संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के महासचिव द्वारा चुनिंदा वैश्विक नेताओं के साथ जलवायु परिवर्तन के मसले पर हुई उच्च स्तरीय बैठक में जलवायु के लिए वित्तपोषण और सहायता चर्चा के केंद्र में रहा। विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह बातचीत का अहम हिस्सा बन गया है। इस चर्चा में शामिल रहे भारत ने जोर दिया कि विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई के लिए विकसित देशों को वित्तपोषण करना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिल एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी देते हुए कहा कि आगामी सीओपी 26 के विफल होने का पूरा जोखिम है, जब तक कि विश्व के प्रमुख देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लेकर ठोस कदम नहीं उठाते हैं। गुटेरेस ने कहा, ‘यह बैठक जलवायु प्रक्रिया की स्थिति और उसकी जरूरतों की तात्कालिकता को लेकर एक चेतावनी जैसी है।’
भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे केंद्रीय वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि विकसित देशों को 2009 में किए गए वादे को पूरा करना चाहिए, जिसमें उन्होंने हर साल 100 अरब डॉलर खर्च करने का वादा किया था।
यादव ने कहा, ‘2008 से 2020 के बीच विकसित देशों ने अपने अनुमानित उत्सर्जन की स्वीकृति से ज्यादा उत्सर्जन किया है, उन्हें इसे कम करने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए और विकासशील देशों की वित्तीय मदद करनी चाहिए।’
उन्होंने यह भी कहा कि इस बात पर चर्चा किए जाने की जरूरत है कि क्या संसाधनों का मानदंड विकासशील देशों की जरूरतों के मुताबिक है। यादव ने कहा कि सीओपी26 क ध्यान जलवायु संबंधी वित्तपोषण और कम कीमत पर हरित तनकीकों के हस्तांतरण को गति देने पर होना चाहिए।
इस बैठक में सीओपी के आयोजक यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट्स चाइना, ईयू देश के साथ कुछ विकासशील देश शामिल थे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि बैठक के बाद भी कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं पीछे चल रही हैं।
