महाराष्ट्र

आगरा और पानीपत में हो शिवाजी स्मारक! महाराष्ट्र सरकार की मांग- उनसे जुड़े किलों की देखभाल का जिम्मा हमें सौंपे केंद्र

महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मांग की है कि महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े सभी किलों की देखभाल का जिम्मा राज्य सरकार को दिया जाए।

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सुशील मिश्र   
Last Updated- March 25, 2025 | 8:19 PM IST

महाराष्ट्र की हर कहानी छत्रपति शिवाजी महाराज से शुरू होती है। मराठा साम्राज्य से जुड़े ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसके लिए राज्य सरकार मराठों की वीरता और शौर्य से जुड़े जगहों में स्मारक तैयार करने के साथ शिवाजी महाराज से जुड़े किलों के देखरेख करने की जिम्मेदारी चाहती है। राज्य सरकार उत्तर प्रदेश के आगरा और हरियाणा के पानीपत में शिव स्मारक का निर्माण के साथ केन्द्र सरकार से मांग की है कि महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े सभी किलों की देखभाल का जिम्मा उसको दिया जाए। हालांकि विपक्ष सरकार के इस मत से सहमत नहीं है।  

विधानसभा में राज्य सरकार की तरफ से बताया गया कि उत्तर प्रदेश के आगरा में छत्रपति शिवाजी महाराज का स्मारक का निर्माण कर रही है। हरियाणा के पानीपत में भी एक स्मारक बनाने के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, जहां 1761 में मराठों और अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली के बीच पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी गई थी। जिस पर विपक्ष की तरफ सवाल खड़ा करते हुए एनसीपी -एसपी के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने पूछा कि पानीपत में स्मारक क्यों बनाया जा रहा है, जहां अब्दाली ने मराठों को हराया था। पानीपत हमारी वीरता का प्रतीक नहीं है। यह मुझे हार की याद दिलाएगा। यहां अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ के बीच युद्ध हुआ था। दुनिया में पराजय के लिए कोई स्मारक नहीं है।

जिसके जवाब में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि पानीपत की लड़ाई मराठों की हार का नहीं, बल्कि बहादुरी का प्रतीक है। यह मराठों की वीरता को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में बादशाह मराठों को ‘चौथ’ (एक तरह का कर) दे रहा था और जब अब्दाली ने दिल्ली पर कब्जा किया, तो दिल्ली के बादशाह ने मराठों को पत्र लिखकर दिल्ली को बचाने के लिए आने का आग्रह किया। मराठा दिल्ली गए और अब्दाली को हराया, जिसके बाद अफगान शासक भाग गया, यमुना नदी के किनारे डेरा डाला। इसके बाद अब्दाली ने मराठों को पत्र लिखकर युद्ध-विराम की पेशकश की और कहा कि पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान को उसका क्षेत्र माना जाए, जबकि देश का बाकी हिस्सा मराठों का रहेगा। 

फडणवीस ने कहा कि मराठों का इस संघर्ष से कोई संबंध नहीं था, लेकिन उन्होंने कहा कि वे अब्दाली को एक इंच भी जमीन नहीं देंगे। मराठों ने देश के लिए लड़ाई लड़ी, ताकि तीनों क्षेत्र भारत का हिस्सा बने रहें।

शिवाजी महाराज के किलों की देखभाल का मांगा जिम्मा

महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मांग की है कि महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े सभी किलों की देखभाल का जिम्मा राज्य सरकार को दिया जाए। केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को लिखे पत्र में राज्य सरकार ने अनुरोध किया है कि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के अधीन आने वाले किलों को महाराष्ट्र सरकार के हवाले कर दिया जाए ताकि उनकी बेहतर देखभाल और विकास हो सके। छत्रपति शिवाजी महाराज के किले महाराष्ट्र की शान और इतिहास का प्रतीक हैं। ये किले न सिर्फ हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं, बल्कि लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं। इनकी देखभाल के लिए महाराष्ट्र सरकार पूरी तरह सक्षम है । राज्य का पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय इन किलों की मरम्मत और संरक्षण के लिए तैयार है।  

महाराष्ट्र में करीब 350 किले हैं, जिनमें से कई शिवाजी महाराज के समय से जुड़े हैं। इनमें रायगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, शिवनेरी, सिंधुदुर्ग और लोहगढ़ जैसे किले शामिल हैं । इनमें से कुछ किले एएसआई के संरक्षण में हैं, जबकि कई उपेक्षित हालत में हैं। राज्य के संस्कृति मंत्री शेलार का कहना है कि अगर ये किले राज्य सरकार को सौंपे जाते हैं, तो इनका बेहतर रखरखाव और पर्यटन के लिए विकास किया जा सकता है। इससे न सिर्फ किलों की स्थिति सुधरेगी, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। अगर ये किले हमें मिलते हैं, तो हम इन्हें विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के साथ-साथ इनकी देखभाल भी बेहतर कर सकेंगे । इस मांग के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में 12 किलों को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था ।

मुख्यमंत्री ने कहा कि शिवाजी महाराज के किले हमारे लिए मंदिरों से भी ज्यादा पवित्र हैं। हम उनका संरक्षण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। राज्य सरकार ने पहले ही रायगढ़ और शिवनेरी जैसे किलों पर विकास कार्य शुरू कर दिए हैं । हालांकि, विपक्ष का कहना है कि केंद्र और राज्य को मिलकर काम करना चाहिए, न कि अधिकारों की लड़ाई लड़नी चाहिए।

First Published : March 25, 2025 | 8:11 PM IST