चीन ने सेमीकंडक्टर के उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण समझे जाने वाले दो तत्वों- गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात पर अंकुश लगाने की घोषणा की है। इससे वैश्विक बाजार को झटका लगा है क्योंकि चीन दुर्लभ खनिजों का उत्पादन करने वाला प्रमुख देश है।
हालांकि चीन ने पश्चिमी देशों को जवाब देने के लिए यह कदम उठाया है। मगर इससे भारत में चिप उत्पादन की योजना भी प्रभावित हो सकती है। भारत सेमीकंडक्टर के उत्पादन का एक प्रमुख वैश्विक केंद्र बनना चाहता है। यह देश में तेजी से बढ़ रहे दूरसंचार और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योगों को भी प्रभावित कर सकता है।
गैलियम और जर्मेनियम ऐसी धातु हैं जो प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं। मगर वे रिफाइनरियों में अन्य धातुओं के सह-उत्पाद के तौर पर भी बनती हैं। गैलियम बॉक्साइट और जिंक अयस्कों के प्रसंस्करण का सह-उत्पाद है। इसका उपयोग सूचन एवं संचार उद्योग में सेमीकंडक्टर, एकीकृत सर्किट और एलईडी बनाने में किया जाता है। इसके अलावा इसे इलेक्ट्रॉनिक सर्किट, विशेषीकृत थर्मामीटर, बैरोमीटर सेंसर, सौर पैनल, ब्लू-रे तकनीक और फार्मास्युटिकल्स में भी उपयोग किया जाता है।
जर्मेनियम आमतौर पर जस्ता और सल्फाइड अयस्कों के सह-उत्पाद के तौर पर बनता है। बिजली उत्पादन संयंत्रों में कोयला जलने से तैयार राख में भी उल्लेखनीय मात्रा में जर्मेनिमय पाया जाता है। इसका उपयोग सूचना एवं संचार, क्लियर टेक्नोलॉजी और उन्नत विनिर्माण की मूल्य श्रृंखला में किया जाता है। इसका उपयोग ऑटिकल फाइबर, उपग्रह, सोलर सेल के अलावा कैमरा, माइक्रोस्कोप लेंस, इन्फ्रारेड नाइट विजन प्रणाली आदि में किया जाता है।
हालांकि देश में इन खनिजों की मौजूदा मांग फिलहाल कम है लेकिन यदि भारत सेमीकंडक्टर उत्पादन का प्रमुख केंद्र बनता है तो आगे इसकी जबरदस्त मांग होने की उम्मीद है। डेलॉयट के अनुसार, साल 2030 तक वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग का राजस्व 1 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है।