देश में बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने वाला सरकारी वित्तीय संस्थान राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त पोषण और विकास बैंक (नैबफिड) वित्त वर्ष 2025-26 में हवाई अड्डों के लिए ऋण देने की योजना बना रहा है। हर्ष कुमार के साथ बातचीत में नैबफिड के प्रबंध निदेशक राजकिरण राय जी. ने इस मुद्दे पर पूरी बात की। मुख्य अंशः
इस साल के केंद्रीय बजट में कहा गया है कि नैबफिड बुनियादी ढांचा क्षेत्र के कॉरपोरेट बॉन्ड के लिए आंशिक ऋण वृद्धि सुविधा शुरू करेगा। आप इसे कैसे देखते हैं?
नैशनल ऐसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी (एनएआरसीएल) बनाने के बाद हमने पिछले दो वर्षों में आंशिक ऋण वृद्धि की शुरुआत की है। एनएआरसीएल के प्रमुख कार्यों में बॉन्ड बाजार का विकास भी शामिल है। इसके लिए कुछ चीजें शुरू करना जरूरी है और आंशिक ऋण वृद्धि उनमें से ही एक है। हमने यह देखने के बाद इसकी वकालत शुरू की कि भारतीय रिजर्व बैंक ने साल 2015 में दिशानिर्देश जारी किए थे, लेकिन बाद में कई संशोधनों से उत्पाद का जरूरी विकास नहीं हो सका। हाल ही में रिजर्व बैंक ने एनएआरसीएल को आंशिक ऋण वृद्धि प्रदान करने की मंजूरी दी है। सरकार ने इस उत्पाद की जरूरतों को समझा और बजट में इसकी घोषणा की गई। हम उत्पाद विकसित करने पर भी काम कर रहे हैं। उम्मीद है कि हम एक महीने में दिशानिर्देश जारी करेंगे। हम अभी उत्पाद को मूर्त रूप देने की प्रक्रिया में है व जल्द ही विवरण जारी करेंगे।
भारत के बुनियादी ढांचे के ऋण पर आपकी क्या राय है?
रकम (ऋण) मुद्दा ही नहीं है। दमदार क्रियान्वयन के कारण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को आसानी से ऋण दिया जा रहा है। अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर फाउंडेशन के सामने मैंने अपनी प्रस्तुति में गौर किया कि फिलहाल चूक की दर 1 फीसदी से भी कम है। बीते एक दशक में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने उल्लेखनीय रूप से दमदार प्रदर्शन किया है। हम बुनियादी ढांचे के ऋण, रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट और नवीकरणीय ऊर्जा कंपनियों में भारी विदेशी निवेश देख रहे हैं। इसलिए, मुझे नहीं लगता है कि ऋण से जुड़ी कोई चुनौती है। हमें सिर्फ परियोजनाएं बढ़ाने की जरूरत है।
आने वाले वर्षों में ऋण के फोकस क्षेत्र क्या होंगे?
अभी हम हवाई अड्डों के लिए ऋण नहीं देते, मगर इस क्षेत्र में काफी घोषणाएं हो रही हैं। हमारी योजना भी इस क्षेत्र में प्रवेश करने की है। ऐतिहासिक रूप से भारत में हवाई अड्डों के लिए ऋण देना खासकर मुंबई और विशाखापत्तनम जैसे शहरों में कोई बड़ी चुनौती नहीं रही है। जब प्रतिस्पर्धा होती है और बैंक ऋण देने के लिए इच्छुक होते हैं तो अतिरिक्त सहायता का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। जिन मामलों में ऋण समस्याग्रस्त हो जाता है, हम हस्तक्षेप पर विचार कर सकते हैं।
हमने हाल ही में राजस्थान में सिंचाई और ड्रिलिंग परियोजनाओं के लिए ऋण दिया है, जिसमें ऋण चुकाने के लिए मोहलत की लंबी अवधि की जरूरत थी। आमतौर पर हम अक्सर 30 वर्षों तक के लिए लंबी अवधि के ऋण देते हैं।
सही मायने में हम कुछ वैसे संस्थानों में से एक हैं जो इतनी लंबी मोहलत देते हैं। आज तक हमने जो ऋण स्वीकृत किए हैं उनमें से 60 फीसदी से अधिक 15 वर्षों से अधिक वक्त वाले हैं।
इस बार बजट में कहा गया है कि सरकार पिछले साल बजट ऐलान को क्रियान्वित करने के लिए1 लाख करोड़ रुपये का अरबन चैलेंज फंड बनाएगी। इस ऋण में आपकी कितनी हिस्सेदारी रहेगी?
कई शहरी स्थानीय निकाय आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हैं। एक फंड का लक्ष्य इस मसले के समाधान और शहरी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में सहयोग करने का होना चाहिए, खासकर सीवेज उपचार, ठोस अपशिष्ट उपचार और अपशिष्ट से बायोगैस जैसे क्षेत्र में।
हमने गुरुवार को एक उत्पाद पेश किया है। सरकार के उपायों में कहा गया है कि अगर कोई बैंक ऋण लायक परियोजना अपनी लागत का कम से कम 50 फीसदी ऋण अथवा बॉन्ड के जरिये जुटा सकती है, तो सरकार अतिरिक्त 20 फीसदी का योगदान देगी। इससे शहरी स्थानीय निकायों पर आर्थिक बोझ कम हो जाता है।