दुनिया भर के नेताओं का शिखर सम्मेलन समाप्त होने के बाद भी अमिताभ कांत नई दिल्ली में जी20 मुख्यालय, सुषमा स्वराज भवन में एक के बाद एक बैठकों के कई दौर में व्यस्त हैं। उन बैठकों और बधाई संदेशों के बीच, अनुभवी अफसरशाह और भारत के जी-20 शेरपा ने असित रंजन मिश्र, रुचिका चित्रवंशी और निवेदिता मुखर्जी के साथ ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन, नई दिल्ली घोषणापत्र, इससे जुड़ी चुनौतियों के बारे बात की है। बातचीत के प्रमुख अंश:
नहीं, बिल्कुल नहीं। प्रधानमंत्री ने अब एक वर्चुअल मीटिंग बुलाई है, इसलिए हमें उस पर काम करना शुरू करना होगा। हमें फिर से मुद्दों से जुड़े नोट तैयार करने होंगे और उन्हें प्रसारित करना होगा। नेताओं की घोषणा के तौर पर हमने जो चीजें तय की हैं यह उसके क्रियान्वयन से जुड़ी बाद की कार्रवाई का हिस्सा होगा।
जो हासिल किया गया है वह अविश्वसनीय है और अब असंभव चीजें संभव हो रही हैं। पीछे मुड़कर देखने पर ऐसा लगता है कि भारत ने एकदम जादू दिखाया है… किसी को उम्मीद नहीं थी कि भारत में पूर्ण सहमति वाला बयान जारी होगा।
रूस और यूक्रेन के मुद्दे को लेकर काफी अनिश्चितता सी स्थिति थी और इसी वजह से जी20 में खास क्षण वह था जब हमने इसे भी इसमें शामिल किया। जब आखिरकार प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वह सहमति वाले घोषणापत्र को शामिल करने जा रहे हैं तब सभी ने तालियां बजाईं और सभी नेताओं ने समर्थन किया, यह वास्तव में जी20 के लिए खास पल था। बहुपक्षीय मंच के इतिहास में बिना किसी पूर्वग्रह के और बिना किसी किंतु-परंतु के किसी देश की अध्यक्षता में शत-प्रतिशत आम सहमति बनाना अभूतपूर्व है।
यह शेरपा के स्तर पर किया गया था। जब आप इस तरह का समझौता कर लेते हैं जो अभूतपूर्व है तब आप नेताओं के कद और उनके रुख के स्तर पर समानांतर खड़े हो जाते हैं। प्रधानमंत्री के कद के कारण हम बहुत निर्भीक, साहसिक, जोश के साथ और बेहद गैर-पारंपरिक तरीके से बातचीत कर सकते थे। हमें आखिरकार उन्हें इसे अपनाने या छोड़ने के लिए कहना पड़ा।
केवल जी7 ही नहीं बल्कि रूस भी नीचे आया है। रूस चाहता था कि कई चीजें शामिल कर दी जाएं जिसे हमने पीछे छोड़ दिया। ऐसी कई चीजें थीं जो जी7 चाहता था जिसे हमने पीछे कर दिया। हम समझौते में संयम वाली आवाज लेकर आए।
हमने ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया के साथ संयुक्त रूप से बातचीत की थी इसलिए आखिरकार सऊदी अरब, मैक्सिको, अर्जेंटीना, तुर्की के शेरपाओं ने हमारे साथ सहयोग किया। चीन ने भी महसूस किया कि यह विकासशील देशों की आवाज है और उसे हमारा समर्थन करना पड़ा।
बिल्कुल, 83 पैराग्राफ पर पूर्ण सहमति होना एक कूटनीतिक जीत है। यह एक कूटनीतिक जीत इसलिए भी है कि भारत ने दिखा दिया है कि बहुपक्षवाद आज की दुनिया में भी कारगर है। भारत ने दिखाया है कि वह रूस-यूक्रेन संकट में संयम वाली आवाज बन सकता है। यह एक कूटनीतिक जीत है क्योंकि भारत सभी विकासात्मक मुद्दों को सामने लाने में सक्षम रहा है। यह एक कूटनीतिक जीत है क्योंकि भारत विकासशील देशों की आवाज बन गया है।
