भारत में जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि की रफ्तार में अच्छी कमी आई है। एक प्रमुख वैश्विक शोधकर्ता ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले साल के आखिर से यह गिरावट दिख रही है। उन्होंने बताया कि इसकी मुख्य वजह जीवाश्म ईंधन के जरिये बिजली उत्पादन में कमी और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि है।
भारत में ताप विद्युत उत्पादन में चीन की तरह पहली बार गिरावट आई है। यह गिरावट पिछले साल जून से इस साल जून की अवधि में दर्ज की गई है। अगर कोविड वैश्विक महामारी और उसके बाद लॉकडाउन अवधि को छोड़ दिया जाए तो यह इस सदी की पहली गिरावट है। इस दौरान स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि भी दर्ज की गई है।
एक वैश्विक थिंक टैंक द्वारा बिज़नेस स्टैंडर्ड से साझा किए गए खास आंकड़ों के अनुसार, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के कारण देश में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते उत्सर्जन को रोकने में मदद मिली है। फिनलैंड के थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी ऐंड क्लीन एयर की प्रमुख विश्लेषक लॉरी मायलीविर्ता ने ईमेल के जरिये बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा, ‘चीन और भारत दोनों देशों में पिछले 12 महीनों (जून तक) के दौरान जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन में समान रूप से कमी देखी गई है।’ उन्होंने कहा, ‘जहां तक भारत का सवाल है तो कोविड-19 लॉकडाउन के अलावा यह इस सदी की पहली गिरावट है।’
पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की ग्लोबल रिन्यूएबल्स 2024 रिपोर्ट के अनुसार, ‘मौजूदा नीतियों और बाजार स्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमारा मुख्य लक्ष्य 2030 तक 5,500 गीगावॉट की नई अक्षय ऊर्जा क्षमता को चालू करना है। इसमें से भारत की हिस्सेदारी 6 फीसदी रहने की उम्मीद है।’
आईईए ने कहा, ‘भारत में तेजी से हो रही नीलामी के अलावा रूफटॉप पीवी (फोटोवोल्टेइक) के लिए नई सहायता योजना और कई यूटिलिटी कंपनियों के मजबूत वित्तीय संकेतक देश को 2030 तक बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेजी से बढ़ता अक्षय ऊर्जा बाजार बना सकते हैं।’
दक्षिण एशिया में डेलॉयट के पार्टनर (सततता एवं जलवायु) विरल ठक्कर ने कहा, ‘नवीकरणीय खरीद दायित्व (आरपीओ), ग्रीन ओपन ऐक्सेस और नैशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जैसे उपायों के साथ नीतिगत तेजी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे सभी क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिला है।’
उन्होंने कहा कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान नई क्षमता वृद्धि में अक्षय ऊर्जा का योगदान करीब 80 फीसदी रहा, जबकि गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 228 गीगावॉट तक पहुंच गई। मगर मौजूदा स्थापना दर के आधार पर, 2030 में वैश्विक वार्षिक वृद्धि के लक्ष्य 940 गीगावॉट में भारत का योगदान अभी भी केवल लगभग 3 फीसदी ही होगा, जबकि चीन का योगदान करीब 30 फीसदी होगा। भारत अभी भी उस स्थिति से दूर खड़ा है जहां स्वच्छ ऊर्जा में वृद्धि औसत मांग वृद्धि के बराबर या उससे अधिक हो। पिछले 12 महीनों के दौरान उत्पादन में वृद्धि लगभग इसी स्तर पर रही।
उद्योग के अधिकारियों ने बताया कि भारत में जीवाश्म ईंधन आधारित उत्पादन में गिरावट असल में स्वच्छ ऊर्जा में रिकॉर्ड वृद्धि, जलविद्युत की बेहतर उपलब्धता, तापमान में नरमी और आर्थिक चुनौतियों आदि कारणों से हुई है। इससे बिजली की मांग में भी प्रभावित हुई है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, इस साल अप्रैल से जून की अवधि में भारत के ताप विद्युत उत्पादन में एक साल पहले के मुकाबले 8 फीसदी से अधिक की गिरावट आई। इसी प्रकार ताप विद्युत संयंत्रों (गैस आधारित बिजली संयंत्रों को छोड़कर) का उपयोग जून में एक साल पहले के 75 फीसदी से घटकर 67 फीसदी रह गया।
तेल मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिजली उत्पादन के लिए कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड का धुआं भारत के उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान करता है।