भारत में प्रमाणित ग्रीन वेयरहाउसिंग सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है। आगे भी इसके और तेज गति से बढ़ने की संभावना है। अगले पांच साल के दौरान यह सेक्टर अपने मौजूदा स्तर से 4 गुना बढ़ सकता है। ग्रीन वेयरहाउसिंग पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ होते हैं। ये बिजली की खपत व कचरे को कम करने के साथ संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देते हैं। बीते 5 साल के दौरान ए ग्रेड वेयरहाउसिंग स्टॉक ढाई गुना बढ़ चुका है। साल 2030 तक भारत में कुल वेयरहाउसिंग स्टॉक बढ़कर 88.5 करोड़ वर्ग फुट पहुंचने की संभावना है। 2024 तक यह 43.80 करोड़ वर्ग फुट दर्ज किया गया था।
संपत्ति सलाहकार फर्म जेएलएल की India’s sustainable warehousing landscape: A greenprint’ के नाम से आज जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक प्रमाणित ग्रीन वेयर हाउस स्टॉक 27 करोड़ वर्ग फुट तक पहुंचने का अनुमान है। यह 2024 में 6.5 करोड़ वर्ग फुट स्टॉक की तुलना में 4 गुना अधिक है।
जेएलएल इंडिया में औद्योगिक एवं लॉजिस्टिक्स के प्रमुख योगेश शेवड़े ने कहा कि भारत का ग्रीन वेयरहाउसिंग न केवल संस्थागत निवेशकों द्वारा समर्थित है, बल्कि कॉर्पोरेट Occupier या किरायेदारों द्वारा भी संचालित है। अधिकांश कॉर्पोरेट के नेट ज़ीरो लक्ष्य उन्हें प्रमाणित ग्रीन वेयरहाउस चुनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। जेएलएल के विश्लेषण से पता चलता है कि Occupier ऊर्जा खपत में 30 से 40 फीसदी बचत और पानी की बचत के अलावा अपशिष्ट, ग्रीन सामग्री आदि के पुनर्चक्रण पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।”
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वेयरहाउसिंग सेक्टर में ए ग्रेड इंस्टीट्यूशनल वेयरहाउसिंग की हिस्सेदारी भी तेजी से बढ़ रही है। जेएलएल की इस रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में कुल ए ग्रेड वेयरहाउसिंग स्टॉक 880 लाख वर्ग फुट था, जिसमें ए ग्रेड इंस्टीट्यूशनल वेयरहाउसिंग की हिस्सेदारी 2.8 करोड़ वर्ग फुट थी, 2024 में कुल ए ग्रेड वेयरहाउस स्टॉक करीब 2.5 गुना बढ़कर 23.80 करोड़ वर्ग फुट हो गया। इसके साथ ही इसमें ए ग्रेड इंस्टीट्यूशनल वेयरहाउसिंग की हिस्सेदारी 2019 के 2.80 करोड़ वर्ग फुट से तीन गुना से अधिक बढ़कर 9 करोड़ वर्ग फुट हो गई। यह वृद्धि उच्च गुणवत्ता वाले वेयरहाउस और वितरण सुविधाओं की बढ़ती मांग को दर्शाती है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था आधुनिक हो रही है और ई-कॉमर्स का तेजी से विस्तार हो रहा है। साथ ही यह बढ़ोतरी प्रमुख वैश्विक निवेशकों के बढ़ते आत्मविश्वास को दर्शाता है, जो भारतीय बाजार में अंतरराष्ट्रीय स्थिरता मानकों को ला रहे हैं।