facebookmetapixel
मकान खरीदने का प्लान कर रहे हैं? लेने से पहले RERA पोर्टल पर जांच जरूरी, नहीं तो चूक पड़ेगी भारी!डॉलर के मुकाबले 90 के पार रुपया: क्या विदेश में पढ़ाई-इलाज और यात्रा पर बढ़ेगा खर्च?MSME को बड़ी राहत: RBI ने सस्ते कर्ज के लिए बदले नियम, ब्याज अब हर 3 महीने पर रीसेट होगानील मोहन से बिल गेट्स तक, टेक दुनिया के बॉस भी नहीं चाहते अपने बच्चे डिजिटल जाल में फंसेगोवा नाइटक्लब हादसे के बाद EPFO की लापरवाही उजागर, कर्मचारियों का PF क्लेम मुश्किल मेंSwiggy ने QIP के जरिए जुटाए ₹10,000 करोड़, ग्लोबल और घरेलू निवेशकों का मिला जबरदस्त रिस्पांससिडनी के बॉन्डी बीच पर यहूदी समारोह के पास गोलीबारी, कम से कम 10 लोगों की मौतऑटो इंडस्ट्री का नया फॉर्मूला: नई कारें कम, फेसलिफ्ट ज्यादा; 2026 में बदलेगा भारत का व्हीकल मार्केटDelhi Pollution: दिल्ली-NCR में खतरनाक प्रदूषण, CAQM ने आउटडोर खेलों पर लगाया रोकशेयर बाजार में इस हफ्ते क्यों मचेगी उथल-पुथल? WPI, विदेशी निवेशक और ग्लोबल संकेत तय करेंगे चाल

मोबाइल और नोट पर वायरस 28 दिन तक

Last Updated- October 13, 2020 | 2:28 AM IST

ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी के शोधकर्ताओं के मुताबिक कोरोनावायरस बैंक नोट, शीशे जैसे कि मोबाइल फोन की स्क्रीन और स्टेनलेस स्टील पर 28 दिनों तक रह सकता है। ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर डिजीज प्रीपेर्यडनेस (एसीडीपी) द्वारा कराए गए शोध में पाया गया है कि यह वायरस कपास जैसी छिद्रयुक्त जटिल सतहों की तुलना में कम तापमान पर और चिकनी सतहों मसलन कांच, स्टेनलेस स्टील और प्लास्टिक पर लंबे समय तक जीवित रहा है। शोध के दौरान यह भी देखा गया कि प्लास्टिक बैंक नोटों की तुलना में कागज के नोटों पर यह वायरस लंबे समय तक जीवित रहा है। वायरस किसी सतह पर कितनी देर तक सक्रिय रहा है इसकी जानकारी मिलने से यह अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है कि वायरस का प्रसार किस तरह से हो रहा है और इसे कम करने का तरीका क्या हो सकता है।
अब तक व्यापक रूप से यह माना जाता रहा है कि वायरस ठोस सतहों पर तीन दिनों तक ही जीवित रह सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक कोरोनावायरस प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 72 घंटे तक और गत्ते पर 24 घंटे तक और तांबे पर चार घंटे तक जीवित रह सकता है। शोध में विभिन्न सतहों पर एक कृत्रिम बलगम के समान स्तर पर वायरस को रखा गया जैसा कि संक्रमित मरीजों के नमूनों से मिली रिपोर्ट में दिखता है। यह प्रयोग 30 और 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर कराया गया और यह अंदाजा लगा कि तापमान बढऩे के साथ ही इसका जीवित रहने की समयावधि कम हो जाती है।
इन्फ्लूएंजा ए के लिए भी इसी तरह का प्रयोग किया गया और यह पाया गया कि वायरस 17 दिनों तक सतह पर 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बचा रह गया था। यह अध्ययन अंधेरे में भी किया गया था ताकि अल्ट्रा वायलेट प्रकाश के प्रभाव को दूर किया जा सके क्योंकि अनुसंधान में यह बात सामने आई थी कि सूर्य की सीधी रोशनी वायरस को तेजी से निष्क्रिय कर सकती है।
एसीडीपी के उप निदेशक डेब्बी इगल्स ने मीडिया को दिए बयान में कहा, ‘सतह पर वायरस के प्रसार की भूमिका की बात करें तो सतह के संपर्क का स्तर और संक्रमण के लिए जरूरी वायरस की मात्रा को निर्धारित करना अभी बाकी है। इससे ही यह तय होगा कि वायरस कितनी देर तक सतह पर बना रहेगा ताकि ऐसे संपर्क क्षेत्रों में जोखिम कम करने की रणनीति इसके ही मुताबिक बनाई जा सके।’ शोध में यह भी पाया गया कि शरीर के तरल हिस्से में पाए जाने वाला प्रोटीन और वसा भी वायरस के जीवित रहने के समय को काफी बढ़ा सकते हैं। एसीडीपी के प्रोफेसर ट्रेवर ड्यू ने कहा, ‘इससे यह अंदाजा मिलता है कि ठंडे माहौल में या ज्यादा वसा या प्रोटीन में इसका प्रसार ज्यादा होता है मसलन मांस प्रसंस्करण केंद्रों में।’
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक कोविड-19 का प्रसार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में होता है और जब कोई व्यक्ति बोलता, खांसता या छींकता है तब उसकी बूंदों से इसका प्रसार होता है। संक्रमण तभी हो सकता है जब कोई व्यक्ति ऐसे सतह या सामान को छूता है जिस पर वायरस मौजूद होते हैं और उसके बाद वह आंखों, नाक और मुंह को भी छू लेता है। 

First Published - October 13, 2020 | 2:28 AM IST

संबंधित पोस्ट