चीन द्वारा दुर्लभ खनिज और उर्वरकों की आपूर्ति स्थगित करने तथा विशेषज्ञ टेक्नीशियन को भारत से वापस बुलाने के कदम ने भारत के नीति निर्माताओं को मुश्किल में डाल दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए प्रतिक्रियावादी रवैया अपनाने के बजाय भारत को संतुलित रुख ही अपनाना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हम कच्चे माल के लिए पड़ोसी मुल्क चीन पर बहुत हद तक निर्भर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चीन के हालिया कदमों का इरादा भारत को चेतावनी देना भी हो सकता है क्योंकि व्यापार और भूराजनैतिक परिस्थितियों को लेकर तनाव गहरा हो रहा है।
हाल ही में फॉक्सकॉन टेक्नॉलजी ग्रुप ने भारत में अपनी आईफोन फैक्ट्रियों से सैकड़ो चीनी इंजीनियरों और टेक्नीशियनों को वापस भेज दिया है। इससे ऐपल के आईफोन 17 के निर्माण पर असर पड़ेगा।
आईफोन का यह मॉडल सितंबर के मध्य में लॉन्च होने की उम्मीद है। जानकारी के मुताबिक यह कदम चीन की सरकार द्वारा अपनी आपूर्ति शृंखला मजबूत करने से संबंधित हो सकता है। इसके अलावा चीन की तरफ से यह संकेत भी है कि नए उत्पाद बनाने की मशीनों से संबंधित तकनीक देश के भीतर ही रहनी चाहिए।
इसके अलावा चीन ने न केवल अहम उर्वरक-डाई-अमोनियम फॉस्फेट का निर्यात कम करके वैश्विक आपूर्ति पर दबाव बनाया है बल्कि उसने रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर प्रतिबंध लगाकर ऑटोमोटिव उद्योग को भी प्रभावित किया है। ऐसे कदम जिस समय उठाए गए हैं वह भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने में लगा है जबकि चीन और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण हैं। व्यापार मंत्रालय के पूर्व अधिकारी और दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के अजय श्रीवास्तव के मुताबिक व्यापार सौदे में ऐसे प्रावधान शामिल हो सकते हैं जो अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात में चीन के कच्चे माल के प्रयोग को हतोत्साहित करने वाले हों।
उन्होंने कहा, ‘महत्वपूर्ण खनिजों का निर्यात प्रतिबंधित करके और भारत के विनिर्माण संयंत्रों से इंजीनियरों को वापस बुलाकर चीन संकेत दे रहा है कि इस अलगाव की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसके अलावा भारत के मंत्रियों और अधिकारियों ने हाल ही में आसियान देशों को चीन की बी टीम करार दिया है और इस बात ने चीन को शायद नाराज किया हो।’ उन्होंने कहा, ‘इन सोचे समझे कदमों के साथ चीन भारत को याद दिला रहा है कि हम सैकड़ों औद्योगिक और तकनीकी उत्पादों के लिए चीन के कच्चे माल पर किस हद तक निर्भर हैं। संकेत है कि ये कदम तो एक झलक मात्र हैं और अगर भारत ने सावधानी नहीं बरती तो चीन अधिक दिक्कतें पैदा कर सकता है।’
विगत कुछ सालों में भारत का चीन को होने वाला निर्यात लगातार कम हुआ है लेकिन आयात बढ़ा है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान चीन को होने वाला निर्यात साल दर साल आधार पर 14 फीसदी कम होकर 14.2 अरब डॉलर हो गया। जबकि आयात में 11.5 फीसदी का इजाफा हुआ और वह 113.4 अरब डॉलर रहा। वित्त वर्ष 25 के दौरान चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 99.2 अरब डॉलर के साथ अब तक के उच्चतम स्तर पर रहा। काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के प्रोफेसर विश्वजित धर ने कहा कि भारत को अपने कदम उठाने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि हम चीन के आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं। उन्होंने कहा, ‘चीनी आयात जिस गति से बढ़ रहा है वह चिंताजनक है और भारत के पास अधिक विकल्प नहीं हैं। हम चीन के साथ सख्ती नहीं बरत सकते और अगर आयात पर और प्रतिबंध लगते हैं तो हमारे घरेलू विनिर्माण पर असर होगा।’
चीन भारत का सबसे बड़ा आयात साझेदार है और देश में आने वाले कुल आयात का 15 फीसदी चीन से आता है। भारत एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, केमिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक आदि कई अहम घटकों के लिए चीन पर निर्भर है।