नए वित्त वर्ष की शुरुआत पर भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि के परिदृश्य में चुनौतियां दिख रही हैं। इसका कारण पारस्परिक शुल्क, कारोबारी अनिश्चितता और बढ़ता भूराजनीतिक तनाव है। हालांकि अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि आंतरिक मजूबती और गिरती महंगाई के कारण भारत अच्छी स्थिति में रहेगा।
वित्त मंत्रालय ने अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत बेलगाम तरीके से शुल्क बढ़ाने के कारण वृद्धि पर प्रभाव पड़ने को लेकर गत बुधवार को चिंता जताई थी। ट्रंप ने 2 अप्रैल से कारोबारी साझेदारों पर जवाबी शुल्क लगाए जाने की शुरुआत करने की चेतावनी दी है। इस क्रम में स्टील, एल्युमीनियम और ऑटोमोबाइल पर भारी शुल्क लगाया जा चुका है।
क्वांटइको रिसर्च के अर्थशास्त्री विवेक कुमार ने कहा, ‘अभी तक कई बातों के बारे में जानकारी नहीं है। हम नहीं जानते कि ये जोखिम किस रूप में सामने आएंगे।’ उन्होंने बताया कि पारस्परिक शुल्क का किस तरह का असर होगा इसका अनुमान नहीं है लेकिन इससे वैश्विक वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
कुमार ने बताया, ‘वैश्विक वृद्धि में गिरावट की आशंका है। भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष रूप से 5 से 10 आधार अंक का प्रभाव पड़ सकता है लेकिन प्रत्यक्ष प्रभाव कहीं अधिक हो सकता है।’
आर्थिक समीक्षा में अनुमान जताया गया है कि वित्त वर्ष 26 में भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि 6.3 से 6.8 फीसदी के बीच हो सकती है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इस वित्त वर्ष में 6.7 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया है।
कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आने वाले समय में कारोबारी अनिश्चितता थम जाएगी और इससे निवेशकों को अधिक स्पष्टता भी मिल सकती है। कई विशेषज्ञों का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2024-25 में धीमी वृद्धि के कारण अगले वित्त वर्ष के दौरान कुल वृद्धि जोर पकड़ सकती है। इस वृद्धि को बढ़ाने में महंगाई का दबाव कम होने और बढ़ती घरेलू उपभोग की मांग से भी मदद मिलेगी।
डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने बताया, ‘हमें वित्त वर्ष 26 में वृद्धि मार्केट के अनुमान से अधिक रहने की उम्मीद है। कम महंगाई, वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम दायरे में रहने, सरकार के कर प्रोत्साहन, कम उधारी दर, अधिक नकदी और अधिक स्थिर वैश्विक वातावरण की बदौलत इस साल के अंत तक मनोदशा मजबूत रहने का अनुमान है।’
निवेश बैंकिंग फर्म रिसर्जेंट इंडिया के प्रबंध निदेशक ज्योति प्रकाश गादिया ने बताया, ‘सेवा क्षेत्र ने तुलनात्मक रूप से बहेतर प्रदर्शन किया और इसकी वृद्धि कायम रहने की उम्मीद है। अभी विनिर्माण क्षेत्र भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और आगे बढ़ रहा है। विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में कहीं अधिक बेहतर ढंग से योगदान दे सकती है।’ बहरहाल, कारोबार विशेषज्ञों ने बदलते भूराजनीतिक परिदृश्य और बढ़ते शुल्क युद्ध को लेकर सतर्कता बरती है।
नोमूरा ने हालिया रिपोर्ट में कहा कि यदि अमेरिका से भारत में आयात किए जाने वाले उत्पादों पर 9.5 फीसदी शुल्क है और भारत से आयात पर अमेरिका 3 फीसदी शुल्क है तो अमेरिका का जवाबी शुल्क 6.5 फीसदी हो सकता है। उसने कहा, ‘ हालांकि हमें आशंका है कि अमेरिका का लगाया जाने वाला जवाबी शुल्क कहीं अधिक व्यापक हो सकता है और इसकी मात्रा का अनुमान लगाना कहीं अधिक मुश्किल है।’