प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ऐलान किया कि भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों से ‘कभी समझौता नहीं’ करेगा, भले ही इसके लिए उन्हें ‘भारी व्यक्तिगत कीमत’ चुकानी पड़े। मोदी का यह सख्त बयान तब आया जब अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क के साथ कुल 50 फीसदी शुल्क लगाने की घोषणा की है। इससे संकेत मिलता है कि भारत अपना कृषि बाजार अमेरिका के लिए खोलने के दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है।
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन की जन्मशती पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमारे लिए अपने किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है। भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा। मैं जानता हूं कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।’
अमेरिकी डेरी उत्पादों और आनुवंशिक रूप से संवर्धित (जीएम) फसलों के लिए बाजार पहुंच पर मतभेद के कारण 1 अगस्त की समयसीमा में भारत और अमेरिका के बीच अंतरिम व्यापार करार नहीं हो पाया।
वाशिंगटन डीसी में पत्रकारों से बात करते हुए व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत को ‘टैरिफ किंग’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘भारत पर लगाए गए शुल्क का तर्क जवाबी शुल्क से बिल्कुल अलग है। यह विशुद्ध रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा था क्योंकि भारत ने रूसी तेल खरीदना बंद करने से इनकार कर दिया।’
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत से पेट्रोलियम उत्पाद खरीदने वाले देशों को भी उच्च शुल्क का सामना करना पड़ सकता है, नवारो ने कहा, ‘हम इन सब पर गौर कर रहे हैं। इसे रोकना होगा। अमेरिकी डॉलर से भारतीय उत्पाद खरीदे जाते हैं और फिर इसी डॉलर से युद्ध (रूसी) के लिए धन जुटाया जाता है।’
घटनाक्रम के जानकार एक व्यक्ति ने बताया कि सरकार निर्यातकों को ट्रंप शुल्क से निपटने में सहायता के लिए त्रि-आयामी रणनीति पर काम कर रही है। प्रस्तावित 2,250 करोड़ रुपये के निर्यात संवर्धन मिशन के तहत कुछ खास क्षेत्रों को सहायता प्रदान करना एक तरीका हो सकता है। अन्य तरीकों में नए निर्यात बाजार का विस्तार करना और अमेरिका के अलावा अन्य बाजारों पर ध्यान केंद्रित करना है। इसके अलावा जिन उत्पादों की अमेरिकी बाजार में निर्यात मांग नहीं होगी, उनका उपयोग घरेलू मांग को पूरा करने के लिए किया जा सकता है।
उक्त शख्स ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘योजनाएं विशेष रूप से उन क्षेत्रों को सहायता देने के लिए तैयार की जाएंगी जिन पर शुल्क में भारी वृद्धि का ज्यादा असर पड़ेगा।’ उन्होंने कहा, ‘निर्यात बाजार में विविधता लाने पर जोर देना चाहिए क्योंकि विश्व व्यापार में बाधा भी कई बार अवसर पैदा करती है। वाणिज्य विभाग और निर्यात संवर्धन परिषदें अमेरिका के अलावा अन्य क्षेत्रों में अवसरों का बारीकी से विश्लेषण कर रही हैं।’
निर्यातकों का कहना है कि यह कदम भारतीय निर्यात के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि अमेरिकी बाजार में भारत से होने वाले करीब 55 फीसदी निर्यात पर इसका सीधा असर पड़ेगा। परिधान और चमड़ा निर्यातकों पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी क्योंकि यही वह समय होता है जब ऑर्डर दिए जाते हैं।
कपड़ा और रसायन क्षेत्र के निर्यातकों ने आज वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की और शुल्क के प्रभाव से निपटने के लिए सहयोग मांगा। यह देखा गया कि उच्च शुल्क से लगभग 6 फीसदी उद्योग सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।
घटनाक्रम के जानकार शख्स ने कहा, ‘कपड़ा क्षेत्र श्रम प्रधान है और शुल्क वृद्धि का सबसे ज्यादा असर इसी क्षेत्र पर पड़ेगा। आम तौर पर ऑर्डर दीर्घकालिक प्रकृति के होते हैं जिससे निर्यात बाजार में बदलाव मुश्किल हो जाता है।’
वस्त्र और रसायन क्षेत्र के निर्यातकों ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चल रहीं राज्य एवं केंद्रीय शुल्कों एवं करों में छूट योजनाओं तथा निर्यातित उत्पादों पर शुल्क एवं करों में छूट योजना को 5 साल के लिए बढ़ाने की मांग की है। उन्होंने बंदरगाह शुल्क घटाने और मौजूदा योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए अनुपालन बोझ को कम करने का भी आग्रह किया है।
उद्योग के अनुमान के अनुसार रसायन क्षेत्र के अंतर्गत 20 उत्पादों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वित्त वर्ष 2024 के दौरान भारत ने 86.5 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया जो इससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 11.6 फीसदी अधिक है। इस दौरान आयात 45.7 अरब डॉलर रहा। कुल मिलाकर अमेरिका के साथ भारत 40.8 अरब डॉलर के व्यापार अधिशेष में रहा।