उच्चतम न्यायालय ने कोलकाता में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और उसके बाद हत्या के मामले में कोलकाता पुलिस द्वारा पूरी की गई कानूनी औपचारिकताओं के समय पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में अस्वाभाविक मौत की प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करने में देरी अत्यंत चिंता का विषय है।
शीर्ष न्यायालय ने कोलकाता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज में हुई इस घटना का स्वतः संज्ञान लिया है। इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की रिपोर्ट आने के बाद मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में न्यायालय के तीन सदस्यीय पीठ ने मामले की सुनवाई की।
सीबीआई की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आरोप लगाया कि घटना के पांचवें दिन सीबीआई द्वारा तहकीकात शुरू करने से पहले अपराध स्थल पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई थी। मेहता ने आरोप लगाया कि शुरू में अधिकारियों ने प्रशिक्षु डॉक्टर के परिवार वालों को बताया कि यह आत्महत्या का मामला है, मगर बाद में इसे अस्वाभाविक मौत करार दिया गया।
मेहता ने कहा कि आर जी कर अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर एवं मृतका के सहकर्मियों ने वीडियोग्राफी कराने की मांग की थी क्योंकि उन्हें भी लगा था कि इस पूरे मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है।
मेहता ने कहा, ‘प्रशिक्षु डॉक्टर के पिता ने एफआईआर दर्ज करने पर जोर दिया। अस्पताल ने एफआईआर दर्ज नहीं कराया। पिता के दबाव के बाद एफआईआर दर्ज किया गया मगर मृतका के अंतिम संस्कार के बाद। यह मामले को दबाने के मकसद से किया गया है। सीबीआई ने पांचवें दिन जांच शुरू की मगर तब तक सब कुछ बदल दिया गया था।’
न्यायालय ने कोलकाता पुलिस द्वारा कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के समय पर सवाल उठाया। न्यायालय ने कहा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि अस्वाभाविक मौत का मामला दर्ज होने से पहले ही 9 अगस्त को शाम 6 बजकर 10 मिनट और 7 बजकर 10 मिनट के बीच पोस्टमार्टम हो गया। न्यायालय ने इस घटना की पहली जानकारी दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी को अगली सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने के लिए कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 5 सितंबर को होगी।
न्यायालय के पीठ ने चिकित्सकों की सुरक्षा, विरोध प्रदर्शन के नियम, प्रदर्शनकारियों के अधिकारों पर कई निर्देश दिए। पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के लिए भी कुछ निर्देश जारी किए। पीठ ने आदेश दिया कि पश्चिम बंगाल सरकार इस घटना के बाद शांतिपूर्ण ढंग से किए जा रहे विरोध प्रदर्शन को बाधित नहीं करेगी। हालांकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने राज्य सरकार को कानून सम्मत अधिकारों के इस्तेमाल से नहीं रोका है।
पीठ ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव से एक पोर्टल शुरू करने के लिए कहा जहां संबंधित पक्ष चिकित्सकों की सुरक्षा पर अपने सुझाव राष्ट्रीय कार्य बल (एनटीएफ) को सौंप सकेंगे।
उच्चतम न्यायालय के पीठ ने नव गठित एनटीएफ को स्थानीय (रेजिडेंट) डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों सहित स्वास्थ्य क्षेत्र के पेशेवरों की सुरक्षा पर राष्ट्रीय नीति तय करने वक्त सभी संबंधित पक्षों के सुझावों पर विचार किया जाए।
न्यायालय ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को सभी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ समन्वय स्थापित कर काम पर लौटने के इच्छुक स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने यह बैठक एक सप्ताह के भीतर बुलाने और राज्यों को दो हफ्तों के भीतर समाधान के कदम उठाने के लिए कहा।