॉस्ट अकाउंटिंग स्टैंडर्ड्स और कॉस्ट ऑडिट रिपोर्ट रूल्स की पुनर्विवेचना कर सके। उम्मीद है कि नई रंग में रंगे कॉस्ट ऑडिट से सरकार को सहूलियत मिल सकेगी। हालांकि, कुछ लोगों की शिकायत है कि मार्केट इकोनॉमी में कॉस्ट ऑडिट का कोई महत्व नहीं रह गया है। माना जा रहा है कि ये सही नहीं हैं।