उच्चतम न्यायालय ने सरकार के बारे में मीडिया में आने वाली फर्जी खबरों का पता लगाने के लिए तथ्यों की जांच करने वाली ‘फैक्ट चेक इकाई’ बनाने के संबंध में 20 मार्च को सरकार द्वारा जारी अधिसूचना पर गुरुवार को रोक लगा दी।
पत्र सूचना ब्यूरो की फैक्ट चेकिंग इकाई (पीआईबी एफसीयू) को केंद्र के काम से जुड़े सोशल मीडिया पर फर्जी और गलत खबरों की पहचान करने के लिए एक ‘निवारक माध्यम’ के तौर पर काम करना था।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन न्यायमूर्ति वाले पीठ ने कहा कि 20 मार्च को जारी अधिसूचना पर तब तक रोक रहेगी जब तक बंबई उच्च न्यायालय के एक-तिहाई न्यायाधीश, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के नियम 3 (1) (बी) (5) के प्रावधान की वैधता पर अंतिम फैसला नहीं लेते हैं।
अदालत ने कहा कि इन नियमों की वैधता में गंभीर संवैधानिक प्रश्न शामिल हैं और इससे अभिव्यक्ति की बुनियादी स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है। अदालत ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ और स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
बंबई उच्च न्यायालय ने 31 जनवरी को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) संशोधन नियम, 2023 के तहत फैक्ट चेकिंग यूनिट (एफसीयू) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर खंडित फैसला सुनाया था। एक तीसरे न्यायाधीश ने 11 मार्च को फैक्ट-चेकिंग यूनिट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
यह फैसला कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स और न्यूज ब्रॉडकास्ट ऐंड डिजिटल एसोसिएशन द्वारा दायर याचिकाओं पर आया था, जिसमें आईटी नियमों के नियम 3 को चुनौती दी गई थी।
यह नियम केंद्र सरकार को फर्जी या गलत खबरों की पहचान के लिए एफसीयू बनाने का अधिकार देता है। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के तहत फैक्ट-चेकिंग यूनिट को यह अधिकार है कि वह केंद्र सरकार की किसी भी गतिविधि से संबंधित ऑनलाइन सामग्री को फर्जी लगने पर उसे टैग करे।
केंद्र सरकार ने 6 अप्रैल, 2023 को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) संशोधन नियम, 2023 (आईटी नियम) को अधिसूचित किया। यह फरवरी 2021 में अधिसूचित मूल आईटी नियमों का दूसरा संशोधन है, जिसे पहले 28 अक्टूबर, 2022 को संशोधित किया गया था।
आईटी नियमों में कहा गया है कि फेसबुक, एक्स और अन्य सोशल मीडिया मंचों जैसे मध्यस्थों को ‘उचित प्रयास’ करते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि उपयोगकर्ता केंद्र सरकार के बारे में ऐसी जानकारी अपलोड न करें जिसकी पहचान ‘फर्जी या गलत या भ्रामक’ के रूप में की गई है।
कुणाल कामरा ने इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के सहयोग से फैक्ट-चेकिंग यूनिट की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि नए आईटी नियमों के कारण उनकी सामग्री को मनमाने ढंग से ब्लॉक किया जा सकता है या उनके सोशल मीडिया अकाउंट को निलंबित या निष्क्रिय किया जा सकता है जो सामग्री ज्यादातर राजनीतिक व्यंग्य है। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें पेशेवर रूप से नुकसान होगा।
कामरा ने यह भी तर्क दिया कि फैक्ट चेक यूनिट द्वारा पहचान की गई सामग्री पर दूरसंचार सेवा प्रदाता और सोशल मीडिया मध्यस्थ भी ऐसी सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए बाध्य होंगे। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तब वे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 के तहत मिलने वाला संरक्षण खो देंगे।
इस पर केंद्र सरकार का कहना था कि फैक्ट-चेकिंग यूनिट केवल फर्जी या गलत या भ्रामक जानकारी की पहचान कर सकती है और इसमें किसी की राय, व्यंग्य या कलात्मक अभिव्यक्ति शामिल नहीं होगी।
केंद्र ने कहा था, ‘इसलिए, सरकार का इस विवादास्पद प्रावधान को लागू करने के संबंध में लक्ष्य स्पष्ट है और याची (कामरा) किसी भी तरह के मनमाने या अनुचित बरताव का सामना नहीं करेंगे जिसकी उन्होंने आशंका जताई है।’ हालांकि उच्च न्यायालय के खंडपीठ ने पहले भी कहा था कि ये नियम सरकार की निष्पक्ष आलोचना, जैसे पैरोडी और व्यंग्य से सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं।