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सरकार बेचेगी CPSEs में हिस्सेदारी, OFS के जरिए LIC समेत कई कंपनियों में हिस्सेदारी घटाने की तैयारी

अगस्त 2026 तक ज्यादातर सीपीएसई सार्वजनिक शेयरधारिता नियम को पूरा कर लेंगे

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हर्ष कुमार   
असित रंजन मिश्र   
Last Updated- May 18, 2025 | 10:18 PM IST

सरकार केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों (सीपीएसई) में हिस्सा बेचने की योजना बना रही है। निवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के सचिव अरुणीश चावला ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में बताया कि केंद्र सरकार अगस्त 2026 तक न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों को पूरा करने के लिए चालू वित्त वर्ष में छोटी-छोटी किस्तों में केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही है।

वित्त वर्ष 2025 में सरकार को विनिवेश से 10,132 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे जबकि इस बार सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी की बिक्री से सरकार को पिछले वित्त वर्ष की तुलना में अ​धिक आय मिलने की उम्मीद है। इससे वित्त मंत्रालय को चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.4 फीसदी पर रोकने का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिल सकती है। सरकार को विनिवेश से अतिरिक्त आय ऐसे समय में हो सकती है जब बढ़ती आर्थिक और भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं राजस्व संग्रह को प्रभावित कर सकती है।

चावला ने कहा, ‘इस साल हम छोटे-छोटे हिस्सों में नियमित रूप से ओपन फॉर सेल (ओएफएस) लाने की रणनीति अपनाएंगे। हम आधिकारिक तौर पर आगे का अनुमान दे रहे हैं और छोटे निवेशकों को इस पर ध्यान देना चाहिए।’ चावला ने कहा कि बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को मार्च 2027 तक सार्वजनिक शेयरधारिता मौजूदा 3.5 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी करने की अनुमति दी थी। ऐसे में एलआईसी चालू और अगले वित्त वर्ष में छोटी-छोटी किस्तों में अपनी 6.5 फीसदी हिस्सेदारी बेचेगी।

उन्होंने कहा कि अ​धिकतर केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता नियम का पालन कर चुकी हैं मगर रक्षा, रेलवे और वित्तीय सेवा क्षेत्र की कुछ कंपनियां अभी ऐसा नहीं कर पाई हैं। चावला ने क​हा, ‘हम सक्रियता से उनके विनिवेश का प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है कि अगले एक साल के अंदर बाकी कंपनियां भी न्यूनतम शेयरधारिता मानदंड को पूरा कर लेंगी। ऐसा करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे बाजार में पर्याप्त शेयर होंगे और तरलता बढ़ाने में भी मदद मिलती है।’

वित्त मंत्रालय ने फरवरी में सार्वजनिक क्षेत्र के चुनिंदा बैंकों और सूचीबद्ध वित्तीय इकाइयों में अपनी हिस्सेदारी कम करने के लिए मर्चेंट बैंकरों और कानूनी सलाहकारों को नियुक्त करने की खातिर बोलियां आमंत्रित की थी। इसके लिए मंत्रालय की ओर से प्रस्ताव के लिए अनुरोध (आरएफपी) जारी किया गया था। चावला ने कहा कि इन वित्तीय लेनदेन में सहायता के लिए करीब दर्जनभर मर्चेंट बैंकरों को चुना गया है।

सार्वजनिक क्षेत्र के 5 ऋणदाताओं बैंक ऑफ महाराष्ट्र (86.46 फीसदी), इंडियन ओवरसीज बैंक (96.38 फीसदी), यूको बैंक (95.39 फीसदी), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (93.08 फीसदी) और पंजाब ऐंड सिन्ध बैंक (98.25 फीसदी) में सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी तक करने के लिए काफी हिस्सा बेचनी होगी। इसके अलावा केआईओसीएल (99.03 फीसदी), एंड्रयू यूल ऐंड कंपनी (89.25 फीसदी), मंगलूर रिफाइनरी ऐंड पेट्रोकेमिकल्स (88.58 फीसदी), आईटीडीसी (87.03 फीसदी), आईआरएफसी (86.36 फीसदी) और जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (82.4 फीसदी) जैसे केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में भी सरकार को अपनी हिस्सेदारी घटानी होगी।

First Published : May 18, 2025 | 10:18 PM IST