मराठा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) संदीप शिंदे समिति का कार्यकाल बढ़ा दिया, जिसका गठन पिछली सरकार ने मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र जारी करने की कार्यप्रणाली तय करने के लिए किया था। शिंदे समिति की समयसीमा बढ़ाए जाने के बावजूद मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल ने आक्रामक रुख अपनाया है। उन्होंने घोषणा की थी कि वे मराठा आरक्षण के लिए 15 फरवरी से क्रमिक भूख हड़ताल पर जाएंगे।
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने सितंबर 2023 में समिति का गठन किया था। एक सरकारी आदेश में कहा गया है कि इसका विस्तारित कार्यकाल 30 जून 2025 को समाप्त होगा। छह महीने का विस्तार आदेश समिति का पिछला कार्यकाल 31 दिसंबर 2024 को समाप्त हो जाने के 43 दिन बाद आया। मनोज जरांगे के नेतृत्व में एक आंदोलन के बाद समिति का गठन किया गया था। आंदोलन के दौरान मांग की गई थी कि पात्र मराठों को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे नौकरियों और शिक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण का लाभ उठा सकें। कुनबी एक कृषि आधारित समुदाय है, जो ओबीसी श्रेणी में आता है।
मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल ने कहा कि राज्य सरकार ने शिंदे समिति की समयसीमा बढ़ा दी है। अब उस समिति को जनशक्ति दीजिए। समिति को बैठे रहने मत दीजिए। सिर्फ समयसीमा बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है, अब इस समिति को पूरे महाराष्ट्र में जाना चाहिए। समिति को रिकॉर्ड की जांच करनी चाहिए। समिति को बैठने के लिए एक कमरा दिया जाना चाहिए। उन्हें धन की कमी नहीं होनी चाहिए। सभी सत्यापन किए जाने चाहिए। मराठा नेता मनोज जरांगे ने कहा कि जो प्रमाणपत्र रोका गया है, उसे तुरंत जारी किया जाना चाहिए।
जरांगे पाटिल दावा कर रहे हैं कि हैदराबाद गजट में मराठा समुदाय के कुनबी अभिलेख मौजूद हैं। सरकार ने कहा है कि वह हैदराबाद राजपत्र को लागू करेगी। अब सरकार इसका अध्ययन करने जा रही है। इसलिए अब हम इस गजट के कार्यान्वयन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जरांगे ने कहा कि हमने 15 तारीख से भूख हड़ताल पर जाने का फैसला किया था। इसलिए मैं आज शाम या कल गांव वालों के साथ चर्चा करूंगा। हम केवल इतना ही चाहते हैं कि आप झूठ न बोलें। मराठा आंदोलन के लिए आप किसी को नोटिस नहीं दे सकते। निर्णय से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार सकारात्मक है। हमें उन पर भरोसा रखना चाहिए कि वे अगले मंगलवार तक हमारी मांगें स्वीकार कर लेंगे।
राज्य के ओबीसी नेताओं ने मराठों को इस श्रेणी में शामिल करने का विरोध किया है। उन्हें डर है कि इसके परिणामस्वरूप उनके समुदायों के लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा। समिति को पूर्ववर्ती हैदराबाद और बंबई राज्यों के अभिलेखों का अध्ययन करने के लिए कहा गया था, जहां मराठों का उल्लेख कभी-कभी कुनबी के रूप में किया जाता है। समिति का गठन शुरुआत में मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए किया गया था, बाद में इसका दायरा बढ़ाकर पूरे राज्य को इसके अंतर्गत लाया गया।