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Business Standard Manthan 2024: चाइना प्लस वन स्ट्रेटेजी को लेकर गलतफहमी या बढ़ा-चढ़ाकर किया जा रहा पेश, विशेषज्ञों ने दी राय

BS Manthan में पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन और ब्रिटेन में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त नलिन सूरी के साथ चर्चा का संचालन किया।

Last Updated- March 28, 2024 | 5:58 PM IST
India must not brand itself with China-Plus-One tag: Experts at BS Manthan Business Standard Manthan 2024: चाइना-प्लस-वन को लेकर गलतफहमी या बढ़ा-चढ़ाकर किया जा रहा पेश, विशेषज्ञों ने दी राय

विदेशी कंपनियां इन दिनों व्यापार को लेकर चीन का विकल्प तलाशने के लिए मजबूती से लगी हुई हैं। कोरोना महामारी के दौरान जीरो कोविड पॉलिसी के तहत लगी सख्त पाबंदी के बाद से ज्यादातर कंपनियां चीन को छोड़कर दूसरे देशों में अपना बिजनेस फैलाने की संभानवा तलाश रही हैं और उनके लिए दुनिया के कई देशों के मुकाबले भारत एक बेहतर विकल्प दिख रहा है। ऐसे में आज बिज़नेस स्टैंडर्ड की 50वीं सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम बीएस मंथन (BS Manthan) कार्यक्रम में तीन विदेश और रक्षा मामलों के विशेषज्ञों ने चाइना प्लस वन (China-Plus-One) स्ट्रेटेजी के बारे में चर्चा की और भारत को इसे लेकर सचेत किया।

तीनों विशेषज्ञों ने कहा कि यह भारत के लिए अच्छा नहीं होगा कि वह चाइना-प्लस-वन स्ट्रेटेजी के इर्द-गिर्द अपनी रणनीति न बनाए। क्योंकि ग्लोबल कंपनियां कम्युनिस्ट देशों में निवेश करने से बचती हैं और इसके बदले वे अन्य देशों में अपने बिजनेस को फैलाना चाहती हैं।

बिज़नेस स्टैंडर्ड की 50वीं सालगिरह के अवसर पर आयोजित बीएस मंथन समिट में इस बात पर चर्चा हुई कि भारत कैसे पश्चिमी देशों की कंपनियों के चाइना-प्लस-वन टैग से बच सकता है और अपनी ताकत का सही और मजबूत इस्तेमाल कर सकता है। कार्यक्रम में पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन (Former foreign secretary Shyam Saran) ने पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन (Shiv Shankar Menon) और ब्रिटेन में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त नलिन सूरी (former Indian high commissioner to the UK Nalin Surie) के साथ चर्चा का संचालन किया।

चाइना-प्लस वन का क्या है सही मायने ?

चर्चा की शुरुआत करते हुए सरन ने कहा कि चाइना प्लास वन पश्चिमी और ग्लोबल मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा चीन को छोड़ने, अपनी फैसिलिटीज को खत्म करने और भारत जैसे देशों में शिफ्ट होने के बारे में नहीं है। प्रमुख मल्टीनेशनल कंपनियां वास्तव में चीन से दूर नहीं जा रही हैं बल्कि एक छोटे पैमाने को छोड़कर दूसरे देशों में विस्तार कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि Plus One का इन बिजनेस से ज्यादा लेना-देना है जो अपने ज्यादातर नए निवेशों को अन्य स्थानों पर शिफ्ट कर रहे हैं। सरन ने कहा कि इन सबके इतर चाइना-प्लस-वन इस बारे में ज्यादा मायने रखती है कि नया निवेश कहां जा रहा है।’

तीनों पैनलिस्टों ने इस बात पर सहमति जताई की कि चाइना-प्लस-वन को या तो चीन से दूर कंपनियों के होलसेल आंदोलन के रूप में गलत समझा गया या कम से कम इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया।

मेनन ने कहा, ‘अब कोई भी चीन के साथ संबंध तोड़ने की बात नहीं करता है, वे केवल जोखिम कम करने की बात करते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘आज अमेरिका-चीन व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। चाइना-प्लस-वन बीजिंग के अलाना दूसरे देशों में भी विस्तार के बारे में है।’

विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी देशों और भारत दोनों के लिए चीन से वास्तविक अलगाव संदेहास्पद है।

चीन की अर्थव्यवस्था में कैसे होगा सुधार

मेनन ने कहा, ‘चीन का मानना ​​है कि दुनिया के साथ उसके संबंध में लगातार गिरावट आ रही है और दुनिया के साथ उसके लिए बिजनेस की संभावनाएं दिनों-दिन घटती जा रही हैं।’

‘चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि हम (चीन) जितना अधिक आगे बढ़ेंगे, उतना ही अधिक हमें विरोध देखने को मिलेगा।’ मेनन के मुताबिक, शी का इसका समाधान ‘दोहरी-परिसंचरण अर्थव्यवस्था’ (dual-circulation economy) है, जो एक तरफ आंतरिक खपत (internal consumption ) पर आधारित है और दूसरी तरफ यह भी तय करना है कि अन्य देश चीन पर निर्भर हो जाएं। दूसरे शब्दों में समझें तो इसका मतलब दूसरे देशों को कर्ज देकर, टेक्नोलॉजी प्रोवाइड कर, ज्यादा निवेश कर वगैरह माध्यमों से उनकी निर्भरता चीन के प्रति बढ़ाना और साथ ही साथ अपने खुद के देश में खपत में इजाफा करना है।

भारत को कम करनी होगी चीन पर निर्भरता

सूरी ने कहा, भारत को इस तरह से विकास करने की जरूरत है कि चीन पर उसकी निर्भरता कम हो। यह काम कितना कठिन होगा, इस पर फोकस करते हुए सूरी ने कहा कि जून 2020 में दोनों देशों के बीच गलवान सैन्य संघर्ष (Galwan military clash) के बाद, महत्वपूर्ण उत्पाद श्रेणियों और इनपुट (vital product categories and inputs ) के लिए चीन पर भारत की निर्भरता आदर्श रूप से कम हो जानी चाहिए थी। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ था।

लद्दाख की गलवान घाटी में झड़प और दोनों पक्षों द्वारा सेनाओं के जमावड़े के बाद बाद में बीजिंग के साथ भारत के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए।

सूरी ने कहा, ‘हमें इस निर्भरता को कम करने की जरूरत है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘भारतीय उद्योग को चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए। और, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र पहले से ही पिछले पांच वर्षों में कुछ हद तक चीन से दूर जा रहा है।’

सूरी ने चेताया, ‘इसका मतलब बंद अर्थव्यवस्था (क्लोज्ड इइकनॉमी) नहीं है।’ यानी पूरी तरह से व्यापार पर पाबंदी लगाना नहीं है।

विशेषज्ञों ने भारत को चाइना-प्लस-वन विचार पर चलने से बचने की सलाह दी है।

चाइना-प्लस-वन टैग पर सहमति नहीं

मेनन ने कहा, ‘एक भारतीय के रूप में, मैं चाइना-प्लस-वन (टैग) से सहमत नहीं हूं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे लिए, भारतीय रणनीति तैयार करने के लिए यह बहुत कमजोर आधार है।’

मेनन के मुताबिक, भारत की पसंद आयात को लेकर चीन को दरकिनार करना और चीन पर पूरी तरह से निर्भरता के बीच नहीं थी। इसके बजाय, उन्होंने प्रस्ताव दिया कि भारत को आयात के लिए अपनी खुद की चाइना-प्लस-वन रणनीति अपनानी चाहिए, जिसके तहत वह वैकल्पिक स्रोत (alternative sources) ढूंढेगा और डाइवर्सिटी लाएगा। मेनन ने कहा, ‘भारत को अपने लिए डी-रिस्किंग या चाइना-प्लस-वन रणनीति की जरूरत है।’

सूरी ने कहा, ‘मैं चाइना-प्लस-वन टैग से खुश नहीं हूं। मुझे नहीं लगता कि भारत चाइना-प्लस-वन है। इसकी अपनी कहानी है।’

सूरी के मुताबिक भारत को स्वतंत्र रास्ता अपनाने और आत्मविश्वास की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘हम चीन की आर्थिक वृद्धि की राह पर नहीं चल पाएंगे।’

First Published - March 28, 2024 | 5:48 PM IST

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