भूरे आकाश के सामने ट्राम कार को ओवरहेड केबल से जोड़ने वाली ट्रॉली का अनुसरण करते हुए कैमरा बहुत ही खूबसूरत दृश्य पेश करता है। महान लेखक और फिल्मकार सत्यजित रे की मशहूर कृति ‘महानगर’ के क्रेडिट रोल के साथ लगभग दो मिनट का यह दृश्य ‘बिग सिटी’ कोलकाता के आसपास केंद्रित त्रयी का हिस्सा है।
पीढि़यों तक रे, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन जैसे फिल्मकारों ने कोलकाता के वास्तविक जनजीवन को दर्शाने के लिए हावड़ा ब्रिज और विक्टोरिया मेमोरियल के साथ-साथ इस महानगर की जीवनरेखा कही जाने वाली ट्राम को अपने लेखन और फिल्मों में शामिल कर दृश्यों को जीवंत कर दिया। लेकिन, यदि राज्य सरकार अपने फैसले पर आगे बढ़ती है, तो शहर की यह पहचान जल्द ही सड़कों से उतर कर इतिहास की पटरियों पर निकल जाएगी और लोग इसे केवल म्यूजियम में धरोहर के तौर पर ही देख पाएंगे।
इस सप्ताह के शुरू में पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री स्नेहाशिष चक्रवर्ती ने ऐलान किया है कि अब ट्राम एस्प्लेनेड से मैदान तक शहर के केवल एक रूट पर ही चलाई जाएगी। कोलकाता की सड़कों से ट्राम हटाने के लिए उन्होंने तर्क दिया कि इससे जगह-जगह जाम लगता है और पुलिस को यातायात प्रबंधन में दिक्कत होती है।
दुर्गा पूजा के दौरान श्रद्धालुओं को यात्रा पैकेज घोषित करने वाले राज्य परिवहन विभाग ने इस बार यातायात पुलिस की आपत्तियों के बाद ट्राम को अपने कार्यक्रम में शामिल नहीं किया है। सरकार का यह कदम शहर की सड़कों से धीरे-धीरे ट्राम को हटाने के खिलाफ कलकत्ता हाई कोर्ट में दाखिल की गई जनहित याचिका पर सुनवाई के बीच आया है। इस मामले में अभी फैसला आना बाकी है, इससे पहले ही ट्राम को केवल एक हेरिटेज रूट तक सीमित करने के कदम से लोग बुरी तरह आहत हैं।
फिल्मकार गौतम घोष सवाल पूछते हैं, ‘यदि ट्राम को सड़कों से हटा दिया जाएगा तो फिर कोलकाता में हम किस चीज पर गर्व करेंगे? यह एशिया का सबसे पहला ट्राम वे है। यह हमारी धरोहर है।’ घोष बताते हैं कि ट्राम को फिल्माने के लिए लोग मुंबई और दक्षिण से कोलकाता आते हैं। घोष ने बताया, ‘ट्राम, हावड़ा ब्रिज और पीली टैक्सी, ये तीन चीजें ही तो कोलकाता की पहचान हैं। वैश्विक स्तर पर ट्राम बहुत प्रसिद्ध हैं। हमें यातायात के पुराने और सुगम साधन को सड़कों से हटाने के बजाए थोड़ा अपग्रेड करने की जरूरत है।’
जब से ट्राम को सड़कों से हटाने की खबर आम हुई है, सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ सी आ गई है। लोग ट्राम पर रील बना रहे हैं और ‘हमेशा दिलों में रहेगी’ और छिलो, आछे, थाकबे (यह थी, यह है और यह रहेगी) जैसी टैगलाइन के साथ इसके फोटो शेयर कर रहे हैं। ट्राम के लिए लोग इतने भावुक हैं कि लोगों ने गुरुवार को श्यामबाजार ट्राम डिपो पर प्रदर्शन किया और ट्राम बचाओ के नारे लगाए।
कोलकाता की शान ट्राम को बचाने के लिए यह संभवत: इकलौता प्रदर्शन नहीं होगा। शहर और सोशल मीडिया में प्रतिक्रियाओं को देखकर ऐसा लगता है कि लोग उसी प्रकार सड़कों पर प्रदर्शन कर सकते हैं जैसे हाल ही में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर की हत्या के विरोध में उतरे थे।
वैसे राज्य सरकार का फैसला कहीं से भी चौंकाने वाला नहीं है। शहर की जीवनरेखा कही जाने वाली ट्राम 151 वर्ष पुरानी हो चुकी है। अब यातायात का यह साधन समय से पीछे छूटता जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से ट्राम सड़कों से हटनी शुरू हो गई थी।
वर्ष 2011 में जब तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई थी तो 35 रूटों पर ट्राम चलती थी। वर्ष 2017 आते-आते रूटों की संख्या सिमट कर 15 ही रह गई। इसके बाद 2022 में ट्राम के लिए शहर में केवल 2 रूट ही रह गए।
कलकत्ता ट्राम उपयोगकर्ता एसोसिएशन (सीटीयूए) के अध्यक्ष देवाशिष भट्टाचार्य कहते हैं कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि ट्राम शहर में अन्य यातायात साधनों से धीमी चलती है या यह यातायात को बाधित करती है। सरकार के तर्क बेबुनियाद हैं।