केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को ‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा’ विषय पर राज्य सभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों की आर्थिक नीतियों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की सरकारों की नीतियों के कारण आजादी के बाद शुरुआती पांच दशकों में देश की अर्थव्यवस्था कमजोर रही।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि लगभग 50 वर्षों तक पिछली कांग्रेस सरकारों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत नहीं होने दिया। उन्होंने कहा, ‘हर बार कांग्रेस ने संविधान में संशोधन किए। केवल परिवार, वंश की मदद करने के लिए संविधान में संशोधन किए गए ।’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सोवियत मॉडल अपनाया था और इंदिरा गांधी ने उसे आगे बढ़ाया, लेकिन समाजवादी मॉडल से भारत को कोई फायदा नहीं हुआ।
वित्त मंत्री ने अपने संबोधन में अभिव्यक्ति की आजादी से लेकर शाह बानो प्रकरण और आपातकाल से जुड़े विभिन्न संविधान संशोधनों का उल्लेख करते हुए कांग्रेस पर ‘एक परिवार के हित’ में संविधान में संशोधन करते रहने का आरोप लगाया। इन संविधान संशोधनों के दौरान कांग्रेस की तत्कालीन सरकारों ने न तो प्रक्रिया का पालन किया और न ही संविधान की भावना का कोई सम्मान किया। उन्होंने सहयोगी दलों के दवाब में महिला आरक्षण विधेयक पारित नहीं करने के लिए कांग्रेस को ‘महिला विरोधी’ भी करार दिया।
42वें संविधान संशोधन और शाहबानो मामले से संबंधित संशोधन समेत विभिन्न संशोधनों का हवाला देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कोई भी संशोधन आर्थिक और सामाजिक पहलुओं पर खरा नहीं उतरा। इस दौरान उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और इनमें संवैधानिक भावना का सम्मान भी नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि संशोधन लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की रक्षा करने और परिवार को मजबूत करने के लिए किए गए।
उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के नाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने का रिकॉर्ड है। उन्होंने कहा, ‘मजरूह सुल्तानपुरी और बलराज साहनी दोनों को 1949 में जेल में डाल दिया गया था। 1949 में मिल मजदूरों के लिए आयोजित बैठकों में से एक में मजरूह सुल्तानपुरी ने एक कविता सुनाई थी, जो जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ थी। इसलिए उन्हें जेल जाना पड़ा।’
सीतारमण ने कहा कि सुल्तानपुरी ने माफी मांगने से इनकार कर दिया था और उन्हें जेल भेज दिया गया। उन्होंने कहा, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का कांग्रेस का रिकॉर्ड यहीं तक सीमित नहीं था। वर्ष 1975 में माइकल एडवर्ड्स ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू पर एक राजनीतिक जीवनी लिखी थी। इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उन्होंने ‘किस्सा कुर्सी का’ नामक एक फिल्म को भी सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनके बेटे और तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री पर सवाल उठाया गया था।’
सीतारमण ने, 1950 में उच्चतम न्यायालय की ओर से वामपंथी पत्रिका ‘क्रॉस रोड्स’ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पत्रिका ‘ऑर्गनाइजर’ के पक्ष में सुनाए गए फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि इसके जवाब में तत्कालीन अंतरिम सरकार ने संविधान संशोधन किया जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाते थे। उन्होंने कहा, ‘कई उच्च न्यायालयों ने भी हमारे नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखा, लेकिन अंतरिम सरकार ने जवाब में सोचा कि पहले संशोधन की आवश्यकता है। यह कांग्रेस द्वारा लाया गया था।’
शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के 1986 के एक फैसले का उल्लेख करते हुए सीतारमण ने कहा कि तत्कालीन सरकार ने इसे पलटते हुए मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता के अधिकार से वंचित कर दिया। उन्होंने कहा, ‘हमारी पार्टी ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया, जबकि कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने संविधान संशोधन करके मुस्लिम महिलाओं को अधिकारों से वंचित किया।’
सीतारमण ने कहा कि 2008 में राज्य सभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित हो गया था, लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस इसे लोक सभा में नहीं ले गई, क्योंकि उसके गठबंधन सहयोगी कानून के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस महिला विरोधी है, क्योंकि उसने कुर्सी बचाने के लिए महिला आरक्षण विधेयक पारित ही नहीं किया।’
(साथ में एजेंसियां)