सभी सरकारी प्रतिनिधियों ने काम नहीं किया था। उन सभी के पास फुटनोट थे। इसलिए इसे आखिरकार शेरपा स्तर पर छोड़ दिया गया।
मुझे कई बार संदेह हुआ, लेकिन मैंने इसे कभी नहीं दिखाया। मैं केवल अपना आत्मविश्वास दिखा रहा था।
प्रधानमंत्री इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट थे कि हमें शत-प्रतिशत आम सहमति बनानी है और सबको साथ लेकर चलने के साथ ही हमें बेहद महत्त्वाकांक्षी भी होना है, जो हमने किया है। हमने प्रधानमंत्री के लिए यह करके दिखाया है।
मैं इसका श्रेय अपनी पूरी टीम को दूंगा। भू-राजनीतिक पैरा पर, ब्राजील और इंडोनेशिया के शेरपाओं का व्यापक अनुभव मिला। भारत की ओर से नागराज नायडू और इनम गंभीर शीर्ष श्रेणी के वार्ताकार थे। उन्होंने मेरे साथ काम किया।
हम उन मुद्दों में सफल रहे हैं जहां संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सफल नहीं हो पाया। हमने दिखाया है कि जी20 दुनिया का सबसे शक्तिशाली मंच हो सकता है और यह संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद की तुलना में बहुत अधिक शक्तिशाली हो सकता है।
फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा है कि घोषणा पत्र में कुछ ऐसे विषय हैं जिनसे वह सहमत नहीं हैं। रूस, यूक्रेन का मुद्दा उनमें से एक है…
लेकिन यह जी7 नहीं है, यह जी20 है। हर कोई इसमें शामिल है। आप जी7 में कोई भी प्रस्ताव पारित कर सकते हैं। अगर यह जी7 की बैठक होती तो वे जो भी प्रस्ताव चाहते, वे उसे पारित करा देते। उन्होंने हिरोशिमा में ऐसा किया था। यह हिरोशिमा की भाषा की तुलना में बहुत अधिक मजबूत भाषा है और यह बाली से कहीं अधिक सशक्त है।
मैं राजनीतिज्ञ नहीं हूं। मेरा राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। मैं प्रधानमंत्री का शेरपा हूं और मेरा काम यह है कि मैं उन्हें माउंट एवरेस्ट तक ले जाऊं जिसके तहत हमें इस दस्तावेज पर काम दिखाना है और हमने ऐसा करने की अपनी पूरी कोशिश की है।
हम कई चीजों पर मुहर लगने की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन घोषणापत्र के दस्तावेज में सिर्फ इतना कहा गया है कि ‘हम इस पर गौर करते हैं’ या ‘हम स्वागत करते हैं’…
हम कुछ दस्तावेजों पर ध्यान देते हैं क्योंकि कुछ मामलों में कुछ देश उन निकायों के सदस्य नहीं हैं, उदाहरण के लिए कुछ संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव। इसलिए यह वार्ता और मुद्दों पर निर्भर करता है…
भू-राजनीतिक के पैरा में केवल रूस-यूक्रेन मुद्दे ने हमें लगभग 200 घंटे की लगातार चर्चा करने के लिए मजबूर किया है। 3 सितंबर से 9 सितंबर की सुबह तक 15 से अधिक अलग-अलग मसौदे थे।
हमने 3 सितंबर को शुरुआत की। हमने कई दौर की बातचीत की और मसौदे तैयार किए… हमें शेरपाओं के सामने स्क्रीन पर ड्राफ्टिंग शुरू करनी पड़ी। हमने उनके फोन को अंदर लाने की इजाजत नहीं दी क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि कोई जानकारी लीक हो। अगर यह लीक हो गया होता, तो पूरी बातचीत में गड़बड़ी आ सकती थी। मैंने शुरुआती मसौदा तय किया, फिर उनके विचार आए। फिर एक और मसौदा, फिर एक और। हमने द्विपक्षीय बैठकों के 200 दौर भी किए।