मॉरीशस की वित्तीय सेवाएं एवं आर्थिक नियोजन मंत्री ज्योति जीतुन का कहना है कि भारत के साथ दोहरा कर अपवंचन समझौते (डीटीएए) को दुरुस्त करने पर काम चल रहा है और कुछ महत्त्वपूर्ण बदलावों को जल्द ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा। नई दिल्ली में रुचिका चित्रवंशी को दिए साक्षात्कार में जीतुन ने कहा कि भारतीय उद्योग प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने की क्षमता रखते हैं और अमेरिकी शुल्कों के दबाव से जल्द उबर जाएंगे।
डीटीएए में बदलाव के बाद मॉरीशस से एफडीआई और एफपीआई कम हो गया है। क्या डीटीएए भारत में विदेशी निवेश पर असर डाल रहा है और क्या आप इसके प्रावधान में बदलाव के लिए भारत के साथ बातचीत करेंगी?
पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से मॉरीशस भारत में एफडीआई का सबसे बड़ा जरिया रहा है। 2016 में डीटीएए में संशोधन के बाद सिंगापुर पहले, अमेरिका दूसरे और मॉरीशस अब कई वर्षों से लगातार तीसरे स्थान पर है। प्रावधानों में महत्त्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं जिन पर अभी अंतिम मुहर नहीं लगी है। इस पर फिलहाल चर्चा चल रही है।
मुझे पूरी उम्मीद है कि कुछ बेहतर बदलाव होंगे और ये जल्द अंजाम तक पहुंच जाएंगे। मैं अपने देश के लोगों से यह भी कहती हूं कि भारत एक अर्थव्यवस्था के रूप में तेजी से प्रगति कर रहा है आने वाले वर्षों में यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। भारत की बढ़ती हैसियत के साथ हमें भी वहां संभावनाओं का लाभ उठाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। लिहाजा, केवल डीटीएए पर निर्भर रहने के बजाय हमें अन्य क्षेत्रों में भी भारत के साथ साझेदारी की संभावनाएं तलाशनी चाहिए।
क्या निवेशकों ने समस्याओं की तरफ इशारा किया है जिन पर भारत को ध्यान देना चाहिए?
आपसी समझ, सहयोग और समन्वय की भावना की कमी बिल्कुल नहीं है। मैं हमेशा अपनी टीम से कहती हूं कि केवल अपने लिए सब कुछ पाने की कोशिश ठीक नहीं होती। एक व्यापारिक संबंध और वाणिज्यिक आर्थिक साझेदारी में दोनों पक्षों को एक-दूसरे की चुनौतियों और बाधाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए।
भारत से अन्य देशों को निर्यात का मॉरीशस पहले प्रवेश द्वार माना जाता था। क्या भारतीय कंपनियां वहां अपने स्टोर खोल रही हैं?
मॉरीशस के भारत के साथ ऐतिहासिक संबंध रहे हैं जो हमारे लिए बड़ा अवसर है। हम अफ्रीकी संघ के सदस्य भी हैं इसलिए हम भारत के साथ इस बेहद खास रिश्ते के साथ स्वयं को अफ्रीका में निवेश का जरिया बनाने में सक्षम पाते हैं। वास्तव में ऐसा हो भी रहा है। अफ्रीका से जुड़ी नीति की एक अहम बात यह है कि हम किस तरह भारत से अफ्रीका के बीच एक पुल या जरिया कैसे बन सकते हैं।
भारत पर 50 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क लगने के साथ अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा देने में मॉरीशस किस तरह सहयोग दे सकता है?
दुनिया में इस समय अनिश्चितता काफी बढ़ गई है। मगर सभी देशों और उद्योगों को इन बदलते हालात के साथ तालमेल बैठाना होगा। इनमें से कुछ बदलाव व्यापक हैं जो हमारे व्यवसायों पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं। मगर भारत और यहां का उद्योग जगत चुनौतियों से निपटने में सक्षम है। मॉरीशस भारत के लिए अफ्रीका में बढ़ते बाजार के लिए एक बहुत ही दिलचस्प पुल बन सकता है।
क्या आपको व्यापक आर्थिक सहयोग एवं भागीदारी समझौता में विस्तार की और गुंजाइश दिख रही है। व्यापार के क्षेत्र में भारत और मॉरीशस किस तरह कदम बढ़ा रहे हैं?
हम सेवा क्षेत्र में व्यापार बढ़ाने के लिए काम करेंगे। वहां तस्वीर साफ दिख रही है हालात में सुधार के प्रयास हो रहे हैं। मुझे लगता है कि बहुत जल्द ये प्रयास सकारात्मक परिणाम लाएंगे। इससे दोनों देशों के बीच सेवाओं के व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा।
भारत और मॉरीशस स्थानीय मुद्रा में व्यापार करने पर बातचीत कर रहे थे। इस मोर्चे पर क्या प्रगति हुई है?
इस पर दोनों देश बातचीत कर रहे हैं। यह बातचीत स्थानीय मुद्रा में व्यापार एक बहुत बड़े बदलाव का माध्यम बनेगी क्योंकि एक प्रकार से यह हमारी अर्थव्यवस्था की डॉलर पर निर्भरता कम कर देगी। हम ज्यादातर सामान आयात करते हैं और ज्यादातर भुगतान अमेरिकी डॉलर में करते हैं इसलिए अपनी स्थानीय मुद्रा में आयात और भुगतान करने में सक्षम होना हमारे हक में होगा।