अफगानिस्तान में एयर इंडिया के जनरल सेल्स एजेंट (जीएसए) सुमीर भसीन काबुल में विगत कई वर्षों से ‘अनार’ नाम से भारतीय रेस्तरां का सफल संचालन कर चुके हैं। भसीन मुश्किल हालात में फंसे इस देश की पंजशेर घाटी सहित वहां के लगभग चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। वह संभवत: अफगानिस्तान में एक मात्र भारतीय व्यवसायी हैं क्योंकि वहां भारत की उपस्थिति ज्यादातर परियोजनाओं के वित्त पोषण एवं आर्थिक मदद तक ही सीमित है। अफगानिस्तान के मौजूदा हालात और भविष्य की संभावनाओं पर आदिति फडणीस ने उनसे बात की। पेश हैं संपादित अंश:
अफगानिस्तान में भारतीयों को हवाईअड्डा पहुंचने से रोका जा रहा है और वहां हालात अब नियंत्रण से बाहर दिख रहे हैं। आखिर काबुल में इस वक्त क्या हो रहा हैï?
जब अपदस्थ राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ा तो उसके तुरंत बाद काबुल हवाईअड्डे पर सुरक्षा व्यवस्था सहित पूरे अफगानिस्तान में सुरक्षा एजेंसियां चरमरा गईं। तालिबान के काबुल में दाखिल होने की खबरों ने उन्हें पहले ही आंतकित कर रखा था। एक तरह से यह साफ हो गया था कि राष्ट्रपति के देश छोड़ते ही तालिबान पूरे देश पर कब्जा कर लेंगे। तालिबान के सदस्य हवाईअड्डे के अंदर नहीं घुसे। जहां तक मेरी जानकारी है, घबराए लोगों के समूह, अपराधियों के झुंड अंदर दाखिल हुए थे क्योंकि तालिबान को उनके विशेष पहनावे और उनकी दाढ़ी से आसानी से पहचाना जा सकता है। उसके बाद हवाईअड्डïे पर जो हुआ उसे और विमान में लोगों के लटकने और उनके नीचे गिरने का दृश्य सभी ने देखा। हवाईअड्डा परिचालन से जुड़े लोग नदारद हो चुके हैं और अब काबुल हवाईअड्डा पूरी तरह अमेरिका सुरक्षा बलों के नियंत्रण में है। भविष्य में यह अमेरिका के हक में जा सकता है।
क्या अफगानिस्तान में फिर से कानून-व्यवस्था ठीक हो पाएगी?
हालात ठीक करने में तालिबान को थोड़ा वक्त लगेगा। वे लोगों को काम पर दोबारा जाने के लिए कह रहे हैं। मैंने ट्विटर पर पढ़ा कि उन्होंने सार्वजनिक सेवाएं बहाल रखने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय और बिजली एवं ऊर्जा मंत्रालयों के अधिकारियों के साथ बैठक की थी। तालिबान में प्रशासन चलाने लायक कुशलता अभी मौजूद नहीं है इसलिए उन्हें मौजूदा व्यवस्था पर ही निर्भर रहना होगा। मैंने इतना जरूर सुना है कि वे पूर्ववर्ती अफगानिस्तान गणराज्य का प्रतीक चिह्न पासपोर्ट या किसी अन्य दस्तावेज पर नहीं देखना चाहते हैं। वे पिछली सरकार से जुड़ी सभी चीजें खत्म करना चाहते हैं। फिलहाल वहां कोई सरकार नहीं है इसलिए असमंजस की स्थिति है। अमेरिका भी वास्तव में नहीं समझ पा रहा है कि उसे क्या करना चााहिए। तालिबान अभी भी संयुक्त राष्टï्र की प्रतिबंधित सूची में शामिल है।
हालात सामान्य करने के लिए तालिबान क्या करेगा? अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था का क्या होगा?
सच कहूं तो फिलहाल स्थिति स्पष्टï नहीं है। अफगानिस्तान में रकम विभिन्न परियोजनाओं एवं विदेशी सहायता आदि से आती थी लेकिन बड़ी आर्थिक गतिविधियां नहीं होती थीं। कृषि देश की अर्थव्यवस्था का औपचारिक क्षेत्र था लेकिन सरकार अपने बजट के लिए भी विदेश से प्राप्त सहायता पर निर्भर थी। कुल मिलाकर सभी सरकारी कामकाज विदेशी सहायता पर निर्भर था। वहां की सरकार के बजट में कर की हिस्सेदारी महज 30 से 40 प्रतिशत थी। भारत द्वारा तैयार ढांचागत परियोजनाओं या क्षमता निर्माण से संबंधित कार्यों के लिए भी बजट में प्रावधान नहीं हो रहा था। अब अमेरिका को यहां से चीजें पूरी तरह अपने हाथ में लेनी होगी। अफगानिस्तान के उत्तरी हिस्से से प्रतिरोध के स्वर जरूर सुनाई दे रहे हैं लेकिन बात इससे आगे बढ़ेगी ऐसा मुझे नहीं लगता है। चीन, ईरान और रूस जैसे देशों ने तालिबान के साथ संबंध रखने में अब तक किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं दिखाई है। अफगानिस्तान का इतिहास बताता है कि आस-पास के देशों की यहां अहम भूमिका रही है, इसलिए प्रतिरोध और मुखर होने के लिए बाहरी देशों से मजबूत समर्थन की जरूरत होगी।
अब एक औपचारिक सरकार का गठन होगा और तालिबान पर लगी पाबंदी में भी ढील देनी होगी। अमेरिका ने दोहा वार्ता के जरिये तालिबान को वैधता दे दी है। मैं उम्मीद करता हूं कि अमेरिका अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटेगा और प्रतिबंध जस का तस रहने नहीं देगा। अगर ऐसा हुआ तो किसी दूसरे देश के लिए भी तालिबान से वार्ता करना या उन पर प्रभाव डालना काफी मुश्किल हो जाएगा।
वहां के लोगों की क्या हालत है? वे अपने देश के घटनाक्रम को किस तरह देख रहे हैं?
मैं अपने कई मित्रों के साथ संपर्क में हूं। अब हिंसा नहीं हो रही है और लोग पहले से अधिक चिंतामुक्त हैं। इस शांति के बदले क्या कीमत अदा करनी होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा। मुझे नहीं लगता कि तालिबान 20 वर्ष पहले की तरह व्यवहार करेगा। अफगानिस्तान की एक बड़ी आबादी 11 सितंबर, 2001 के बाद पैदा हुई है। देश की 75 प्रतिशत आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की है। तालिबान लड़ाकों के पास भी आईफोन हैं और वे पूरी दुनिया से जुड़े हैं। इस तरह, तालिबान पर लगी पाबंदी पर दोबारा विचार करना होगा। पाबंदी में ढील पाने के लिए तालिबान को मानव अधिकारों लेकर अपना रवैया सुधारना होगा।