संसद का शीतकालीन सत्र निर्धारित समय से एक दिन पहले ही गुरुवार को समाप्त हो गया। यह17वीं लोकसभा का अंतिम सत्र भी था। अंतिम दिन अधिकांश विपक्षी सदस्यों की अनुपस्थिति में दोनों सदनों में अंतिम दिन करीब आधा दर्जन विधेयक पारित किए गए।
लोक सभा में तीन और विपक्षी सदस्यों- कांग्रेस के नकुल नाथ, दीपक बैज और डीके सुरेश को निलंबित कर दिया गया। इसके साथ ही लोक सभा से निलंबित होने वाले सदस्यों की तादाद 100 हो गई। इस सत्र के दौरान दोनों सदनों के 146 सदस्यों को ‘अनियंत्रित आचरण’ के कारण निलंबित किया गया।
ये सदस्य केंद्रीय गृह मंत्री से मांग कर रहे थे कि वह 13 दिसंबर को संसद की सुरक्षा में सेंध लगने के मामले में वक्तव्य दें। इससे पहले इसी सत्र में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को लोक सभा से निष्कासित कर दिया गया था।
‘इंडिया’ गठबंधन के सांसदों ने गुरुवार को संसद से विजय चौक तक पैदल मार्च किया। उन्होंने अपने हाथों में बैनर और तख्तियां ले रखी थीं जिन पर लिखा था- ‘लोकतंत्र को बचाओ,’ ‘संसद पिंजरे में कैद’ और ‘लोकतंत्र का निष्कासन।’ ये सांसद दोनों सदनों से किए गए निलंबन का विरोध कर रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुरक्षा में सेंध के मसले पर सदन में कुछ न बोलकर संसदीय विशेषाधिकार का हनन किया है। उन्होंने कहा, ‘वह बनारस, अहमदाबाद में, टीवी पर बोलते हैं लेकिन संसद में नहीं। उन्होंने सदन का अनादर किया है। उन्हें पहले लोक सभा और राज्य सभा में बोलना चाहिए। इसके बजाय वह सदन के बाहर बोल रहे थे। यह निंदनीय है और यह सदन के विशेषाधिकार का भी उल्लंघन है।’
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री किए जाने और इस पर उनकी टिप्पणी के बारे में खरगे ने कहा, ‘मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि राज्य सभा के सभापति एक मुद्दा बनाकर सदन में जातिवाद ले आए।’
सत्र के अंत में अपनी टिप्पणी में लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि 4 दिसंबर से सदन की 14 बैठक हुई, वहां 61 घंटे और 50 मिनट काम हुआ और उसने 74 फीसदी उत्पादकता दर्ज की। इस दौरान 18 विधेयक पारित हुए।
सत्र के आखिरी दिन राज्य सभा ने तीन विधेयक पारित किए जो औपनिवेशिक काल के आपराधिक कानूनों का स्थान लेंगे। इन्हें लोकसभा ने बुधवार को पारित किया था। संसद ने दूरसंचार विधेयक और एक ऐसा विधेयक भी पारित किया जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की व्यवस्था देगा।
लोक सभा ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्य संचालन) विधेयक को इस सप्ताह के आरंभ में पारित किया था। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि यह विधेयक सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुरूप था। इस निर्णय के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति सरकार की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी।
एक बार विधेयक के अधिसूचित हो जाने के बाद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला पैनल जिसमें उनके द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री, नेता प्रतिपक्ष अथवा लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता शामिल होगा, निर्वाचन आयोग के सदस्यों का चयन करेगा। आगामी 14 फरवरी को निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय के पद छोड़ने पर एक पद रिक्त होगा।
बहस के दौरान बीजू जनता दल के भर्तृहरि महताब ने कहा कि प्राथमिक ध्यान इस बात पर नहीं होना चाहिए कि समिति में देश के प्रधान न्यायाधीश की जगह है या नहीं बल्कि इस समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता कायम रहे।
एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे मनमाना और पूर्वग्रह से ग्रस्त करार दिया। उन्होंने कहा, ‘अगर मतदाताओं को यह महसूस होता है कि भारत का निर्वाचन आयोग निष्पक्ष नहीं है तो लोकतंत्र की वैधता ही सवालों के घेरे में आ जाएगी।’
राज्य सभा ने एक घंटे दस मिनट की बहस के बाद दूरसंचार विधेयक पारित कर दिया। बहस में मंत्री और सात सांसदों ने हिस्सा लिया। लोकसभा ने बुधवार को एक घंटे की बहस के बाद यह विधेयक पारित कर दिया था। वहां संबंधित बहस में चार सांसदों ने हिस्स लिया।
गुरुवार को राज्य सभा में संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विधेयक में लाइसेंसिंग व्यवस्था और स्पेक्ट्रम प्रबंधन से जुड़े अहम बदलावों के सरकार के कदम का बचाव करते हुए कहा, ‘एक महत्त्वपूर्ण स्पेक्ट्रम सुधार लाया जा रहा है जो दूरसंचार क्षेत्र को भ्रष्टाचार और 2जी जैसे घोटालों के अंधकार युग से बाहर ले जाएगा।’
मंत्री ने जोर देकर कहा कि विनिर्माण क्षेत्र में ऐसे ही सुधार 8,000 करोड़ रुपये मूल्य के दूरसंचार उपकरणों के निर्यात को संभव बना रहे हैं। दूरसंचार विधेयक ने केंद्र का मार्ग प्रशस्त किया है कि वह सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का आवंटन कर सके और उसने ओवर द टॉप सेवाओं को उसके नियमन के दायरे से बाहर रखा है।
विधेयक के अनुसार धोखाधड़ी से या गलत पहचान से सिम या अन्य दूरसंचार पहचान क्रय करने वालों को तीन साल की सजा और 50 लाख तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। एक विवादास्पद बिंदु यह है कि विधेयक राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को दूरसंचार सेवाओं और नेटवर्क का अधिग्रहण करने, उनका प्रबंधन करने या उन्हें निलंबित करने का अधिकार देता है।