रूस द्वारा पिछले सप्ताह यूक्रेन पर बमबारी करने के बाद अमेरिका के सबसे शक्तिशाली सीनेटरों में से एक ने रूस के कच्चे तेल के कारोबार पर प्रतिबंध बढ़ाने के लिए एक विधेयक का प्रस्ताव रखा है। उद्योग के अधिकारियों और शिप ट्रैकिंग के आंकड़ों के मुताबिक यह कानून लागू हुआ तो भारत के रूसी तेल के आयात को पंगु बना देगा। नए कठोर उपायों में रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर 500 प्रतिशत शुल्क लगाने जैसे ‘द्वितीयक प्रतिबंध’ शामिल होंगे। इन उपायों से भारत और चीन को निशाना बनाया जाएगा।
प्रस्तावित कानून से रोजाना लगभग 20 लाख बैरल (बीपीडी) रूसी कच्चे तेल की आपूर्ति खतरे में पड़ जाएगी, जिसकी कीमत फरवरी में रूसी तेल की डिलिवरी दरों पर लगभग 15.4 करोड़ डॉलर प्रतिदिन है। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इसकी गणना भारतीय सीमा शुल्क के आंकड़ों के आधार पर की है। सीमा शुल्क के आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने लगभग 50 अरब डॉलर का रूसी कच्चा तेल खरीदा। यह भारत के कच्चे तेल के कुल आयात बिल का करीब 35 प्रतिशत है।
समाचार चैनल सीएनएन ने बताया कि डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन सांसद अमेरिकी प्रतिबंध सख्त करने के लिए लॉबीइंग कर रहे हैं। डेमोक्रेटिक सीनेटर रिचर्ड ब्लुमेंथल ने सोमवार को सीएनएन को बताया, ‘हम सभी लोग अपने सार्वजनिक बयानों के साथ-साथ निजी संपर्कों के माध्यम से इसके लिए बहुत दबाव बना रहे हैं। ’
सीएनएन ने बताया कि ब्लुमेंथल सीनेट में एक ऐसे विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, जिसे डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों का समर्थन प्राप्त है, जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सहयोगी सीनेटर लिंडसे ग्राहम भी शामिल हैं। अब तक 80 से अधिक सीनेटरों ने इस बिल पर हस्ताक्षर किए हैं। ब्लुमेंथल ने कहा कि यह बिल जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के साथ व्यापक विचार-विमर्श करके तैयार किया गया था, जिन्होंने हाल ही में रूसी जहाजों पर कुछ सख्त नए प्रतिबंध लगाए हैं।
भारत, ब्रिटेनऔर यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को मान्यता नहीं देता है। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि आधिकारिक तौर पर अमेरिकी प्रतिबंधों को भी भारत नहीं मानता, लेकिन भारतीय बैंक और रिफाइनर अमेरिका से सावधान रहते हैं।
यूरोपीय बेंचमार्क क्रूड ब्रेंट की तुलना में रूसी तेल 2 से 5 डॉलर प्रति बैरल की छूट पर सुरक्षित किया गया था। फरवरी मे इराक के बाद रूस का कच्चा तेल सबसे सस्ता था, जो 77 डॉलर प्रति बैरल पर मिल रहा था। सीमा शुल्क के आंकड़ों के आधार पर गणना से पता चलता है कि सऊदी अरब और अमेरिका के तेल की तुलना में रूस का तेल 5 डॉलर प्रति बैरल सस्ता था।
बिज़नेस स्टैंडर्ड को मिले मार्केट इंटेलिजेंस एजेंसी केप्लर के शिप ट्रैकिंग डेटा के अनुसार मई में भारत को रूसी तेल शिपमेंट महीने में लगभग 3 प्रतिशत घटकर लगभग 19 लाख बैरल प्रति दिन (बीपीडी) हो गया, जो एक साल पहले 19.7 लाख बीपीडी से कम है। अप्रैल में हुए आयात की मात्रा छोड़ दें तो यह अभी भी इस साल का दूसरा सर्वाधिक और जुलाई 2024 के बाद का सर्वाधिक आयात है।
मई महीने में भारत के कुल आयात में रूसी तेल का हिस्सा लगभग 39 प्रतिशत था। इसके बाद इराक की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत थी। फरवरी के निचले स्तर की तुलना में आपूर्ति 27 प्रतिशत बढ़ी है। रूस के कच्चे तेल पर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद रूस से आपूर्ति फरवरी में कम हुई थी।
रिफाइनिंग के क्षेत्र से जुड़े भारतीय अधिकारियों ने कहा कि रूस से तेल की मजबूत आवक बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि अमेरिका के अतिरिक्त कड़े प्रतिबंध को छोड़ दें तो इस साल भी रूस की आपूर्ति जारी रहने की संभावना है।
जब रूसी तेल एफओबी के आधार पर 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर कारोबार करता है तो पश्चिमी शिपिंग सेवाओं और बीमा के इस्तेमाल से आपूर्तिकर्ताओं को रोके जाने पर उन्हें पुराने, स्वीकृत जहाजों के तथाकथित ‘डार्क फ्लीट’ का उपयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। भारत सरकार द्वारा संचालित रिफाइनर और बैंक ऐसे लेनदेन से बेहद सावधान रहते हैं और कारोबार की जांच के लिए संसाधन और धन खर्च करते हैं।
दो सरकारी रिफाइनरों ने कहा कि अगर करोबार 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे होता है पश्चिमी जहाज रूस के तेल की आयात की सुविधा देते हैं। रिफाइनिंग अधिकारियों ने कहा कि ब्रेंट क्रूड ऑयल का कारोबार जब 65 डॉलर प्रति बैरल की दर से हो रहा है, वहीं भारतीय रिफाइनरों के लिए बेहतर मीडियम सोर ग्रेड का कारोबार एफओबी आधार पर 50 डॉलर प्रति बैरल पर हो रहा है।